Friday, December 28, 2018

कंपनी FD में निवेश करने से पहले जरुर पढ़ें



पिछले कुछ महीनों में एक बार फिर से लोगों का रुझान कॉरपोरेट FDs में  बढ़ा है. जब भी अर्थव्यवस्था में ब्याज दरें थोड़ी बढ़ जाती हैं और कंपनी FDs के ब्याज दरें आकर्षक हो जाती हैं तो बैंक से बेहतर फिक्स्ड रिटर्न चाहने वाले इन की तरफ रुख करते हैं. 

वैसे भी नियमित आमदनी चाहने वाले तमाम लोग कंपनी फिक्स्ड डिपॉजिट या कॉरपोरेट FD में निवेश करते हैं. यह बैंक FD की तुलना में अलग है. कॉरपोरेट FD में थोडा अध‍िक ब्याज मिलता है. लेकिन, इसके साथ कुछ जोखिम कुछ रिस्क भी जुड़े होते  हैं. और उन जोखिमो को समझना बहुत जरुरी होता है. 

कंपनी FD में निवेश से पहले आपको उसकी रेटिंग के साथ और भी चीजें देखनी जरुरी होती हैं क्यूंकि इसमें आपके ब्याज की ही नहीं आपकी पूंजी की भी सुरक्षा जुडी होती है . पीछे ऐसा हुआ है कि अधिक लालच में बिना सोचे समझे, रिस्क बिना देखे लोग ब्याज ही नहीं अपनी पूंजी भी ऐसे निवेशों में फंसा चुके हैं. इसलिए मुझे लगता है लोगों को इक्विटी से ज्यादा FDs में निवेश करते हुए सतर्क रहना चाहिए.

क्या क्या खतरे हो सकते हैं -

1- सही समय पर ब्याज न मिलना
2- सही समय पर मूलधन वापस ना होना
3- पूर्व निश्चित ब्याज ना मिलना
4- ब्याज या मूलधन वापस ना मिलना
5- कम्पनी की क्रेडिट रेटिंग घटना

आइए, जानते हैं कि कंपनी FD में निवेश से पहले किन बातों का ध्यान रखना जरूरी है:


  • सबसे पहले कंपनी के प्रमोटर की हिस्ट्री चेक करें. कंपनी का रीपेमेंट रिकॉर्ड भी आपको उसके बारे में काफी कुछ बता देगा.
  • सिर्फ कंपनी की प्रोफाइल ही नहीं बल्कि उसकी रेटिंग भी चेक करने की जरूरत है.
  • अगर कम्पनी के बारे में आमतौर पर बाज़ार में अच्छी राय ना हो तो ऐसे जगह निवेश से बचें.
  • कुछ मामलों में कमजोर रेटिंग वाली कंपनियां भी ग्राहकों को लुभाने के लिए FD पर अधिक ब्याज देने की पेशकश करती हैं.
  • अगर कोई कंपनी आपको FD पर अधिक रिटर्न देती है तो आपको लालच में आने से बचना चाहिए. क्यूंकि यहाँ पर आपकी पूंजी पर खतरा ज्यादा हो सकता है.
  • अगर किसी कंपनी के डिपॉजिट स्कीम को रेटिंग एजेंसियों से सही रेटिंग नहीं मिली है, तो उसमें निवेश न करें.
  • अगर आप किसी NBFC के FD में निवेश कर रहे हैं तो आपको सिर्फ AA और उससे बेहतर रेटिंग वाली कंपनी में ही निवेश करना चाहिए.
  • आप जितने अधिक वक्त के लिए निवेश करेंगे, आपको उतने आकर्षक  ब्याज दरें पेशकश की जाती हैं . कंपनी FD में एक से तीन साल के लिए निवेश करना चाहिये. बहुत लम्बे समय के लिए नहीं.
  • किसी एक  कॉर्पोरेट की FD में निवेश करने की जगह अलग-अलग FDs में  धन लगाना चाहिए.
  • कंपनी FD में निवेश करने से पहले आपको कंपनी के कामकाज के तरीके और उसका स्टैंडर्ड चेक करना चाहिए. अपने  निवेश सलाहकार से मिलकर भी इस बारे में राय ले सकते हैं.
  • डिपाजिट के लॉक इन पीरियड के बारे में आपको जानकारी जुटानी चाहिए. अधिकतर कंपनी FD में तीन से छह महीने का लॉक इन होता है.
  • आपको कंपनी के डिफॉल्ट करने से जुड़े जोखिम के बारे में पता होना चाहिए. इसका मतलब यह है कि कई बार कंपनियां आपकी FD की मैच्योरिटी के वक्त रकम लौटाने में असमर्थ होती हैं.
  • याद रखें कॉरपोरेट FD,बैंक FD की तरह सुरक्षित नहीं होती हैं, इसलिए पूरी तरह से जानकारी लेकर ही निवेश करने में समझदारी है.
  • कॉरपोरेट FD में निवेश करने वाले लोग म्यूच्यूअल फण्ड के कॉरपोरेट बांड फण्ड, क्रेडिट रिस्क फण्ड या मीडियम टर्म फण्ड में भी निवेश कर सकते हैं जहाँ पर बेहतर रिटर्न की सम्भावना होती है और लाभ पर लगने वाला टैक्स भी FD की ब्याज पर लगने वाले टैक्स से कम होता है.

Monday, November 19, 2018

कैसे बचायें 20 लाख रुपये अपने बच्चों की उच्च शिक्षा के लिए



प्रत्येक माँ-बाप का यह उत्तर दायित्व होता है कि अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा के मौके उपलब्ध कराये और अगर आप किसी बच्चे के माँ बाप हैं तो आप अवश्य ही समझ रहे होंगे की यह कितनी बड़ी और आज के ज़माने के अनुसार कितनी महँगी जिम्मेदारी है.
यह जानने के बाद भी कि बच्चों की उच्च शिक्षा बहुत अधिक महँगी है अक्सर लोग आज की जरूरतों को पूरा करने में, कल आने वाली बड़ी जिम्मेदारी को भूल जाते हैं या नजरअंदाज कर देते हैं और जब बच्चे बड़े हो जाते हैं, हर साल जब एक बड़ी रकम की जरुरत पड़ती है तो अपने रिटायरमेंट फण्ड या पीएफ से पैसे निकालने, दोस्तों रिश्तेदारों से उधार लेने या बैंक से लोन लेने के ही विकल्प सामने नजर आते हैं.
उच्च शिक्षा में कितना खर्च आएगा या निर्भर करेगा कि किस विषय की शिक्षा लेनी है कहाँ लेनी है और कितने समय बाद लेनी है. लेकिन एक सामान्य उच्च शिक्षा के लिए भी आज से 10-15 वर्ष बाद कम से कम 20 लाख रुपये तो खर्च करने ही पड़ सकते हैं.
20 लाख रुपये इकट्ठा करने के लिए कितने पैसे आज आपको बचाने और निवेश करने होंगे, यह निर्भर करेगा इन तीन बातों पर- १- आप पैसे एक बार में निवेश करना चाहते हैं या हर महीने एक निश्चित रकम बचत करते हैं
२- पैसे की आवश्यकता आपको कितने समय बाद होगी, आमतौर पर बच्चे जब 18-21 वर्ष के होने पर. अगर बच्चा 2 साल का है तो आपके पास 16-18 वर्ष का समय है लेकिन यदि बच्चा 8 वर्ष का है तो 10-12 वर्ष ही बचते हैं .
३- आप कहाँ निवेश करेंगे उस पर भी निर्भर करेगा कि आपको कितनी बचत करनी होगी, अगर आप फिक्स्ड डिपाजिट या गोल्ड में निवेश करेंगे तो निश्चित तौर पर आपको निवेश ज्यादा करने होंगे और यदि इक्विटी या रियल एस्टेट में निवेश करेंगे तो बचत में भी लक्ष्य हासिल हो जायेंगे. वैसे सबसे उपयुक्त विकल्प होगा म्यूच्यूअल फण्ड के माध्यम से इक्विटी या इक्विटी ओरिएण्टेड हाइब्रिड फण्ड में निवेश करना.
अनुमानित रिटर्न - एफ डी/गोल्ड/डेब्ट एम एफ : 8%, इक्विटी एम एफ/रियल एस्टेट : 12%
अगर 18 वर्ष के बाद 20 लाख रुपये चाहिए- निवेश फिक्स्ड डिपाजिट, डेब्ट म्यूच्यूअल फण्ड या गोल्ड में निवेश करना है जहाँ से 8% CAGR मिलता है तो एकमुश्त 5,00,000 रुपये का निवेश करना होगा और अगर बचत और निवेश माह दर माह करनी है तो Rs.4166 रुपये की आर डी या SIP करनी होगी. लेकिन यदि निवेश माध्यम इक्विटी म्यूच्यूअल फण्ड कर लें और वहां से रिटर्न 12% बने तो एकमुश्त सिर्फ 2 लाख 65 हजार रुपये ही चाहिए होगी या महीने की सिर्फ Rs 2640 रुपये की SIP करनी होगी.
अगर 15 वर्ष के बाद 20 लाख रुपये चाहिए- निवेश फिक्स्ड डिपाजिट, डेब्ट म्यूच्यूअल फण्ड या गोल्ड में निवेश करना है जहाँ से 8% CAGR मिलता है तो एकमुश्त 6,30,000 रुपये का निवेश करना होगा और अगर बचत और निवेश हर महीने करनी है तो Rs.5780 रुपये की आर डी या SIP करनी होगी. लेकिन यदि निवेश माध्यम इक्विटी म्यूच्यूअल फण्ड कर लें और वहां से रिटर्न 12% बने तो एकमुश्त सिर्फ 3 लाख 75 हजार रुपये ही चाहिए होंगे या महीने की सिर्फ Rs 4005 रुपये की SIP करके भी 20 लाख रुपये इकट्ठा किये जा सकते हैं.
अगर 10 वर्ष के बाद 20 लाख रुपये चाहिए- निवेश फिक्स्ड डिपाजिट, डेब्ट म्यूच्यूअल फण्ड या गोल्ड में निवेश करना है जहाँ से 8% CAGR मिलता है तो एकमुश्त 9,25,000 रुपये का निवेश करना होगा और अगर बचत और निवेश हर महीने करनी है तो Rs.10935 रुपये की आर डी या SIP करनी होगी. लेकिन यदि निवेश माध्यम इक्विटी म्यूच्यूअल फण्ड कर लें और वहां से रिटर्न 12% बने तो एकमुश्त सिर्फ 6 लाख 50 हजार रुपये ही चाहिए होंगे या महीने की सिर्फ Rs 8695 रुपये की SIP करनी होगी.
अगर 7 वर्ष के बाद 20 लाख रुपये चाहिए- निवेश फिक्स्ड डिपाजिट, डेब्ट म्यूच्यूअल फण्ड या गोल्ड में निवेश करना है जहाँ से 8% CAGR मिलता है तो एकमुश्त 11,50,000 रुपये का निवेश करना होगा और अगर बचत और निवेश माह दर माह करनी है तो Rs.17850 रुपये की आर डी या SIP करनी होगी. लेकिन यदि निवेश माध्यम इक्विटी म्यूच्यूअल फण्ड कर लें और वहां से रिटर्न 12% बने तो एकमुश्त 9 लाख रुपये ही चाहिए होंगे या महीने की Rs 15310 रुपये की SIP करनी होगी.

