Thursday, December 28, 2017

क्यूँ है म्यूच्यूअल फण्ड सब से सही




जो लोग पिछले कई सालों से म्यूच्यूअल फण्ड को अपने निवेश का माध्यम बनाये हुए हैं उन सभी का विश्वास म्यूच्यूअल फण्ड में अन्य निवेश माध्यमों जैसे गोल्ड, रियल एस्टेट, डायरेक्ट इक्विटी या कॉर्पोरेट डिपाजिट से कहीं ज्यादा हो चूकी है. लेकिन अभी भी ऐसे लोगों की संख्या बहुत ज्यादा है जिन्होंने आज तक म्यूच्यूअल फण्ड में ना तो निवेश किया है ना ही इसे उतना भरोसेमंद मानते हैं. अभी भी अधिकांश लोग सेविंग के लिए पोस्ट ऑफिस, बैंक, लाइफ इंश्योरेंस या कैश पर और सम्पति निर्माण के लिए रियल एस्टेट या गोल्ड पर भरोसा करते हैं.

बचत करने वाले मानते हैं म्यूच्यूअल फण्ड का मतलब है शेयर मार्केट और क्यूंकि शेयर मार्केट में बहुत उतार चढाव होते हैं और यह सुरक्षित नहीं होते तो म्यूच्यूअल फण्ड भी शेयर मार्केट की तरह उतार चढाव से भरे निवेश माध्यम हैं इसलिए यह सेविंग का माध्यम बनाने के लिए सुरक्षित नहीं हैं. वहीँ दूसरी ओर जिन्हें लम्बे समय में सम्पति निर्माण या वेल्थ क्रिएशन करना है उन्हें लगता है म्यूच्यूअल फण्ड से लम्बे समय में उतने पैसे नहीं बनाये जा सकते जितने की सोने या रियल एस्टेट में बन सकते हैं. 

लेकिन इन्ही लोगों की तरह से सोच रखने वाले निवेशक जिन्होंने कुछ साल पहले म्यूच्यूअल फण्ड को अपना निवेश माध्यम बनाया उनकी सोच आज पूरी तरह से बदल चुकी है उनका आज मानना है कि म्यूच्यूअल फण्ड एक ऐसा निवेश जो ना केवल सेविंग करने के लिए सबसे अच्छा है बल्कि लम्बे समय में सम्पति निर्माण के लिए अन्य माध्यमों से बेहतर है.

तो आइये आज म्यूच्यूअल फण्ड की उन विशेषताओं के बारे में जानते हैं जिनके कारण म्यूच्यूअल फण्ड निवेशक बोलते हैं "म्यूच्यूअल फण्ड सबसे सही है "

कोई भी कर सकता है निवेश - म्यूच्यूअल फण्ड में निवेश कोई भी कर सकता है, 500 रुपये बचत करने वाला भी अपने लिए म्यूच्यूअल फण्ड को निवेश का   माध्यम चुन सकता है और 100-1000 करोड़ लगाने वाला भी चुन सकता है. एक किसान भी इसमें आसानी से निवेश कर सकता  है और बड़ा व्यापारी भी, गृहणी भी निवेश कर सकती  हैं बच्चे भी, सरकारी नौकरी वाला भी कर सकता है और प्राइवेट नौकरी वाला भी . म्यूच्यूअल फण्ड सभी के लिए उनकी जरुरत के अनुसार निवेश का माध्यम उपलब्ध कराते हैं. किसी को 1 दिन के लिए भी पैसे लगाने हों उनके लिए भी योजनायें हैं और किसी को अपने रिटायरमेंट के लिए निवेश करना है उनके लिए भी, किसी को 6 महीने 1 साल के लिए सुरक्षा के साथ निवेश करना हो उनके लिए भी या बच्चों कि पढाई के लिए 10-15 साल के लिए निवेश करना हो उनके लिए भी, रिटायरमेंट से पहले के लिए भी योजनाये हैं और रिटायरमेंट के बाद के लिए भी . और सबसे अच्छी बात यह है सबके लिए अलग- अलग योजनायें. मतलब जैसी जरुरत वैसी स्कीम . 