एक बहुत महत्वपूर्ण बात आपने देखी होगी कि जैसे-जैसे समय कम होता जा रहा है उतने ही ज्यादा पैसे निवेश करने पड़ रहे हैं. इसलिए जितनी जल्दी हो सके उतनी जल्दी बच्चो की उच्च शिक्षा के लिए निवेश करना शुरू करिये, जिस से की भविष्य में आपके ऊपर ज्यादा बोझ ना पड़े और आपके बच्चे अपने सपनों की उड़ान और मंजिलो के बीच पैसे की परेशानी ना आये. निवेश करने से पहले वित्तीय सलाहकारों से जरुर विमर्श करें.

Tuesday, October 16, 2018

बिग बिलियन डे-ग्रेट इंडियन फेस्टिवल सेल से आप कैसे फायदा उठायें ?

2 बिलियन डॉलर का टर्नओवर सिर्फ 4-5 दिनों में, जी खोल के खर्च किया इंडिया ने 10-15 अक्टूबर के बीच में.
पेश है, फ्लिप्कार्ट बिग बिलियन सेल और अमेजॉन के ग्रेट इंडियन फेस्टिवल सेल से जुड़े कुछ रोचक तथ्य-
# पिछले साल के कुल टर्नओवर 1.5 बिलियन डॉलर की तुलना में इस साल टर्नओवर में 33% की बढ़त हुई. अनुमानों के अनुसार इस वर्ष यह आंकड़ा 2 बिलियन डॉलर रहा.
# अमेजॉन के अनुसार उन्हें जो ऑर्डर मिले उसमे 63% ऑर्डर टियर 2 और टियर 3 शहरों से मिले
# अमेजॉन का दावा है कि उसके प्लेट फार्म पर शाओमी के 10 लाख फोन 1 दिन में बिके # अमेजॉन पर वनप्लस ने 1 दिन में 400 करोड़ रुपये के फोन बेचे # 48 घंटे में सारे अमेजॉन इको बिक गए # फ्लिप्कार्ट के अनुसार सेल में 2.5 करोड़ लोगों ने उनके प्लेटफार्म से खरीददारी की # फ्लिप्कार्ट सेल में कुंभ मेले से 5 गुना ज्यादा लोगों ने हिस्सा लिया है # फ्लिप्कार्ट पर एक दिन में 30 लाख मोबाइल फोन बिके # फ्लिप्कार्ट पर हर सेकंड में 5 जोड़ी जूते बिके # फ्लिप्कार्ट पर हर मिनट में 50 जूसर मिक्सर बिके # फ्लिप्कार्ट पर हर घंटे 120 आई पैड बिके # 27 अंतर-रास्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम को प्रकाशित करने के बराबर एल ई डी बल्ब बिके
# इस सेल में हुई खरीद से एवरेस्ट से 15 गुना ऊंची वॉशिंग मशीन की ढेर लग सकती है
# भारत में जितने हाथी हैं उनके भार के बराबर फैशन प्रोडक्ट्स फ्लिप्कार्ट ने इस सेल में बेचे.
अब बात आती है ये आंकड़े मै आप से क्यूँ शेयर कर रहा हूँ ? इसलिए कि एक तरफ लोग बोलते हैं लोगों के पास पैसे नहीं है, देश में मंदी का माहौल है, महंगाई के कारण लोग पैसे नहीं बचा पा रहे, तेल के दाम बढ़ने से लोगों का हाल बुरा है और दूसरी तरफ 15000 करोड़ रुपये का टर्नओवर सिर्फ 4-5 दिनों में. अब अगर इसे बुरा हाल कहें,अगर इसे मंदी कहते हैं तो ऐसी मंदी हमेशा देश में बनी रहे. जब की सच्चाई यह भी है की इलेक्ट्रॉनिक्स सामानों को छोड़ दें तो ज्यादातर महंगे सामान जैसे गाड़ी, गहने, फर्नीचर, डिजायनर कपडे इत्यादि सामान लोग लोकल मार्केट से ही खरीदते हैं. आंकड़े तो आप ने देख लिए अब प्रश्न यह है कि आप इन ऊपर दिए गए आंकड़ों से लाभ उठा पाते हैं या खर्चे और EMI के बोझ में फिर से अपने कामों में व्यस्त हो जाते हैं या कुछ और सामान खरीदने की नई लिस्ट तैयार करते हैं और उसके लिए पैसे कहाँ से आयेंगे इसके बारे में सोचते हैं या आप यह सोचते हैं कि लोग इतने पैसे खर्च कर रहे हैं वो जा कहाँ रहे हैं?? वो पैसे वापस आपके पास कैसे आ सकते हैं ? वो जा रहे हैं बड़े कॉर्पोरेट्स की कमाई बढ़ाने में,अगर आप इन कम्पनियों में पार्टनर होते तो अप्रत्यक्ष रूप से ये पैसे आपके पास भी आ सकते थे
तो सार यह है इन सब बातों का देश में कहीं मंदी नहीं है सब जी खोल के खर्च कर रहे हैं और आने वाले समय में ये खर्चे और बढ़ेंगे. अगर इंडिया आने वाले समय में और खर्च करेगी तो कॉर्पोरेट्स की कमाई और बढ़ेगी और अगर कॉर्पोरेट्स के कमाई बढ़ेगी तो उनके शेयर के दाम भी बढ़ेंगे.
अगर आपकी सोच है इन कम्पनियों के प्रॉफिट में हिस्सेदार बनने की इक्विटी म्यूच्यूअल फण्ड में निवेश करिए. पिछले 1 महीने में मार्केट में बड़ी गिरावट आई है और इस समय नेशनल स्टॉक एक्सचेंज में लिस्टेड 100 सबसे बड़ी कम्पनियों में से 60 कम्पनियों के शेयर 28 अगस्त के स्तरों से 10-40% से नीचे की दरों पर ट्रेड हो रहे हैं. मार्केट में आई इस सेल का फायदा उठाइये, इक्विटी म्यूच्यूअल फण्ड में 5 साल से ज्यादा समय अवधि के लिए निवेश करिए जिससे की अगले वर्षों में कॉर्पोरेट्स की कमाई जब अन्य लोगों के खर्चे से बढे तो उसका फायदा आप उठा सकें. सिर्फ उपभोक्ता ही न बने रहिये,सिर्फ बैंक को EMI ही न देते रहिये, सिर्फ हर दिवाली में घर के लिए बड़े इलेक्ट्रॉनिक्स, गाड़ियाँ और गहने ही न खरीदते रहिये. इस बार दिवाली में SIP करिए या STP करिये और अगर 5 साल या उस से ज्यादा दिन के लिए निवेश करना है तो एक साथ भी निश्चिंत होकर इक्विटी म्यूच्यूअल फण्ड में पैसे लगाइये. हैप्पी इन्वेस्टिंग


https://www.moneycontrol.com/news/business/markets/early-diwali-sale-63-of-top-100-companies-available-at-10-40-discount-3026521.html

Sunday, October 14, 2018

मार्केट में गिरावट आने पर क्या आपको SIP बंद करनी चाहिए ?



शेयर  मार्केट में गिरावट बढती जा रही है और ऐसे में क्या मुझे अपनी SIP बंद कर देनी चाहिए, क्या मुझे पैसे निकाल कर कहीं और लगाना चाहिए क्या SIP की क़िस्त जब तक मार्केट सुधर न जाये तब तक के लिए रोक देनी चाहिए या SIP की किस्तें घटा देनी चाहिए ??? अगर आप के मन में भी ये प्रश्न हैं तो इस ब्लॉग के माध्यम से यह समझने की कोशिश करेंगे कि आपको क्या करना चाहिए?

 पिछले दो-तीन वर्षो में म्यूच्यूअल फण्ड के प्रति लोगों का रुझान बढ़ा है और काफी सारे लोग अपनी बचत का एक हिस्सा हर महीने म्यूच्यूअल फण्ड के माध्यम से इक्विटी में निवेश कर रहे हैं.  पिछले कुछ महीनों का ट्रेंड देखें तो लगभग हर महीने 9-10 लाख नए SIP अकाउंट म्यूच्यूअल फण्ड इंडस्ट्री में जुड़ रहे हैं और ये आंकड़े मेरे जैसे लोगों को एक सुखद अनुभव देते हैं कि एक आम भारतीय सही तरीका समझ गया है अपनी बचत को कैपिटल मार्केट ले जाने का और उससे लम्बे समय में अपने लिए अच्छी सम्पति बनाने का. लेकिन एक डर जो हमेशा मेरे मन में रहती है कहीं फिर से लोग केवल इसलिए तो नहीं आ रहे कि पिछले 5 सालों में मार्केट ने कोई बड़ा झटका नहीं दिया और लोगों के अनुभव इन समयों में अच्छे ही रहे हैं !! कभी अगर बड़ा झटका मार्केट में लगा या लम्बे समय तक मार्केट में पॉजिटिव रिटर्न न बने तो क्या यह ट्रेंड बना रहेगा लोग अपने विश्वास को बनाये रखेंगे और अपना इन्वेस्टमेंट चलाते रहेंगे ? या फिर लोग SIP बंद कराने लगेंगे और फिर ट्रेडिशनल इन्वेस्टमेंट की तरफ फिर वापस चले जायेंगे जैसा पहले भी लोगों ने किया है. और इसीलिए आज मै यह ब्लॉग लिख रखा हूँ कि ऐसे लोगों के डर को दूर किया जाय.

म्यूच्यूअल फण्ड में SIP के माध्यम से जब निवेश शुरू होती है तो पहली समझ लोगों को यही दी जाती है कि यदि आप इक्विटी ओरिएंटेड म्यूच्यूअल फण्ड में SIP कर रहे हैं तो आपका नजरिया लम्बे समय का होना चाहिए , दूसरी बात यह होती है कि मार्केट में आने वाले उतार चढाव का फायदा भी SIP के माध्यम से आप को मिलता है जब मार्केट में गिरावट आती है तो फंड्स की NAV में भी गिरावट आती है और आप कम कीमत पर ज्यादा यूनिट्स खरीद पाते हैं और इस तरह से आपकी औसत लागत कम हो जाती है, तीसरी बात कि SIP के माध्यम से आप छोटी छोटी बचत कर लेते हैं और दीर्घ अवधि में चक्र्वृधि की ताकत से आश्चर्यजनक रूप से आपकी संपत्ति में  वृद्धि होती है.

यह बातें बोलने, लिखने और सुनने जितनी साधारण लगती हैं वास्तव में इनको पूरी तरह से लागू कर पाना उतना ही जटिल है. क्यूंकि मार्केट के उतार चढाव और समय के साथ एक आम निवेशक के विचार बदलने के कारण अक्सर लोग SIP लम्बे समय तक चला नहीं पाते और बंद करते खोलते रहते हैं या बीच-बीच में पैसे निकालते या डालते रहते हैं और यही एक मात्र कारण है कि बहुत कम ही लोग हैं जो लम्बे समय में इक्विटी मार्केट में निवेश का लाभ ले पाते हैं.

मार्केट में गिरावट आते ही लोगों के सोचने के तरीके बदल जाते हैं और जो लोग  कुछ दिन पहले SIP में 15%-18% के XIRR देख कर खुश हो रहा थे और SIP की क़िस्त बढ़ाने की सोच रहा थे वही SIP की क़िस्त घटाने या बंद करके पैसे निकालने के बारे में सोचने लगा है.

ऐसा मुख्यतः दो कारणों से होता है पहला निवेशको ने अपने आपको नहीं समझा है, मतलब लोग अपने रिस्क लेने की क्षमता को सही तरह से समझने में कोई गलती करते हैं और दूसरा लोग इक्विटी मार्केट के केवल एक पक्ष का समझते है और वो है अधिक रिटर्न लेकिन उसमे आने वाले उतार चढाव और उसका निवेश पर पड़ने वाले प्रभाव को सही ढंग से नहीं समझते. 

इक्विटी मार्केट में निवेश करने से पहले आपको यह दोनों चीजें सही तरह से समझनी चाहिए लेकिन अक्सर इसे न समझ पाने की गलती लोग करते हैं और इसी लिए अक्सर मार्केट में तेजी के समय ज्यादा निवेश करने वाले लोग मिलेंगे लेकिन मंदी के समय निवेश करने वाले बहुत कम हो जाते हैं साथ ही साथ समय से पहले पैसे निकालने वालों की संख्या बढ़ जाती है.

मै अपनी हर वर्कशॉप में ऐसे प्रश्नों को निवेशकों के सामने जरुर रखता हूँ जिससे के वो यह बात समझ पायें की निवेश में सबसे जरुरी है आपके रिस्क की समझ और उसको सहने की क्षमता का ज्ञान होना और इसके लिए मै एक छोटा से प्रयोग से लोगों को समझाने की कोशिश करता हूँ.

इस प्रयोग में लोगों से सिक्का उछालने के एक गेम का हिस्सा बनने के लिए कहा जाता है और उनसे तीन अलग अलग परिस्थितियों में गेम खेलने या न खेलने के विकल्प को चुनने के लिए कहा जाता है.

पहली परिस्थिति में  सिक्का उछालने पर हेड की स्थिति में 1000 रुपये मिलने का विकल्प है और अगर टेल आया तो 1000 रुपये उनको देने पड़ते हैं जो इस गेम का हिस्सा है और लोगों से पूछा जाता है कि कितने लोग इस गेम का खेलेंगे तो 40-50 लोगों में से केवल 1-2 हाथ उठते हैं

दुसरी बार उन्ही लोगों से पूछा जाता है  कि सिक्का उछालने पर हेड आये तो 2000 रुपये मिलेंगे और टेल आने पर सिर्फ 1000 रुपये देने होंगे तो इस गेम को खेलने के लिए 1-2 की जगह 6-7 लोग तैयार हो जाते हैं

तीसरी बार जब उन्ही लोगों से  हेड आने पर 5000 मिलने और टेल आने पर सिर्फ 1000 रुपये देने का विकल्प  दिया जाता है तो इस बार गेम खेलने वालों की संख्या काफी बढ़ जाती है.

अब आप आगे बढ़ने से पहले खुद को इस गेम का हिस्सा बन कर देखिये और फिर रिस्क को समझिये .

समझने वाली बात यह है कि सभी विकल्पों में रिस्क एक बराबर है, 1000 रूपये गवाने का रिस्क और उसकी सम्भावना भी उतनी ही है 50% लेकिन ऐसा क्या हुआ कि पहले गेम में लोग रिस्क लेने के लिए तैयार नहीं थे तीसरे गेम में रिस्क लेने वाले बढ़ गए. तो पहले गेम में आप रिस्क न लेने वाले व्यक्ति हैं लेकिन तीसरे में आप रिस्क लेने वाले व्यक्ति कैसे बन जाते हैं और जब की सारी परिस्थितियों में आपके 1000 रुपये का रिस्क एक ही जैसा है.

इस प्रयोग का सार यही निकलता है कि एक आम आदमी या आम निवेशक रिस्क नहीं समझता वह सिर्फ रिवार्ड समझता है, इसलिए रिस्क एक बराबर रहते हुए भी विभिन्न परिस्थितियों में वह अलग-अलग निर्णय लेता है.

जहाँ तक इक्विटी मार्केट में रिस्क की बात है तो शेयर मार्केट में रिटर्न बिना उतार चढाव के नहीं बनते. इसमें कितनी गिरावट आ सकती है इसका भी अंदाजा लगाना मुश्किल है लेकिन यह निश्चित है कि हर गिरावट के बाद शेयर मार्केट में तेजी आती है. पिछले सालों के अनुभव के आधार पर कहा जा सकता है कि इक्विटी मार्केट में हर साल किसी भी समय 10% की गिरावट संभव होती है, हर 2-3 सालों में 20% की गिरावट आती है , हर दशक में एक से दो बार यह गिरावट 30% तक हो सकती है और 50% या उस से ज्यादा गिरावट देखने के मौके आपको जिन्दगी में एक से दो बार मिलते हैं. यह रिस्क आपको इक्विटी मार्केट में या इस से जुड़े हुए किसी भी प्रोडक्ट में निवेश करने से पहले समझ लेना चाहिए.

SIP के इन्वेस्टर की सोच क्या होनी चाहिए 

दुनिया के सर्वश्रेष्ठ निवेशक वारेन बफेट ने सन 1997 में अपने शेयर होल्डर्स को एक पत्र में लिखा था कि यदि आप जिन्दगी भर बर्गर खाने का सोचते हैं और आप आलू या गेंहू पैदा करने वाले किसान नहीं हैं तो आप इनकी कीमतें बढ़ते हुए देखना चाहेंगे या घटते हुए, इसी तरह यदि आप को पता है कि आप अपने जीवन में समय-समय पर कारें खरीदते रहेंगे और आप एक कार बनाने वाली कंपनी के मालिक नहीं है तो आप कार की बढती कीमत पसंद करेंगे या घटती कीमत. अब थोडा मुश्किल सवाल, यदि आप अगले 10-20 साल तक स्टॉक मार्केट में निवेश करते रहने की योजना बना रहे हैं तो आप क्या चाहेंगे उनकी कीमते इस समय में बढती रहे या घट जाएँ ?

आगे उन्होंने लिखा कि एक उपभोक्ता के रूप में आप हमेशा चाहेंगे कि इनकी कीमते ना बढ़ें या घट जाए लेकिन जब आप इक्विटी  में निवेश करते है और आप को पता है कि आप अगले 10 साल के लिए इस कंपनी के शेयर खरीदते जायेंगे फिर भी आप को घटती कीमते अच्छी नहीं लगेंगी, आप हमेशा बढती कीमते पसंद करेंगे, आप हमेशा बुरा महसूस करेंगे जब शेयर की कीमते घटेंगी जब की एक प्रोस्पेक्टिव खरीददार के रूप में आपको घटती कीमते अच्छी लगनी चाहिये.

SIP का इन्वेस्टर एक प्रोस्पेक्टिवे खरीददार होता है क्यूंकि वह अगले 10-20-30 साल के निवेश का कार्यक्रम बना कर निवेश कर रहा है, वह महीने दर महीने एक निश्चित रकम अगले 10-20-30  निवेश करेगा, इसलिए जब मार्केट गिरेगी तो वह सस्ते दर पर निवेश करेगा और जब मार्केट बढेगी तो उसके फण्ड की वैल्यू बढ़ जाएगी. इसलिए उसे छोटी अवधि में होने वाले उतार चढाव को नजरअंदाज करना चाहिए, अगर किसी अवधि में बहुत अधिक रिटर्न बन रहे हैं तो भी बहुत खुश नहीं होना चाहिए और यदि गिरावट में फण्ड घाटे में चला जाए तो भी परेशान नहीं होना चाहिए. SIP में नुकसान या घाटा शुरुआत के कुछ सालों में दिखाई पद सकता है लेकिन जैसे जैसे आपका निवेश पुराना होता जायेगा SIP के नुकसान में जाने की संभावना कम होती जायेगी. 

जब आप लम्बी अवधि की SIP चला रहे होते हैं तो मार्केट के उतार और चढ़ाव आपके सहयोगी की तरह काम करते हैं दोनों अपने-अपने हिसाब से आपके लिए फायदेमंद ही होते हैं और यह बात समझने के लिए आप कोई भी ऐसी स्कीम उठा लीजिये जो कम से कम 15 साल पुरानी हो और जिस स्कीम ने  2-3 मार्केट के उतार चढाव (मार्केट साइकल) देखें हों, आप खुद ही समझ जायेंगे की लम्बी समय की SIP करने वाले निवेशक के लिए मार्केट के उतार चढाव अच्छे होते हैं.

अगर अभी भी आपको भरोसा नहीं हो रहा की आपकी SIP  इन उतार चढाव से होते हुए आपके लिए अच्छी संपत्ति का निर्माण कर सकती है तो एक म्यूच्यूअल फण्ड स्कीम का उदाहरण लेकर समझ लेते हैं. इसे समझाने के लिए थोड़ी पुरानी स्कीम लेते हैं जिससे की हम देख सकें कि कितनी समस्याओं और उतार चढ़ाव के बाद महीने की 1000 रुपये का निवेश समय के साथ कितनी संपत्ति बना देती है. मैंने जान बूझ कर इस स्कीम का नाम चार्ट से हटा दिया है जिस से कोई बिना रिस्क रिवार्ड समझे इसमें निवेश ना करे और ना ही किसी को यह गलत फहमी हो की मै किसी कंपनी के किसी प्रोडक्ट का विज्ञापन कर रहा हूँ. अगर किसी को इस स्कीम के बारे में जानकारी चाहिए तो वह मुझे ईमेल कर सकता है.


मैंने यह चार्ट 1 जनवरी 1995 से 1 अक्टूबर 2018 तक का लिया है. महीने के 1000 रुपये का मतलब साल के 12000 रुपये का निवेश पिछले 23 वर्षों से चलता रहा. इस बीच में 6 लोकसभा चुनाव, ना जाने कितने विधान सभा चुनाव, ना जाने कितने घोटाले, ग्लोबल और लोकल इवेंट, आतंकवादी घटनायें, कारगिल जैसे युद्ध, पोखरण के बाद अमेरिका और तमाम देशों द्वारा प्रतिबंध जैसे ना जाने कितने सारे कारणों ने शेयर मार्केट को कुछ दिनों और महीनों के लिए बहुत प्रभावित किया लेकिन इन उतार चढ़ावों के साथ यदि निवेश चलता रहा तो समय के साथ आप स्वयं देखिये इन्वेस्टमेंट की वैल्यू कैसे बढती गई. जिन्होंने अभी कुछ महीनों या 2-3 सालों से SIP स्टार्ट की है वो इस चार्ट को ध्यान से देखें, साल दर साल फण्ड वैल्यू कैसे घट-बढ़ रही है शुरू के 3 सालों में तो SIP के रिटर्न निगेटिव हैं लेकिन वही 3 साल की SIP जब 10-15-20 साल पुरानी हो जाती है तो कितने अद्भुत परिणाम देती है.

इसलिए आपको जितनी भी बुरी अच्छी खबरे सुनाई पड़ती हैं उनको नजरअंदाज करना सीखिये, इनसे प्रभावित होकर SIP बंद मत करिए, अपने निवेश के माध्यम यानी इक्विटी म्यूच्यूअल फण्ड को मत बदलिए. यूट्यूब, न्यूज़ पेपर और अन्य प्रसार माध्यमों को सुन कर अपने निर्णय को मत बदलिए. मै जानता हूँ यह कहना बहुत आसान है लेकिन इसे करना बहुत मुश्किल है, अगले 20-30 साल तक निवेश करते रहना बिना रुके, बिना किसी न्यूज़ से प्रभावित हुए, बहुत मुश्किल काम है इसलिए एक अच्छा निवेश सलाहकार खोजिये, उसको परखिये और उसके साथ बैठ कर अपने इन्वेस्टमेंट की प्लानिंग करिए, उसके अनुसार निवेश करिए, एक निश्चित अंतराल पर अपनी इन्वेस्टमेंट प्लानिंग का रिव्यु करिए. इन्ही बातों को ध्यान में रखिये आप जरुर अपने निवेश लक्ष्यों को प्राप्त करने में सफलता होगी. 

मैंने अंत में सलाहकार क्यूँ रखने की बात की, क्यूँ आपके लिए सलाहकार जरुरी है इसके बारे में किसी और ब्लॉग में विस्तार से चर्चा करेंगे?