व्यवसायी को अपने करंट अकाउंट में पड़े पैसे पर कुछ कमाई करनी हो या किसी को सेविंग अकाउंट में पड़े एक्स्ट्रा फण्ड पर एक्स्ट्रा कमाई करनी हो तो लिक्विड फण्ड जहाँ एक दिन के लिए भी पैसे डाल सकते हैं

3 महीने 6 महीने के लिए किसी को पैसे लगाने हैं तो अल्ट्रा शार्ट टर्म

6 महीने या 1 साल 1.5 साल के लिए शार्ट टर्म फण्ड

दो तीन साल में फिक्स्ड डिपाजिट से बेहतर कमाई के लिए कॉर्पोरेट बांड फण्ड

5 साल में गाडी या घर खरीदने के लिए या वर्ल्ड टूर के लिए पैसे  इकट्ठा करना है तो बैलेंस्ड या एसेट एलोकेशन फण्ड में SIP

बच्चे की पढाई या शादी के लिए पैसे इकट्ठे करने हैं अगले 10-15 साल में तो डाइवर्सिफाइड इक्विटी फण्ड या चाइल्ड केयर प्लान में SIP

रिटायरमेंट के लिए पैसे जोड़ने हों तो SIP इक्विटी फण्ड में

रिटायरमेंट के बाद रेगुलर कैश फ्लो के लिए SWP

टैक्स बचत के लिए इक्विटी लिंक्ड सेविंग स्कीम

इस तरह के अनेकों तरीके उपलब्ध कराता है म्यूच्यूअल फण्ड

बस जरुरत है सही अपनी जरुरत के हिसाब से उन योजनाओं का चुनाव करना.

मिलता है प्रोफेसनल मैनेजमेंट- एक तरीका है आप खुद से विभिन्न कंपनियों और बैंक के शेयर या फिक्स्ड इनकम  इंस्ट्रूमेंट (बांड, फिक्स्ड डिपाजिट या डिबेंचर) के बारे में विस्तार से पता करें और फिर निवेश करें  खुद से निवेश करने के लिए हमारे पास उतना समय, ज्ञान, विशेषज्ञता, अनुभव और साधन होना चाहिए जिस से की आप सही जगह निवेश कर सकें. दूसरा तरीका है यह सारे काम आप किसी विशेषज्ञ को दे दें और म्यूच्यूअल फण्ड आपको ऐसा प्रोफेसनल मैनेजमेंट देता है जो यूनिट होल्डर कि तरफ से योजना के उद्देश्य के अनुसार सबके हित को ध्यान में रख कर बहुत ही कम खर्चे पर वो सर्विसेज देता है जिसका भार उठा पाना एक आम आदमी के बस की बात नहीं होती. यहाँ एक प्रोफेसनल टीम आपका फण्ड मैनेजमेंट आपके उद्देश्यों के अनुसार करती है .

म्यूच्यूअल फण्ड है सुरक्षित-  म्यूच्यूअल फण्ड पूरी तरह से सुरक्षित होते हैं यहाँ सुरक्षा का अर्थ पैसे डूबने से है, म्यूच्यूअल फण्ड की देख रेख के लिए एसेट मैनेजमेंट कंपनी होती है, एसेट मैनेजमेंट कम्पनी का काम काज देखने के लिए ट्रस्टी होते हैं और इन सबके का काम काज देखती है सेबी . म्यूच्यूअल फण्ड योजनायें सेबी के नियमों के मुताबकि चलती हैं और इन योजनाओं का स्वामित्व इनके निवेशको के पास होता है, एसेट मैनेजमेंट कम्पनी सिर्फ इन निवेशकों अपनी फण्ड मैनेजमेंट सर्विसेज देती हैं जिसके बदले में वो अपनी फीस चार्ज करती हैं एसेट मैनेजमेंट कम्पनी इन योजनायें के ओनर नहीं होतीं. म्यूच्यूअल फण्ड की यूनिट को किसी अन्य व्यक्ति या संस्था  को ट्रान्सफर नहीं किया जा सकता इसलिए कोई फ्रॉड का रिस्क नहीं होता , जब इसमें पैसे निकाले जाते हैं तो पैसे सिर्फ उसी अकाउंट में जायेंगे जो म्यूच्यूअल फण्ड के पास पहले से रजिस्टर्ड है. म्यूच्यूअल फण्ड अकाउंट से पैसे किसी दूसरे के बैंक अकाउंट में ना तो ट्रान्सफर किया जा सकता है ना तो किसी दूसरे के  बैंक अकाउंट से इसमें पैसे लिए जा सकते हैं, इस प्रकार से म्यूच्यूअल फण्ड फ्रॉड के रिस्क से पूरी तरह से सुरक्षित है.