आखिर में एक और जरुरी बात, SIP सिर्फ निवेश करने का तरीका है इस निवेश से आपको कब और कैसे निकलना है इसके बारे में आपके पास  या आपके निवेश सलाहकार के पास योजना अवश्य होनी चाहिये.

इन बातों पर जरुर विचार करिए अन्यथा आपके इन्वेस्टमेंट की हालत महाभारत के अभिमन्यु के जैसी हो सकती है जिसने चक्रव्यूह में अन्दर जाने के बारे में अपने पिता से सुना था लेकिन चक्रव्यहू तोड़ कर विजयी होने के बारे में उसने कभी ना सुना था ना सोचा था.

आशा है आप इस ब्लॉग को पढने के बाद रिस्क को सही तरह से समझेंगे, SIP कैसे काम कर सकती है उस पर आपका विश्वास दुबारा स्थापति होगा और आप अपने इन्वेस्टमेंट से सही समय पर निकलने और अपने निवेश लक्ष्यों को हासिल कर पाने में सफल होंगे.

ढेर सारी शुभ कामनायें !!

यदि आपको मेरे ब्लॉग अच्छे लगें तो अपने मित्रों और शुभ चिंतकों को अवश्य भेजें.

Monday, October 1, 2018

शेयर बाज़ार में आई गिरावट, आप को क्या करना चाहिए?




अगर आप लम्बे समय के नजरिये से इक्विटी मार्केट में लगातार निवेश करते हैं तो आपके गलत होने की सम्भावना बहुत कम होती है और यदि आपने निवेश गिरती हुई मार्केट में किया है तब तो आप कभी गलत हो ही नहीं सकते.

एक खबर आती है और शेयर बाज़ार जो तेजी से  दौड़ रहा था उस पर ब्रेक लग जाती है और वो U टर्न ले लेती है, जब लोग अपने पोर्टफोलियो को देखते हैं तो उन्हें लगता है कि बाज़ार से ज्यादा उनके फंड्स या शेयर गिर गए हैं.ऐसा क्या हो रहा है. सभी न्यूज़ चैनेल और समाचार पत्र बाज़ार में हुई गिरावट को फ्रंट न्यूज़ बना कर छापना शुरू कर दिए हैं ? आइये समझते हैं.

वैसे बाज़ार में गिरावट तो जनवरी महीने से शुरू हो गई थी लेकिन सेंसेक्स और निफ्टी को बढ़ता देख लोग भ्रम में थे की बाज़ार तेज है. जब की मिड और स्माल कैप, मेटल्स और कुछ सेक्टर्स में गिरावट लगातार जारी थी. पहला दुश्मन बाज़ार का बजट बना जब लॉन्ग टर्म गेन पर टैक्स लगा, उसके बाद सेबी के म्यूच्यूअल फण्ड योजनाओं को दुरुस्त करने में फण्ड हाउसेस ने मिड कैप और स्माल कैप स्टॉक से थोड़ी पोजीशन कम की उसके बाद तेल की धार ने बाज़ार का मूड ख़राब किया फिर रूपया जो अपने साथ बाज़ार को भी हिला दिया, ग्लोबल ट्रेड वॉर और अंत में आई बारी डेब्ट मार्केट से बुरी खबर आने की. डेब्ट मार्किट की खबर ने  तो मार्केट की जबरदस्त धुलाई कर दी.

तो यहाँ समझने वाली बात यह है तेल का दाम बढ़ना और रुपये का कमजोर होना अर्थव्यस्था में महंगाई बढ़ने और करेंट अकाउंट डेफेसिट बढ़ने का कारण हो सकते हैं लेकिन इनका प्रभाव कुछ सेक्टर्स के लिए पॉजिटिव होता है कुछ के लिए नेगेटिव और कुछ सेक्टर्स पर इसका को कोई प्रभाव नहीं पड़ता. लेकिन जो खबर क्रेडिट मार्केट से आई जहाँ पर IL&FS जो की इन्फ्रास्ट्रक्चर क्षेत्र में प्रोजेक्ट फाइनेंसिंग में काफी वृहद स्तर पर काम करने वाली संस्था है, वो सिडबी के लोन का रीपेमेंट डिफ़ॉल्ट कर गई, जब की यह कंपनी क्रेडिट रेटिंग एजेंसी के अनुसार AAA रेटेड थी. इस खबर ने बाज़ार को बहुत ज्यादा नर्वस कर दिया क्यूंकि इस कम्पनी ने लगभग 90,000 करोंड़ मार्केट से उठाये हुए हैं, इस कंपनी के पेपर्स में  निवेश करने वाले बैंक, इंश्योरेंस, म्यूच्यूअल फण्ड, बड़े निवेशक और अन्य वित्तीय संस्थायें हैं. जब तक लोग ऐसी बुरी खबर का विश्लेषण करते तब तक यह पता चलता है कि DSP AMC ने DHFL के पेपर्स को कम दामों में बेच दिए. अब  बाज़ार इन दोनों खबरों को आपसे में जोड़ कर कुछ इस तरह से देखा है की डेब्ट मार्केट में कोई बड़ा संकट है, NBFCs के बारे में तरह-तरह की खबरे आनी शुरू होती हैं और देखते ही देखते मार्केट में बहुत सारे शेयर्स 20-30-40% तक गिर जाते हैं. लोग इस समस्या को बढ़ा चढ़ा कर पेश करने लगे, हर बैंक और NBFCs के लोन बुक और इन्वेस्टमेंट बुक के बारे में न्यूज़ फैलने लगी. लेकिन यह सब बाते सिर्फ यह दर्शाती हैं की बाज़ार में जरुरत से ज्यादा नर्वसनेस है.
और यही नर्वसनेस एक निवेशक का सबसे बड़ा दुश्मन होता है.

इक्विटी के निवेशक का सबसे बड़ा दुश्मन उसका इमोशन-

जब-जब शेयर बाज़ार में गिरावट आती है, लोग डर जाते हैं और इक्विटी फंड्स या शेयर्स से पैसे निकाल लेते हैं, शुरू के कुछ दिन की गिरावट में डर नहीं लगता लेकिन जब यह गिरावट बढती है तो लोग किसी भी रेट में सेल कर के निकलना चाहते हैं और ऐसी परिस्थिति में ख़राब कंपनियों के भाव तो गिरते ही हैं अच्छे शेयर्स भी ऐसे मौकों पर गिर जाते हैं और यही समय होता है अपने डर से निकल कर अच्छे शेयर या अच्छे फंड्स खरीदने का.

इक्विटी मार्केट में निवेश करने वाले हर व्यक्ति को यह बात अच्छे से पता होनी चाहिये कि मार्केट में गिरावट भी तेज होती है और बढ़त भी तेज हो सकती है इसीलिए इक्विटी को वोलेटाइल कहा जाता है.चलिए ठीक है यह तो आप को पता ही की इक्विटी में गिरावट आती है और वह वोलेटाइल होती है लेकिन अब प्रश्न यह उठता है कि बाज़ार में गिरावट कितनी आ सकती है ? इस प्रश्न का जवाब भारत की नहीं अमेरिका की इक्विटी मार्केट जो 100 वर्षों से ज्यादा पुरानी है से मिल सकता है " एक इक्विटी इन्वेस्टर को ,साल में कम से कम एक बार मार्केट में 10% की गिरावट, 2-3 सालों में 20% तक की गिरावट, 30% तक की गिरावट हर दस सालों में एक या दो बार और 50% तक की गिरावट अपने जीवन काल में एक या दो बार देखने के लिए तैयार रहना चाहिए."

अगर आप यह रिस्क उठा सकते हैं तभी इक्विटी मार्केट आपको रिवॉर्ड देती है.

मार्केट में इस साल अभी तक कितनी गिरावट आई ?


बीएसइ सेंसेक्स में अपने उपरी स्तरों से लगभग 7% की गिरावट  आ चुकी है, बीएसइ मिडकैप इंडेक्स अपने उपरी स्तरों से 20% गिर चूका है और वहीँ बीएसइ स्मालकैप इंडेक्स लगभग 30% टूट चूका है , वहीँ कई सेक्टर जैसे NBFC, PSU Banking, OMC, Metal, Infra जैसे तमाम सेक्टर में भी भारी गिरावट आई है. (28th Sept,18)

अब ऐसे हालात में एक आम निवेशक को क्या करना चाहिए ? उसे शेयर बाज़ार से पूरे पैसे निकाल लेने चाहिये या बाज़ार में आई गिरावट को मौका समझ के और पैसे लगाने चाहिये या कुछ नहीं करना चाहिए शांत हो कर बैठे रहना चाहिए ?

अब क्या करे निवेशक-

सबसे पहली बात जो शायद हर  तेजी की मार्केट में लोग भूल जाते हैं कि जब निवेश का नजरिया आपका  लम्बा हो तभी इक्विटी में निवेश करें और यदि आप अपने फंड्स या शेयर्स से 15-20% की सालाना रिटर्न की अपेक्षा रखते हैं तो मार्केट में कोई ऐसी गिरावट आये तो डरें नहीं बल्कि मौका समझ कर कुछ और इन्वेस्ट करें. इक्विटी मार्केट ऐसे ही चलती है और ऐसी उठा पटक के साथ ही  पिछले 38-39 साल में सेंसेक्स 100 से 36000-37000 के स्तर पर पहुंचा है.

न्यूज़ पर आधारित इन्वेस्टमेंट ना करें सिर्फ अपने लक्ष्यों को ध्यान में रख कर इन्वेस्ट करें-

अगर आपके वित्तीय लक्ष्य 10-15-20 साल आगे के हैं तो आज ILFS में क्या हो रहा है या बैंकिंग, आईटी, फार्मा में क्या हो रहा है कोई मायने नहीं रखता और अगर आपको मेरी बात पर भरोसा नहीं है तो पिछले 10-20 साल का इतिहास देख लीजिये. क्या-क्या नहीं हुआ, कितनी सरकारे आईं और गई, कितने घोटाले सामने आये, कितने वित्तीय संकट आये, कितनी प्राकृतिक आपदा आई, कितने आतंकवादी हमले हुए लेकिन देश बढ़ता गया और मार्केट भी बढती गई. इसलिए लक्ष्य आपके लम्बे हों तो ऐसी खबरों को या तो नजरअंदाज कर दें या उस मौके का फायदा उठाये. हाँ यदि आप छोटी अवधि 2-4 साल वाले निवेशक हैं तो फिर इक्विटी  मार्केट से दूरी ही बना कर रखें.


जब बाज़ार में डर होता है तो अच्छी खबरों को भी नजरअंदाज कर देता है, अब आप समझिये की क्या अच्छी खबरें बाज़ार में आ सकती हैं जो मार्केट का मूड बदल सकती हैं

1- मानसून अच्छा होना, हमारी अर्थव्यवस्था और खासकर कृषि क्षेत्र और रूरल इकॉनमी  के लिए एक अच्छी खबर होती  है और ऐसी अच्छी खबर आने पर बाज़ार में तेजी लौट सकती है.

2- पिछले कुछ सालों से कॉर्पोरेट्स रिजल्ट अच्छे नहीं आ रहे थे लेकिन अप्रैल से जुलाई के महीने में कॉर्पोरेट अर्निंग में लगभग 24% की बढ़ोतरी हुई है और अनुमान यही है कि अगले 1-2  साल  में कॉर्पोरेट अर्निंग ग्रोथ अच्छी दिखनी चाहिए. इसीलिए दूसरे क्वार्टर (July-Sept) के परिणाम अच्छे आये तो भी बाज़ार का मूड बदल सकते हैं.

3- रिफॉर्म्स  जैसे सरकारी बैंकों का मर्जर, NPAs की समस्या का समाधान, न्यू टेलीकॉम पालिसी, इन्फ्रास्ट्रक्चर, डिफेन्स और पॉवर सेक्टर में बढ़ते निवेश.

4- रुपये की गिरावट का पॉजिटिव इम्पैक्ट आईटी और एक्सपोर्ट सेक्टर पर अच्छा होगा और इस कारण इन सेक्टर्स की कमाई बढ़ सकती है

5- कच्चे तेल के दामों में गिरावट या डॉलर को वापस 70 रुपये  के स्तर पर वापस आना भी मार्केट का मूड बदल सकते हैं

SIP ना बंद करें-

जो लोग पिछले 2-4  वर्षों से SIP कर रहे हैं वो शायद अपने फंड्स को जो कुछ समय पहले बहुत बढे हुए दिख रहे थे उनके नीचे आने से उदास या निराश हो गए हों तो उनको घबड़ाने की जरुरत नहीं है कभी भी अपनी SIP समय से पहले मत बंद करिए, जो लोग पिछले 6-7 या और अधिक वर्षों से SIP कर रहे हैं वो यह बात अच्छी तरह से समझ रहे होंगे कि यह समय SIP बंद करने का नहीं बल्कि थोडा और पैसे डालने का है.



इक्विटी में निवेश करने वाले को एक मंत्र  हमेशा याद रखना चाहिए-

"जब बाज़ार में खबरे बुरी आती हैं तो आपको खरीद के भाव अच्छे मिलते हैं और जब खबरे अच्छी आती हैं तो खरीद के भाव बुरे मिलते हैं."

जिन्होंने पहले से निवेश किया हुआ उन्हें धैर्य रखना चाहिए, अपने पोर्टफोलियो को इस समय रिव्यु करें और अगर हो सके तो जब भी मार्केट में ऐसे करेक्शन मिलें, कुछ पैसे जरुर इन्वेस्ट करें.



Tuesday, September 11, 2018

फाइनेंसियल प्लानिंग जरुरी है


आपकी बचत को सही से निवेश सबसे अच्छा तरीका होता है फाइनेंसियल प्लानिंग. फाइनेंसियल प्लानिंग की शुरुआत निवेशकों को अपनी पहली नौकरी और पहली सैलरी से शुरू कर देनी चाहिए, जब की 100% लोग अपनी पहली नौकरी और पहली ही नहीं कई वर्षों की सैलरी का उपयोग सबसे पहले अपने शौक के लिए ही करते हैं . यदि एक आम आदमी पहली सैलरी से ही फाइनेंसियल प्लानिंग का रास्ता चुन ले तो वो अपनी आय के अनुसार अपनी जरूरतें भी पूरी कर सकता है, शौक भी पूरे कर सकता है और अपने भविष्य के लिए भी बेहतर योजनायें बना सकता है. फाइनेंसियल प्लानिंग के लिए सही निवेश की समझ और अनुशासन जरूरी होता है. निवेश से पहले अपने लक्ष्य तय करना और फिर निवेश शुरू करना चाहिए . बिना प्लानिंग से निवेश से उचित परिणाम मिलने मुश्किल होते हैं, वो कुछ ऐसा ही होता है कि आपने कार निकाल ली है सड़क पर लेकिन आपको पता ही नहीं आपको कब, कहाँ और क्यूँ पहुँचाना है . रिटायरमेंट की प्लानिंग कम उम्र से ही शुरु कर देनी चाहिए. युवाओं को पहली सैलरी से ही निवेश करना शुरु करना चाहिए. कम उम्र में छोटा निवेश भी लंबी अवधि में फायदेमंद साबित होता है. सरकारी सोशल सिक्योरिटी जिसके लिए लोग इतना परेशान रहते हैं उसकी जगह आप शुरू से अपने लिए योजनाबद्ध तरीके से निवेश करते हैं तो ये तरीका ज्यादा फायदेमंद हो सकता है. आपको अपनी सोशल सिक्योरिटी खुद हासिल करनी चाहिए, यह ज्यादा भरोसेमंद और फलदायी तरीका होता है और जिसको आप उचित फाइनेंसियल प्लानिंग से हासिल कर सकते हैं. बचत और निवेश में देरी से उसके फायदे कम होते जाते हैं, इसलिए रिटायरमेंट प्लानिंग अपनी पहली सैलरी के साथ ही शुरू करें.
रिटायरमेंट लॉन्ग टर्म लक्ष्य है, युवा रहते हुए ही बचत की आदत डालें. पीपीएफ ईपीऍफ़ के साथ साथ दूसरे प्रोडक्ट में भी निवेश करें सिर्फ इन प्रोडक्ट्स में निवेश कर के आप अपने लिए सही रिटायरमेंट फण्ड नहीं बना सकते.

यदि कोई 25 वर्ष का व्यक्ति अपनी नौकरी, प्रोफेसन या व्यवसाय Rs. 20000/माह से शुरू करता है और उसकी आय अगले 35 वर्ष तक 8% सालाना की दर से बढती है तो वह अगले 35 साल में 4.13 करोड़ रूपये कमायेगा और यदि वह पहले महीने से अपनी आय का 15% यानी 3000 रुपये की बचत से शुरुआत करता है और साल दर साल अपनी आय का 15% बचत करता जाता है और ऐसी जगह निवेश करता है जो कि उसे 12% का रिटर्न बना के दे दे तो रिटायरमेंट के समय उसके पास कुल 3.83 करोड़ रूपये होंगे. यानी जीवन भर जितना कमाया उसके बराबर का फण्ड आप सिर्फ सही समय से बचत और निवेश शुरू करके बना सकते हो. अगर यही कम शुरू करने में आप 10 साल की देर करते हो तो आपका रिटायरमेंट फण्ड कम हो कर सिर्फ 2 करोड़ रह जाएगा.

एक बात याद रखें कि आपको आपकी हर जरुरत के लिए बैंक क्रेडिट उपलब्ध कर देगा लेकिन आपकी रिटायरमेंट फंडिंग कोई भी बैंक नहीं करेगा.
टैक्स प्लानिंग और फाइनेंसियल प्लानिंग में फर्क होता है. अक्सर लोग टैक्स प्लानिंग साल के आखिर में करते हैं. केवल टैक्स बचाना फाइनेंशियल प्लानिंग नहीं होता है, टैक्स प्लानिंग आपकी फाइनेंशियल प्लानिंग का हिस्सा होना चाहिए. मजबूरी में टैक्स प्लानिंग ना करें. म्यूच्यूअल फण्ड की टैक्स सेविंग योजनायें- ईएलएसएस से टैक्स बचत के साथ साथ लम्बे समय में अच्छे रिटर्न भी मुमकिन होते है. टैक्स प्लानिंग से पहले अपने लक्ष्यों की पहचान करें और लक्ष्य के मुताबिक अलग अलग प्रोडक्ट्स में निवेश करें. टैक्स बचत के साथ साथ मजबूत फाइनेंशियल प्लानिंग बेहद जरूरी होता है.
जैसा कि हमने पहले भी कहा है कि रिटायरमेंट के लिए जल्दी बचत शुरू करनी चाहिए, लेकिन रिटायरमेंट के बाद भी आपकी इन्वेस्टमेंट प्लानिंग बहुत जरुरी है .रिटायरमेंट के बाद भी अच्छे रिटर्न की जरूरत होती है, भविष्य की लाइफ स्टाइल और महंगाई को देखकर प्लानिंग करें. सही निवेश से भविष्य में अधिक रिटर्न मिलने की संभावनाएं रहती है. निवेश करते हुए इन बातों का जरुर ध्यान रखें - अपने टाइम होराइजन से मैच करने वाला प्रोडक्ट ही लें, इक्विटी में 2 साल के लिए निवेश फायदेमंद नहीं होता है, 5-10-20 साल के लिए रिकरिंग डिपॉजिट खोलना गलत होता है, लंबे समय के लिए फिक्स्ड इनकम प्रोडक्ट सही नहीं होते, डेट छोटी अवधि के लिए सही प्रोडक्ट है, महंगाई और टैक्स को ध्यान में रखकर निवेश करें. इंश्योरेंस प्लानिंग भी फाइनेंसियल प्लानिंग का जरुरी हिस्सा है . इंश्योरेंस से पहले पूरी तरह जांच पड़ताल करें. इंश्योरेंस को लेकर सही सलाह लें. सिर्फ हेल्थ इंश्योरेंस और टर्म प्लान लें, इसके अलावा इंश्योरेंस के नाम पर दिए जाने वाले प्रोडक्ट्स ना तो आपके परिवार को आर्थिक सुरक्षा दे सकते हैं और ना ही आपके लिए उचित फण्ड बना सकते हैं . इसलिए रिटायरमेंट, बेटी की शादी, बच्चों की पढाई का सोचकर इंश्योरेंस में निवेश न करें.
फाइनेंसियल प्लानिंग जीवन पर्यन्त चलने वाली प्रक्रिया है क्यूंकि जब तक जीवन है पैसे की जरुरत और उसका सही संचालन आवश्यक है. इसलिए अपने जीवन में आर्थिक लक्ष्य,बचत और अवधि का तालमेल बने होना चाहिए. लक्ष्यों की प्राथमिकता तय करनी चाहिए. निवेश के सही प्रोडक्ट का चुनाव करना चाहिए . जिस से आपको जीवन में आर्थिक समस्यों का सामना कम से कम करना पड़े.
म्युचुअल फंड्स को अपने फाइनेंसियल प्लानिंग के लक्ष्यों को हासिल करने का माध्यम बनाना चाहिए . लेकिन कुछ बेसिक बातों का ध्यान जरुर रखें . छोटे समय के निवेश के लिए इक्विटी फंड्स को न चुनें, इक्विटी मार्केट के छोटी अवधि में दिए गए रिटर्न को ध्यान में रख कर निवेश ना करें. 3-5 साल का नजरिया हो तो सिर्फ 20-40% ही इक्विटी में निवेश करें. म्यूच्यूअल फण्ड के माध्यम से इक्विटी, हाइब्रिड,डेब्ट, लिक्विड, एसेट एलोकेशन फण्ड से अपनी फाइनेंसियल प्लानिंग के अनुसार निवेश करें.

Friday, August 31, 2018

SIP करने वालों की कभी हार नहीं होती



श्री सोहन लाल द्विवेदी  जी की कविता "कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती" से प्रेरणा ले कर कुछ पंक्तियाँ  SIP और SIP के माध्यम से निवेश करने वालों या इसके बारे में सोचने वालों के लिए लिखने की एक कोशिश है, आशा है आपको पसंद आयेंगी.



इक्विटी मार्केट से डर कर निवेशक की नैया पार नहीं होती,
SIP करने वालों की कभी हार नहीं होती.

छोटी रकम जब बैंक अकाउंट से निकलती है
इक्विटी मार्केट के साथ, सौ बार गिरती और संभलती है
अर्थ व्यवस्था  का विश्वास रगों में साहस भरता है
चढ़ कर गिरना , गिर का चढ़ना फिर न अखरता है
आखिर में निवेशक की बचत बेकार नहीं होती
SIP करने वालों की कभी हार नहीं होती.



बुरी खबरों पर शेयर बाज़ार जब डुबकियाँ लगाता है
NAV का गिरना लोगों को डराता है
गिरावट में यूनिट्स भी अधिक मिल जाते हैं
कुछ दिन बाद मार्केट भी मंदी से उबर आते हैं
झोली निवेशक की खाली हर बार नहीं होती
SIP करने वालों की कभी हार नहीं होती.