हर एसेट क्लास में इन्वेस्टमेंट करने का देता है मौका - म्यूच्यूअल फण्ड के माध्यम से एक निवेशक हर एसेट क्लास में निवेश कर सकता है . म्यूच्यूअल फण्ड एक ऐसा निवेश का माध्यम है जो आपको फिक्स्ड इनकम एसेट्स में भी निवेश करने का मौका देता जो आपको गोल्ड में भी निवेश करने की योजनायें देता है जो आपको सरकारी या प्राइवेट कंपनियों या बैंको के शेयर में निवेश करने का मौका देता है, जो सरकारी और गैर सरकारी बांड में निवेश करने का मौका देता है, विदेशी कम्पनियों के शेयरों में निवेश का मौका देती है और आने वाले समय में म्यूच्यूअल फंड्स रियल एस्टेट में भी निवेश करने का मौका देंगे.

म्यूच्यूअल फण्ड एक मात्र ऐसा निवेश माध्यम है जिसके साथ आप लगभग सभी एसेट क्लास में निवेश कर सकते हैं

टैक्स का बोझ कम करता है - म्यूच्यूअल फण्ड के निवेशक को टैक्स का बोझ कम सहना पड़ता है. एक तो म्यूच्यूअल फण्ड में टैक्स सेविंग योजनाओं में निवेश करके धारा 80c की छुट ली जा सकती है . दूसरा म्यूच्यूअल फण्ड से मिलने वाले लाभ पर टैक्स कम पड़ता है या नहीं पड़ता है. म्यूच्यूअल फण्ड से लाभ दो तरह से मिलता है पहला तो डिविडेंड या लाभांश के माध्यम से और दूसरा म्यूच्यूअल फण्ड यूनिट्स बेच कर.

इक्विटी ओरिएन्टेड फंड्स  से जब डिविडेंड मिलता है तो ना तो निवेशक को उस पर  कोई टैक्स देना होता और ना ही म्यूच्यूअल फण्ड कंपनी को निवेशकों की तरफ से कोई टैक्स देना पड़ता है, लेकिन डेब्ट  फंड्स के केस में निवेशक को तो डिविडेंड पर कोई टैक्स नहीं देना होता लेकिन म्यूच्यूअल फण्ड कम्पनी को निवेशकों की तरफ से डिविडेंड डिस्ट्रीब्यूशन टैक्स देना पड़ता है.

इक्विटी ओरिएन्टेड फंड्स  की यूनिट एक साल के बाद बेचने पर होने वाला लाभ पूरी तरह से टैक्स फ्री होता है लेकिन एक साल से पहले बेचने पर होने वाले लाभ पर सिर्फ 15% का टैक्स भरना होता है. वहीँ नॉन इक्विटी फंड्स के केस में 3 साल से पहले यूनिट बेचने पर होने वाला लाभ निवेशक की इनकम में जुड़ जाता है लेकिन तीन साल के बाद इंडेक्सेशन का लाभ ले कर कम टैक्स चुकाना पड़ता है.

इस तरह से म्यूच्यूअल फण्ड टैक्स का बोझ  कम करता है. 