वोलेटिलिटी इक्विटी मार्केट की सच्चाई है, स्वीकार करो
गिरावट आने पर निवेश हर बार करो
जब तक लक्ष्य न हासिल हो, SIP को न त्यागो तुम
मार्केट गिरते ही SIP तोड़ के न भागो तुम
मंदी में टिके बिना, जय जय कार नहीं होती
SIP करने वालों की कभी हार नहीं होती.



लक्ष्य बड़े हों या छोटे सभी मिल जाते हैं
जब  छोटी-छोटी बचत भी  सही दिशा पाते हैं
थोड़ी बचत, थोडा धैर्य, थोडा अनुशासन ही कामयाबी दिलाते हैं
जब भी जरुरत हो पैसे भी आसानी से मिल जाते हैं
मार्केट में समय दिये बिना धन की बौछार नहीं होती
SIP करने वालों की कभी हार नहीं होती.



महंगाई का डर आम आदमी को सताता है
पढाई के खर्चे देख के मन घबड़ाता  है
रिटायरमेंट, पेंशन, दवा के खर्चे भी याद आते हैं
जो समय से SIP करना भूल जाते हैं
जल्दी SIP शुरू करने के लिए, यूँ ही मनुहार नहीं होती
SIP करने वालों की कभी हार नहीं होती.



ट्रेडिशनल तरीके निश्चित ब्याज भले दिलाते हैं
लम्बे समय में इक्विटी से वो बहुत पीछे छूट जाते हैं
महंगाई भी उन पर भारी पड़ जाती है 
और टैक्स की लागत भी रिटर्न घटाती है
ऐसे ही इक्विटी में रियल रिटर्न की भरमार नहीं होती
SIP करने वालों की कभी हार नहीं होती.



पॉवर ऑफ़ कम्पाउन्डिंग की ताकत पहचानो तुम
SIP, बचत और निवेश का सुगम तरीका है मानो तुम
अपनी हर जरुरत के लिए प्लान कर डालो आज
कल कर देंगे बोल के अच्छे काम को न टालो आज
फिर भविष्य की चिंता करने की दरकार नहीं होगी
SIP करने वालों की कभी हार नहीं होगी.


आशा है आप तक निवेश के तरीके, SIP के फायदे, SIP के लक्ष्यों के बारे में जो बात पहुँचाना चाहता था उसमे सफल हुआ हूँ, अगर आप को ब्लॉग पसंद आये तो अपने मित्रो, संबंधियों और जानने वालों को जरुर फॉरवर्ड करें.SIP के बारे में अधिक जानकारी के लिए मेल करें या कमेन्ट बॉक्स में लिखें.धन्यवाद!!!


Disclaimer:  Mutual Fund investments are subject to market risks, read all scheme related documents carefully before investing.

Tuesday, July 17, 2018

कैपिटल गेन टैक्स बचाने के लिए क्या टैक्स सेविंग बांड सही हैं ?




आज हम बात करेंगे प्रॉपर्टी (जमीन या मकान) बेचने से हुए लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन पर लगने वाले टैक्स से बचने के लिए कैपिटल गेन बांड्स में निवेश करने के तरीके के बारे में और यह समझने का प्रयास करेंगे कि क्या  कैपिटल गेन टैक्स से बचने के लिए इस माध्यम में निवेश करना चाहिए या नहीं ?

किसी भी कैपिटल एसेट् को बेचने या ट्रान्सफर करने से  होने वाले लाभ को कैपिटल गेन कहा जाता है और उस पर लगने वाले टैक्स को कैपिटल गेन टैक्स कहा जाता है . कैपिटल गेन को टैक्स के उद्देश्य से उनके होल्डिंग पीरियड (अवधि) के आधार पर दो तरह से जाना जाता है , पहला शार्ट टर्म कैपिटल गेन और दूसरा लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन.

कोई भी जमीन या मकान जो खरीदने के दो साल बाद बेची जाती है तो उस पर हुए लाभ को हम लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन कहते हैं अगर यही प्रॉपर्टी दो साल के अन्दर बेच दी जाय तो उस पर हुए लाभ को शार्ट टर्म कैपिटल गेन कहते हैं.

प्रॉपर्टी पर हुए लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन पर टैक्स की दर 20% है और इस टैक्स से बचने के दो तरीके हैं

1) धारा 54 के अन्तर्गत निर्धारित समय में  मकान खरीदने  या बनवाने पर- प्रॉपर्टी बेचने के दिन से एक वर्ष पहले से लेकर दो वर्ष बाद तक अगर मकान बेचने से मिली धनराशि से नया मकान खरीद लिया जाता है तो धारा 54 के अंतर्गत लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन से छूट मिल जाती है, इसी प्रकार से प्राप्त धन राशि से यदि प्रॉपर्टी बेचने के दिन से तीन वर्ष के अन्दर नया मकान बनवा लिया जाता है तो भी कैपिटल गेन टैक्स से छूट मिल जाती है. धारा 54 के अंतर्गत छूट लेने के लिए कुछ बातों का ध्यान रखना होता है, पहला प्रॉपर्टी बेचने से मिली धन राशि में से जितनी धन राशि का उपयोग मकान बनवाने या खरीदने में किया जायेगा  छूट उतने तक ही मिलती है, दूसरा अगर मकान बनवा रहे हैं तो उसका निर्माण पूराने मकान के बेचने के दिन से तीन साल के अन्दर पूरा हो जाना चहिये और तीसरा छूट केवल एक ही मकान में उपयोग की गई राशि पर मिलेगी.

2) धारा 54EC के अन्तर्गत कैपिटल गेन बांड में निवेश करने पर- प्रॉपर्टी बेचने पर हुए लाभ पर लगने वाले टैक्स से बचने का दूसरा तरीका है कैपिटल गेन बांड में निवेश करना. धारा 54EC के अन्तर्गत NHAI और REC द्वारा जारी किया जाने वाले टैक्स सेविंग बांड में लाभ की राशि निवेश करके कैपिटल गेन से बचा जा सकता है. इन बांड्स में एक व्यक्ति के लिए निवेश करने की अधिकतम सीमा  50 लाख रुपये है यदि बेचीं गई प्रॉपर्टी  जॉइंट होल्डिंग मोड में रही हो तो प्रत्येक होल्डर के लिए यह सीमा 50 लाख की हो जाती है.

इन बांड्स पर निश्चित दर से ब्याज मिलता है क्यूंकि यह सरकारी कंपनियों द्वारा जारी किया गए बांड्स होते हैं इसलिए यह पूरी तरह से सुरक्षित होते हैं,  वित्त वर्ष 2018-19 यानी इस वर्ष से इन बांड्स की ब्याज दर बढ़ा कर 5.75% कर दी गई है पिछले वर्ष यह 5.25% था, साथ में ही इस वित्त वर्ष से इन बांड्स का लॉक इन पीरियड 3 साल से बढ़ा कर 5 वर्ष कर दिया गया है.

कैपिटल गेन बांड्स से ब्याज हर वर्ष के अंत में निर्धारित दर से मिलता है और इस पर मिलने वाला ब्याज या इंटरेस्ट टैक्सेबल होता है.

कैपिटल गेन बांड पर ब्याज दर इतनी कम क्यूँ है ?

कैपिटल गेन बांड ऐसी सरकारी कंपनियां जारी करती हैं जो भारत के आधारभूत ढांचे जैसे सड़क, पोर्ट एवं  बिजली बनाने या उनको पूंजी उपलब्ध कराने का काम करती  हैं.  सरकार ने कैपिटल गेन बांड के माध्यम  से इन कंपनियों को बाजार से  कम ब्याज दरों पर वर्किंग कैपिटल उपलब्ध कराती है . इस तरह से एक तरफ एक आम आदमी को कैपिटल गेन टैक्स से राहत मिलती है तो दूसरी तरफ सरकारी कंपनियों को सस्ती दरों पर बाजार से आसानी से पैसे उठाने का साधन मिलता है.

अब अगर एक निवेशक की तौर पर किसी को कैपिटल गेन बांड पर मिलने वाली ब्याज  (5.75%) कम लग रही  हो या इसका लॉक इन पीरियड (5 वर्ष ) ज्यादा लग रहा हो तो उसे यह बात समझ लेना चाहिए कि सरकार एक हाथ से आपको अगर कोई  छूट देती है तो दूसरी तरफ से उससे हुई हानि की क्षति पूर्ति के लिए कुछ आप से कुछ लाभ ले भी लेती है.

इसीलिए सरकार ने इन बांड्स पर ब्याज दर कम रखी है और इनका लॉक इन पीरियड भी बढ़ा कर ५ साल कर दिया है.

कैपिटल गेन बांड्स के बारे में कुछ और महत्वपूर्ण बातें-

एक बांड की कीमत 10,000 रुपये होती है
एक व्यक्ति अधिकतम 50 लाख रुपये के बांड्स ही खरीद सकता है
कैपिटल गेन बांड्स डी-मैट फॉर्म में या फिजिकल फॉर्म  में लिए जा सकते हैं
कैपिटल गेन बांड्स से पैसे 5 साल बाद ही निकाल सकते हैं
कैपिटल गेन बांड्स की सेकेंडरी मार्केट में ट्रेडिंग नहीं होती यानी किसी को ट्रान्सफर नहीं किये जा सकते
कैपिटल गेन बांड्स के बदले लोन भी नहीं लिया जा सकता
इन बांड्स पर ब्याज साल में एक बार मिलता है जो की टैक्सेबल होता है



कैपिटल गेन टैक्स बचाने के लिए क्या टैक्स सेविंग बांड सही हैं ?

अब बात आती है कि क्या टैक्स बचाने के लिए कैपिटल गेन बांड्स में पैसे लगाने चाहिए ? इस का उत्तर जानने के लिए क्यूँ ना हम टैक्स बचत से लेकर बांड से मिलने वाले पोस्ट टैक्स ब्याज का हिसाब कर लें और समझ लें कि टैक्स सेविंग बांड में निवेश कर के आपको कुल कितना फायदा मिलेगा , क्यूंकि टैक्स रेट, बांड पर ब्याज दर और बांड की परिपक्वता (maturity) सब पहले से ही निश्चित है तो यह पता करना बहुत सरल है.


तो आइये कैलकुलेट कर के देखते हैं...

Particular Amount in Rs.
Amount of Capital Gain 5000000
Amount Invested in C Gain Bond 5000000
LTCG Saved 20.6% 1030000
Interest Earned in 1st Year 287500
Interest Earned in 2nd Year 287500
Interest Earned in 3rd Year 287500
Interest Earned in 4th Year 287500
Interest Earned in 5th Year 287500
Total Interest Earned 1437500
Post Tax Return 5% Slab 1362750
Post Tax Return 20% Slab 1138500
Post Tax Return 30% Slab 989000

Total Benefit (Post Tax Interest + Tax Saving)

Total Benefit for 5% Slab
2392750
Total Benefit for 20% Slab 2168500
Total Benefit for 30% Slab 2019000


इस प्रकार से आप देख सकते हैं कि बांड में 50 लाख रुपये का निवेश कर के 10.30 लाख की टैक्स बचत हो गई उसके बाद प्रति वर्ष ब्याज से कमाई  287500 रुपये होगी, इस प्रकार से 5 वर्षों में कुल लाभ (ब्याज और टैक्स बचत ) 2467500 रुपये होती है इसमें से ब्याज पर लगने वाले टैक्स को निकाल दें तो 5% की ब्याज दर वाले व्यक्ति को 2392750 रुपये का कुल लाभ होगा, 20% वाले स्लैब पर 2168500 रुपये का कुल लाभ होगा और 30% वाले को सिर्फ 2019000 रुपये का लाभ होगा.

अक्सर हम लोग लाभ को प्रतिशत में ही समझते हैं..तो आइये वो भी देख लेते हैं

5% वाले स्लैब पर 5 साल में  कुल लाभ 47.85% - 9.57% साधारण ब्याज  या 8.1% चक्र्वृधि ब्याज 

20% वाले स्लैब पर 5 साल में कुल लाभ 43.37%-  8.67% साधारण ब्याज या 7.5% चक्र्वृधि ब्याज 

30% वाले स्लैब पर 5 साल में कुल लाभ 40.37%- 8.05% साधारण ब्याज या 7% चक्र्वृधि ब्याज 



अब आते हैं अपने मूल प्रश्न पर कि क्या टैक्स सेविंग बांड में निवेश करना चाहिए ? तो इसका जवाब तो आप ही के पास है यदि आप 30% टैक्स स्लैब में हैं और आपके पास ऐसे निवेश के विकल्प हैं जहाँ से आप 5 वर्ष में 7% से ज्यादा टैक्स फ्री रिटर्न बना सकते हैं तो टैक्स सेविंग बांड में आपको निवेश नहीं करना चाहिए और अगर आप को लगता है कि पोस्ट टैक्स 7% रिटर्न बनाना संभव नहीं है तो फिर आप को कैपिटल गेन बांड में ही निवेश करना चाहिए. इसी प्रकार से यदि 20% स्लैब वाले व्यक्ति को लगे कि वह 5 वर्ष में 7.5% से ज्यादा रिटर्न बना पायेगा  और 5% वाले स्लैब को लगे कि वह 8.1% से ज्यादा रिटर्न बना पायेगा तो उसे कैपिटल गेन बांड में निवेश नहीं करना चाहिए, यदि उनके पास ऐसे विकल्प नहीं हैं जो ये रिटर्न दे सकें तो फिर कैपिटल गेन बांड बेहतर विकल्प हैं. 

सही जानकारी के लिए अपने टैक्स एडवाइजर या इन्वेस्टमेंट एडवाइजर से सलाह लें

Friday, May 4, 2018

दादा जी को आज, किस बात का है मलाल ?



हिंदी में एक कहावत है "अब पछताए का होत है जब चिड़िया चुग गई खेत" यह कहावत अमेरिका के 1980 के दशक की युवा पीढ़ी और 2018 की बुजुर्ग या सीनियर सिटीजन की पीढ़ी पर एकदम सटीक बैठती है. एक बात समझदार आदमी हमेशा कहते हैं की अपने बुजुर्गो के अनुभव से युवा पीढ़ी को जरुर सीखना चाहिए. तो ऐसी क्या बाते हैं जिनके बारे में 80 के दशक युवाओं को आज मलाल है और वो आज के अमेरिकी युवाओं को समझाना चाहते हैं और इन अमेरिकन बुजुर्गों की गलतियों से भारत के लोगों को क्या सीखना और समझना है, आज इसी विषय पर मेरा ब्लॉग केन्द्रित है. 


अमेरिका में LendEDU नाम की एक संस्था ने 65 वर्ष से अधिक आयु के लोगों पर एक सर्वे किया, यह सर्वे  Pollfish नाम की ऑनलाइन सर्वे करने वाली संस्था के माध्यम से किया गया. इस संस्था की वेबसाइट पर लगभग 100 मिलियन अमेरिकन नागरिक रजिस्टर  हैं इनमे से 1000 ऐसे लोगों को रैंडमली सेलेक्ट किया गया जिनकी आयु 65 वर्ष की थी, यह सर्वे 26 मार्च 2018 से 31st मार्च 2018 तक चला.  इस सर्वे में लोगों से उनके रिटायरमेंट और पर्सनल फाइनेंस के बारे में कुछ सवाल किये गए और उनसे इनके जवाब ईमानदारी  से  अपनी
समझ के अनुसार देने के लिए कहा गया.

65 वर्ष की आयु के लोगों पर यह सर्वे करने के पीछे इस संस्था की यह सोच थी कि आज की युवा पीढ़ी को उन गलतियों के बारे में आगाह कर सकें जो उनके दादा जी ने अपनी युवा अवस्था में की थी. तो आइये जानते हैं इस सर्वे में क्या सवाल किये गए उन सवालों के लोगों ने क्या जवाब दिए और उनसे हमे सीखने को क्या मिलता है.



सर्वे में पूछे गए प्रश्न और उनके जवाब प्रतिशत में 

1) ऐसी कौन सी बात है, जिसे अपनी युवा अवस्था में आपने नजरअंदाज किया और अब वृद्धावस्था में समझ में गए या सीख लिया ?

a. अब समझ गए हैं कि चादर के बाहर पाँव नहीं निकालना चाहिए                                        26.68%

b. अब मैंने घर का बजट बनाना सीख लिया                                                                         25.95%

c. रिटायरमेंट के लिए बचत करना सीख लिया                                                                     15.68%

d. स्टॉक मार्केट में इन्वेस्ट करना सीख लिया                                                                         8.57%

e. क्रेडिट कार्ड से खरीददारी का नुकसान समझ में आ गया                                                  14.65%

f. इनमें से कोई नहीं.                                                                                                            6.48%


2) अपनी युवा अवस्था में कौन सी फाइनेंसियल मिस्टेक का आज  सबसे ज्यादा अफ़सोस है ?

a. रिटायरमेंट के लिए पर्याप्त बचत नहीं की                                                                          21.4%

b. गैर जरुरी चीजों पर बहुत खर्च  किया                                                                                17%

c. कमाया लेकिन कोई निवेश नहीं किया                                                                               12.3%

d. लोन के जाल में उलझे रहे                                                                                                10%

e. सही जगह निवेश नहीं किया                                                                                             5.5%

f. ऐसी नौकरी की जहाँ पैसे तो कमाए लेकिन एन्जॉय नहीं किया                                              5.1%

g. ऐसी नौकरी की जहाँ एन्जॉय तो किया लेकिन पैसे नहीं कमाये                                             5.8%

h. इनमे से कोई नहीं                                                                                                            20%


3. क्या लाइफ इंश्योरेंस आप के फाइनेंसियल स्ट्रेटेजी  का  महत्वपूर्ण अंग है ?


a.  हाँ                                                                                                                                 46.9%

c  नहीं                                                                                                                                34.1%

d. कह नहीं सकते                                                                                                                19%


4. क्या आपको इस बात पर भरोसा है कि आपके पास रिटायरमेंट के लिए पर्याप्त सेविंग या फण्ड है ?

a.  हाँ                                                                                                                                     26.6%

b. नहीं                                                                                                                                   54.6%

c. कह नहीं सकते                                                                                                                   18.8%


5. क्या सोशल सिक्यूरिटी के लाभ आपके फाइनेंसियल स्ट्रेटेजी के महत्वपूर्ण अंग है ?

a.  हाँ                                                                                                                                 25.8%

c  नहीं                                                                                                                                29.7%

d. कह नहीं सकते                                                                                                               44.5%


सर्वे के परिणाम और विश्लेषण


सर्वे के परिणाम बेहद चौकाने वाले हैं क्यूँ कि अमेरिका दुनिया के सबसे धनी देशों में एक है वहाँ की प्रति व्यक्ति आय हमारे देश के मुकाबले 30 से 32 गुने ज्यादा है, अमेरिका में सोशल सिक्योरिटी बेनिफिट हमारे देश से बहुत अच्छी है वहां पर रिटायरमेंट अकाउंट प्लान 401(k) 1970-80 के दशक से ही प्रचिलित है, अमेरिका अपनी खुली अर्थव्यवस्था और दुनिया की सबसे बड़ी कैपिटल मार्केट वाला देश है उसके बाद भी सिर्फ 26.6% अमेरिकी बुजुर्ग यह मानते हैं कि उनके पास रिटायरमेंट के लिए पर्याप्त सेविंग है जब की लगभग 55% अमेरिकी बुजुर्गों को आज यह लगता है कि उन्होंने रिटायरमेंट के लिए पर्याप्त बचत नहीं है, लगभग 18% लोग अभी तक निश्चित नहीं कर पा रहे कि उनकी सेविंग पर्याप्त है या नहीं. इस प्रकार यह सर्वे दुनिया के सबसे धनी देश के बुजुर्गों की रिटायरमेंट फंडिंग की व्यवस्था की पोल खोल देता है जो यह बताता है सिर्फ 26 प्रतिशत अमेरिकी बुजुर्ग अपने रिटायरमेंट फण्ड को लेकर निश्चिंत हैं बाकि 74% के पास पर्याप्त सेविंग नहीं है.

सर्वे में जब इन लोगों से यह पूछा गया कि युवा अवस्था में  कौन सी फाइनेंसियल मिस्टेक का उन्हें आज सबसे ज्यादा अफ़सोस है तो लगभग 52 प्रतिशत लोगों ने रिटायरमेंट के लिए पर्याप्त बचत नहीं करने, निवेश ना करने और बेफजूल खर्चों पर अपना सबसे ज्यादा अफ़सोस या मलाल जाहिर किया.

समय से रिटायरमेंट फण्ड के बारे में सोचना बहुत जरुरी है क्यूंकि यही एक मात्र आर्थिक जिम्मेदारी है जिसके लिए बैंक आपको लोन नहीं देता. इसलिए सबसे पहले हम सभी को अपने रिटायरमेंट फण्ड के बारे में सोचना चाहिए.
फाइनेंसियल मामलों के विशेषज्ञ मानते हैं कि 25 साल के उम्र में रिटायरमेंट के लिए 2500 रुपये महीने का बचत व निवेश 30 वर्ष की उम्र के लगभग 5000 रुपये की बचत के बराबर होती है और अगर 40 वर्ष में कोई रिटायरमेंट के लिए निवेश करना शुरू करेगा तो उसे 20000 रुपये प्रति माह की बचत करनी होगी तब जा कर वो 25 वर्ष की उम्र से सिर्फ 2500 रुपये से शुरू करने वाले से थोडा ज्यादा रिटायरमेंट फण्ड बना पायेगा.

आज अमेरिका के वृद्ध नागरिकों को सबसे ज्यादा इस बात का मलाल है कि उन्होंने समय रहते रिटायरमेंट के लिए सेविंग नहीं शुरू की जिसके कारण लगभग 75% अमेरिकी बुजुर्ग अपनी बचत को रिटायरमेंट के लिए पर्याप्त नहीं मानते.


समझदार वो होते हैं जो दूसरों की गलतियों से सीख लेते हैं आज हम सभी को इस सर्वे के परिणाम से कुछ सीखने की जरुरत है कहीं हम सभी वही गलतियाँ तो नहीं दोहरा रहे हैं जो अमेरिकी बुजुर्गों ने अपने युवा अवस्था में की. 

आज आपको और हमें  अपने आप से रिटायरमेंट से सम्बंधित कुछ सवाल पूछने हैं 

1) क्या आज मुझे पता है कि मेरे रिटायरमेंट में कितना समय बाकी है ?
2) क्या आज मुझे पता है कि मेरे पास रिटायरमेंट के समय कितनी बचत होगी ? 
3) क्या आज मुझे पता है कि मेरे पास रिटायरमेंट के समय मुझे कितने पैसे की आवश्यकता होगी ? 
4) क्या आज मुझे पता है कि मै प्रति माह अपने रिटायरमेंट के लिए कितना और कहाँ निवेश कर रहा हूँ ?
5) क्या मेरे पास अपने रिटायरमेंट फण्ड बनाने के लिए समुचित योजना है ?

अगर इन सवालों के जवाब आपको अपने आप से नहीं मिल रहे तो फिर आज ही आपको सचेत होने की जरुरत है, आज ही आपको इसके बारे में सोचने और उस पर कार्य करने की जरूरत है. अगर आप ने यह काम आज नही किया तो भविष्य में आप भी इस बात पर अफ़सोस कर सकते हैं कि समय रहते मैंने क्यूँ नहीं सोचा और फिर वही कहावत याद आएगी... "अब पछताए का होत है जब चिड़िया चुग गई खेत."