म्यूच्यूअल फण्ड से मिल सकते हैं बहुत अच्छे रिटर्न- इक्विटी ओरिएन्टेड फंड्स के माध्यम से एक  आदमी लम्बे समय में बहुत इ लाभ कम सकता है. क्या आपको पता है  इक्विटी म्यूच्यूअल फण्ड की ऐसी योजनायें जो 20-22 साल   पुरानी हैं उन्होंने अपने निवेशकों का पैसा इतने समय 80-110 गुना बढाया है, पिछले 10-15 साल में भी कई ऐसे फंड्स मिल जायेंगे जिन्होंने 10-15 गुना पैसे बढ़ा दिए हैं.
इसलिए अगर कोई यह समझता है की सिर्फ रियल एस्टेट ही अच्छे लाभ दिला सकता है तो ऐसा नहीं है , लम्बे समय में इक्विटी फंड्स लाभ के मामले में रियल एस्टेट को भी पीछे छोड़ देती हैं.

कभी भी पैसे निकालने की सुविधा- म्यूच्यूअल फण्ड इस मामले में भी अन्य निवेश माध्यमों से बेहतर है यहाँ से पैसे आप बड़ी आसानी से निकाल सकते हैं, क्लोज्ड एंडेड और टैक्स सेविंग म्यूच्यूअल फण्ड को छोड़ कर अन्य   योजनाओं से पैसे कभी भी निकाले जा सकते हैं. सबसे अच्छी बात यह है कि आपको गोल्ड  रियल एस्टेट की तरह यह सोचना नहीं है पैसा कैसे निकले, कहाँ निकले और कितना सही निकलेगा, सामान्यतयः गोल्ड और रियल एस्टेट से  पैसे निकालने में सही कीमत ना मिलने की सम्भावना ज्याद रहती है, खरीदते हुए तो आप  को गोल्ड और रियल एस्टेट पर प्रीमियम देना पड़ता है और बेचते समय डिस्काउंट. म्यूच्यूअल फण्ड में  जिस दिन पैसे निकालतें हैं उस दिन की आपको फेयर वैल्यू (सही  कीमत) मिलती है. 
अब तो म्यूच्यूअल फण्ड से पैसे निकालना और भी आसान हो गया है आप एक मेसेज करके यहाँ से पैसे निकाल सकते हैं.

कम खर्चीला- म्यूच्यूअल फण्ड में जितनी सुविधाएँ एक निवेशक को मिलती हैं उसके हिसाब से उस पर चार्जेज बहुत कम   हैं . म्यूच्यूअल फण्ड खरीदते समय कोई चार्ज नहीं पड़ता, एक  निश्चित समय के बाद पैसे निकालने पर भी कोई चार्ज नहीं देना पड़ता. लिक्विड फण्ड में जहाँ  सालाना खर्च 0.05% जितनी कम होती है वहीँ इक्विटी फण्ड में यह 2-2.5% तक होती है. यह खर्चे निवेशक को अलग से नहीं देने पड़ते यह उनके NAV से दिन के हिसाब से कटते रहते हैं. इसके अलावा ना तो निवेशक कोई कस्टडी चार्ज देनी है ना फण्ड मैनेजमेंट फीस देनी है ना तो डिस्ट्रीब्यूटर को कोई फीस देनी है, ना बैंक की तरह स्टेटमेंट लेने पर कोई फीस देनी है ना ही खरीदने बेचने पर कोई ब्रोकरेज चुकाने हैं . इस तरह से म्यूच्यूअल फण्ड बेहद किफायती होते हैं.


बहुत आसान और सुविधा जनक- म्यूच्यूअल फण्ड में निवेश   करना और पैसे निकालना पिछले 15 सालों  से   बहुत आसान और सुविधा जनक था लेकिन पिछले 2 सालों में डिजिटल क्रांति ने इसे बहुत आसान र सुविधा जनक बना दिया है. आज म्यूच्यूअल फण्ड में आप निवेश अपने मोबाइल के माध्यम से कभी भी और कहीं भी रह कर सकते हैं इसी तरह से यहाँ से पैसे भी एक क्लिक से निकाल सकते हैं ,एक मेसेज भेज कर या कॉल करके भी निकाल सकते हैं. म्यूच्यूअल फण्ड में अपने हिसाब से एकमुश्त या RD की तरह महीने दर महीने भी  लगा सकते हैं. म्यूच्यूअल फण्ड से पैसे भी अपनी आवश्यकता अनुसार कभी भी निकाल सकते हैं यहाँ फिक्स्ड  डिपाजिट या सोने  की तरह पूरी यूनिट एक साथ बेचने की जरुरत नहीं है, जैसे आपने 50 लाख की फिक्स्ड  डिपाजिट या प्रॉपर्टी खरीदी हुई अब अगर आपको 10 लाख रूपये की जरुरत है तो आपको फिक्स्ड डिपाजिट पूरी तोडनी पड़ेगी या फ्लैट या जमीन भी पूरी बेचनी पड़ेगी आप अपने फ्लैट का एक रूम बेच कर पैसे नहीं निकाल सकते लेकिन म्यूच्यूअल फण्ड में आप को 5 हजार भी निकाल सकते हैं, 10 लाख कि जरुरत है तो 10 लाख भी निकाल सकते हैं जितनी जरुरत उतने पैसे निकाल लीजिये .आपने इक्विटी फण्ड में पैसे डाले हैं और इक्विटी में रिस्क बढ़ गया है तो आप डेब्ट या गोल्ड फण्ड में अपना फण्ड स्विच कर सकते हैं. आप   रिटायर हो गए अब आपको हर महीने अपने खर्च  के लिए एक निश्चित रकम चाहिए तो SWP या मंथली डिविडेंड (मंथली डिविडेंड निश्चित नहीं होते ) से यह सुनिश्चित कर  सकते हैं. यूनिट होल्डर कि मृत्यु के दशा में यूनिट ट्रान्सफर की प्रक्रिया भी सभी म्यूच्यूअल फण्ड में एक जैसी है और अन्य  सम्पतियों के ट्रान्सफर प्रोसेस से यहाँ प्रक्रिया काफी आसान और सुरक्षित है. इस प्रकार से म्यूच्यूअल फण्ड बहुत सरल और सुविधा जनक है

निष्कर्ष -
एक श्लोक  है विद्या के बारे में न चोरहार्यं न च राजहार्यंन भ्रातृभाज्यं न च भारकारी । व्यये कृते वर्धते एव नित्यं विद्याधनं सर्वधन प्रधानम् ॥'


उसी प्रकार से म्यूच्यूअल फण्ड को ना तो चोर चुरा सकता है, ना राजा ले सकता है  ना ही भाई बाँट सकता है और इस पर टैक्स भी बहुत कम या नहीं लगता है, यह सुरक्षित भी है और अन्य एसेट क्लास से बेहतर प्रदर्शन करता है. इसलिए म्यूच्यूअल फण्ड नाम की सम्पति सभी फिजिकल और फाइनेंसियल सम्पतियों में सर्वश्रेस्ठ है.





Saturday, December 2, 2017

क्या अब आपके पैसे बैंक में भी सुरक्षित नहीं रहेंगे ?



F.R.D.I. (Financial Resolution & Deposit Insurance, 2017) बिल जिसे संसद के शीतकालीन सत्र में पेश किये जाने की संभावना है इस बिल के प्रावधानों को लेकर कुछ आशंकाएं व्यक्त की जा रही हैं और ऐसा बताया जा रहा है उन प्रावधानों को अगर मान लिया जायेगा तो बैंक डिपाजिट अब पहले की तरह सुरक्षित नहीं रह जायेंगे.

आइये समझते हैं ऐसा क्या है इस बिल में ?

विभिन्न मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार इस बिल के पास होने से एक ऐसी संस्था का निर्माण होगा जो की किसी सरकारी या गैर सरकारी बैंकों, बीमा कंपनियों, नॉन-बैंकिंग फाइनेंसियल में बड़ी वित्तीय समस्या जैसे डिफ़ॉल्ट या दिवालिया होने की सम्भावना की स्थिति में ऐसी संस्थाओं के एकीकरण, विलय या अधिग्रहण जैसी कार्यवाही करने का अधिकार होगा.