सर्वे के बारे में और अधिक विस्तार से पढने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें.

सोर्स: https://lendedu.com/blog/what-are-senior-citizens-biggest-financial-regrets/

Friday, April 6, 2018

सेबी के इस कदम का पड़ेगा आपके म्यूच्यूअल फण्ड पोर्टफोलियो पर बड़ा असर



लगभग 6 महीने पहले सेबी ने म्यूच्यूअल फण्ड योजनाओं की संख्या घटाने और उनके नाम और काम को ज्यादा युक्तिसंगत (Rationalise) करने के लिए सभी एसेट मैनेजमेंट कंपनियों को दिशा निर्देश जारी किया थे. सेबी के इस कदम का उद्देश्य यह था कि उस भ्रान्ति को कम किया जाय जो अलग-अलग फण्ड हाउसेस एक ही तरह के फण्ड को अलग-अलग नामों से चलाने के कारण उत्पन्न होते हैं और एक आम निवेशक को म्यूच्यूअल फण्ड की अलग-अलग योजनाओं का समझने में आसानी हो जाए साथ ही म्यूच्यूअल फण्ड कंपनियों को फंड्स को चलाने के लिए मोटे तौर पर एक दिशा निर्देश दिया जाय.

आज के समय लार्ज कैप फण्ड कोई फण्ड हाउस टॉप 100 फण्ड के नाम से चलाता है तो कोई टॉप 200 या ब्लुचिप या फोकस्ड लार्ज कैप या फ्रंट लाइन के नाम से चलाता है, इक्विटी फंड्स में तो तब भी कम उलझन है डेब्ट फण्ड में उलझने कहीं ज्यादा है क्यूंकि यहाँ पर कोई कॉर्पोरेट बांड फण्ड के नाम से 6-12 महीने के बांड फण्ड चलाता है तो कोई 3-5 साल के बांड फण्ड चलाता है, कोई उसी केटेगरी के फण्ड को मीडियम टर्म फण्ड का नाम दे देता है और कोई उसे क्रेडिट फण्ड नाम देता है. हाइब्रिड फण्ड में  में कोई 5% इक्विटी वाला फण्ड भी MIP कहलाता और 15%,25% , 30% वाला भी MIP कहलाता है इस प्रकार से म्यूच्यूअल फण्ड योजनाओं को उनके नाम से समझ पाना बहुत मुश्किल है और इसी मुश्किल को थोडा आसान करने का काम करेंगे सेबी के ये नए दिशा निर्देश.


सेबी सर्कुलर अक्टूबर 2017- पढने के लिए नीचे दिए हुए लिंक पर क्लिक करें 

क्या है इस सर्कुलर में -
इस सर्कुलर के अनुसार अब म्यूच्यूअल फण्ड योजनायें  मुख्यतः 5 कैटेगरी में ही आयेंगे 

1) इक्विटी स्कीम
2) डेब्ट स्कीम
3) हाइब्रिड स्कीम
4) सोल्यूशन ओरिएंटेड स्कीम
5) अन्य प्रकार की योजनायें

इन 5 केटेगरी के अन्दर कुछ फंड्स या योजनाओं की सब-कैटेगरी बनाई गई हैं और आगे से प्रत्येक सब-कैटेगरी में सिर्फ एक म्यूच्यूअल फण्ड स्कीम ही कोई भी फण्ड हाउस चला सकेगा. जैसे इक्विटी कैटेगरी में सिर्फ 10 अलग-अलग फंड्स (सेक्टोरल और थीमेटिक फंड्स छोड़ कर) हो सकते हैं, डेब्ट कैटेगरी में 16 और हाइब्रिड में 6 फंड्स होंगे, सोल्यूशन ओरिएंटेड दो स्कीम हो सकेंगी, इसके अलावा इंडेक्स फण्ड, एक्सचेंज ट्रेडेड फण्ड (ETF) और फण्ड ऑफ़ फंड्स (FOF) अन्य प्रकार की योजनाओं में आयेंगे.

इस सर्कुलर के आने के बाद कुछ फण्ड हाउसेस को जरुर अच्छा नहीं लगा होगा क्यूंकि इसके लागू होने  से उनको अपने हिसाब से अलग-अलग तरह की ओपन एंडेड योजनायें लांच करने और चलाने की छूट नहीं रह जायेगी.

आइये समझते हैं हम सब पर इसका प्रभाव क्या होगा

स्कीमों की संख्या होगी कम- 
क्यूंकि सेबी ने फंड्स की संख्या कैटेगरी और सब-कैटेगरी में फंड्स की संख्या निर्धारित कर दी है तो अब उस से ज्याद ओपन एंडेड फंड्स एक फण्ड हाउस नहीं चला सकेगा. इससे म्यूच्यूअल फण्ड कंपनियों द्वारा चली जा रही योजनाओं की संख्या कम होगी फलस्वरूप एक आम निवेशक को स्कीम के बारे में समझने और चुनाव करने में आसानी होगी क्यूंकि आज ओपन एंडेड फंड्स की संख्या लगभग 1100 के आस पास है, अब एक आम निवेशक के सामने 1100 स्कीमो में से अपने लिए 7-8 स्कीम चुनना काफी उलझन भरा होता था, जितनी स्कीमों की संख्या कम होगी एक आम निवेशक को उसमे से अपने लिए फण्ड चुनने में आसानी होगी. . 

फंडामेंटल ऐट्रिब्यूट्स (मौलिक गुण) में आएगी एक रूपता-

सेबी ने जहाँ इक्विटी फंड्स में लार्ज कैप,मिड कैप , स्माल कैप को परिभाषित करके उनके अनुसार फंड्स की  सब-कैटेगरी बनाई है, वहीँ डेब्ट फंड्स में भी पोर्टफोलियो की एवरेज मेच्योरिटी और क्रेडिट रेटिंग के अनुसार फंड्स की  सब-कैटेगरी परिभाषित की है , हाइब्रिड कैटेगरी को भी उनके एसेट एलोकेशन के अनुसार सब-कैटेगरी में बांटा गया है इस तरह से सभी फण्ड हाउस के समान सब-कैटेगरी फंड्स के फंडामेंटल ऐट्रिब्यूट्स या मौलिक गुण में एक रूपता आ जाएगी. अभी तक कई फण्ड हाउसेस में मोटे तौर एक ही तरह से संचालित होने वाली 2-3 योजनायें अलग-अलग नामों से मिल जाएँगी और इन फण्ड हाउसेस के पास 50-100 योजनायें होंगी लेकिन इनमे से कई योजनायें बस नाम के लिए अलग होंगी, इनका उद्देश्य, पोर्टफोलियो, फण्ड मैनेजर सब एक ही हो सकता है, अब ऐसा नहीं चलेगा.

फंड्स के नामों में होगी एक समानता-

अभी तक ऐसा हो सकता है कि आप एक सामान संचालित होने वाले फण्ड का नाम अलग-अलग फण्ड हाउस में अलग-अलग होता जैसे किसी फण्ड हाउस में उसे कॉर्पोरेट बांड फण्ड लिख जाता , उसी का नाम दूसरे फण्ड हाउस में मीडियम टर्म या क्रेडिट फण्ड या डेब्ट ओपरच्युनिटी या रेगुलर सेविंग  फण्ड हो सकता था  और इस प्रकार से आप नाम पढ़ के उलझन में पड़ जाते रहे हों. तो अब यह परेशानी कम हो जाएगी सभी फण्ड हाउसेस में स्कीमों के नाम लगभग एक सामान होने से .


तुलना करना होगा आसान-


अभी तक एक सब-कैटेगरी के फण्ड का दूसरे सब-कैटेगरी के फण्ड से तुलना करना भी आसान नहीं था. जैसा की हमेशा फण्ड की तुलना करते हुए यह बताया जाता है कि सेब की तुलना सेब से करनी चाहिए संतरे से नहीं. सच्चाई यह है इस इंडस्ट्री में हमेशा यह तुलना सही ढंग से हो ही नहीं पाती थी क्यूंकि एक बोलता था मेरे लार्ज कैप में मिडकैप भी है इसलिए ज्यादा गिरावट आ गई तो दूसरा बोलता था मेरे लार्ज कैप में सिर्फ लार्ज कैप है इसलिए वो उतना नहीं बढ़ रहा, एक बोलता था मेरे कॉर्पोरेट बांड में AAA रेटेड बांड्स हैं इसलिए परफॉरमेंस कम है तो दूसरा बोलता था मेरे में मॉड ड्यूरेशन कम है इसलिए परफॉरमेंस नहीं आई और इस तरह से अब तक सभी फण्ड हाउस फंड्स अपने फंड्स की उस केटेगरी में अंडर परफॉरमेंस के प्रश्न को इस तरह से डक कर जाते थे. स्कीमों में एक रूपता या एक समानता होने से उनका सही तरह से तुलनात्मक अध्ययन करना आसान एवं तर्कसंगत होगा.


पुराने निवेशक को क्या करना चाहिए-

ऐसे लोग जो पहले से म्यूच्यूअल फंड्स में निवेश कर रहे हैं उनको इस प्रकिया को सावधानी से समझने की जरुरत है अन्यथा आपके इन्वेस्टमेंट पोर्टफोलियो में कुछ घाल-मेल हो सकती है. जैसे आपने किसी फण्ड में निवेश करते समय उसे लार्ज कैप फण्ड मान के निवेश किया था लेकिन अब वो लार्ज-मिड कैप फण्ड बन गया या आपने मिडकैप स्मालकैप फण्ड में पैसे लगाये थे लेकिन वो स्माल कैप फण्ड बनने जा रहे हैं तो ऐसी परिस्थिति में आपको उसी फण्ड में बने रहना है या अन्य विकल्पों के बारे में सोचना है. इस तरह की परिस्थिति डेब्ट फंड्स और हाइब्रिड फंड्स में भी उत्त्पन्न होगी जैसे किसी फण्ड हाउस के पास दो या तीन मंथली इनकम प्लान या बैलेंस्ड फण्ड थे अब तो केवल एक ही मंथली इनकम प्लान रहेगा या एक ही बैलेंस्ड फण्ड रहेगा तो बाकि के फंड्स या तो किसी एक में मर्ज कर दिए जायेंगे या उनको किसी और केटेगरी का फण्ड बना दिया जायेगा मतलब उसके फंडामेंटल ऐट्रिब्यूट्स में परिवर्तन किया जायेगा जैसे HDFC के पास दो बैलेंस्ड फण्ड हैं HDFC Prudence और HDFC Balanced अब HDFC को एक ही बैलेंस्ड रखना है तो उसे या तो इन दोनों योजनाओं को मिला कर एक कर देना होगा या किसी एक के फंडामेंटल ऐट्रिब्यूट्स में परिवर्तन करके उसे दुसरे केटेगरी का फण्ड बनाना होगा, जैसे HDFC के पास एसेट एलोकेशन फण्ड नहीं तो संभवतः वह प्रूडेंस फण्ड के फंडामेंटल ऐट्रिब्यूट्स को चेंज कर दे. इसलिए यह बहुत जरुरी इस महीने आप अपने फाइनेंसियल एडवाइजर से जरुर मिलें और अपने म्यूच्यूअल फण्ड पोर्टफोलियो में आ रहे परिवर्तनों को समझें और जरुरी हो तो उसके अनुसार बदलाव करें.

वैसे सेबी ने यह कदम थोडा देर से उठाया है लेकिन फिर भी हम कह सकते हैं देर आये दुरुस्त आये.