आशंका बिल में ऐसे प्रावधान से उठ रही है जिसमें कहा गया है कि अगर किसी बैंक के ऊपर देनदारी बढ़ जाती है और वो अपनी देनदारी चुकाने में सक्षम नहीं रह जाती तो उसकी देनदारी का भुगतान अब सरकार नहीं करेगी अर्थात अब सरकार बैंक को bail-out पैकेज नहीं देगी बल्कि अब बैंक अपने क्रेडिटर्स (डिपॉजिट् होल्डर भी) के बकाया को चुकाने के लिए उनके बकाये की राशि के बदले बैंक की हिस्सेदारी दे देंगे . अर्थात जैसी स्थिति आज अधिकांश सरकारी बैंकों की है भविष्य में ऐसी स्थित आने पर सरकार को कोई रीकैपिटलाइजेशन पैकेज देने कि जरुरत नहीं होगी बल्कि बैंक डिपाजिट के बदले अपने बैंक का प्रेफरेन्स शेयर डिपॉजिट् होल्डर को दे देगी और इस प्रकार से  डिपाजिट होल्डर के पैसे से ही अपने आपको Bail-in कर लेगी.

इसी प्रावधान को लेकर जानकार प्रश्न खड़ा कर रहे हैं कि भविष्य में बैंक डिपाजिट पूरी तरह से सुरक्षित नहीं रह जायेंगे.

वर्तमान प्रावधान क्या हैं ?

वैसे अगर नियम की बात करें तो अभी के प्रावधानों के अनुसार बैंक अगर दिवालिया हो जाये या बंद हो जाय तो एक बैंक में एक व्यक्ति ने कितने भी अकाउंट में कितना भी पैसा रखा हो उसे DICGS (Deposit Insurance Credit Gurantee Scheme) के अंतर्गत सिर्फ 1 लाख रूपये की गारंटी मिलती है. लेकिन आज तक सहकारी बैंको को छोड़ दें तो किसी प्राइवेट बैंक को भी सरकार ने दिवालिया नहीं होने दिया और डिपॉजिट् होल्डर का पैसा कभी डूबने नहीं दिया. जिन बैंक में ऐसी समस्या आयी भी उनका सरकार ने समय पर दूसरे किसी बैंक में विलय कर दिया. जैसे ग्लोबल ट्रस्ट बैंक प्राइवेट होने के बाद भी उसका विलय  ओरिएण्टल बैंक ऑफ़ कॉमर्स में कर दिया गया और डिपाजिटर के पैसे को डूबने से बचाया, ऐसे ही बैंक ऑफ़ राजस्थान और सांगली बैंक में समस्या आपने पर उनका विलय आईसीआईसीआई बैंक में किया गया , यूनाइटेड वेस्टर्न बैंक का विलय IDBI में किया गया.

क्या इस बिल के पास होने से आपके डिपाजिट सुरक्षित नहीं रहेंगे ?

जैसा की मैंने पहले ही बताया अभी तक सरकार और RBI ने किसी बैंक के बंद होने से पहले ही उसका विलय किसी और बैंक के साथ किया है या आर्थिक पैकेज दे कर बैंकों और उनके डिपॉजिट् होल्डर को सुरक्षित रखा है. इस बिल के पास होने के बाद भी सरकार किसी बैंक को ऐसी स्थिति में जाने नहीं देना चाहेगी. लेकिन यह बिल एक तरह से एक ऐसी संस्था का निर्माण करने में और बैंकों को उनकी कार्य प्रणाली सुधारने के लिए एक अच्छे सुधारों के रूप में ही देखनी चाहिए. नियमों के मुताबिक तो आज भी बैंक के बंद होने या दिवालिया होने पर सिर्फ एक लाख रुपये के डिपाजिट को वापस करने की गारंटी है लेकिन आज तक ऐसा हुआ नहीं कि बैंक डिपाजिट में किसी का पैसा डूबा हो. इसलिए किसी को सशंकित होने की जरुरत नहीं है.

वैसे बैंको को आज भी सरकार जब bail-out करती है तो पैसे तो हमारे-आप के ही जाते हैं हाँ यह अलग बात है कि वो सीधे तौर पर नहीं जाते. देश के सारे टैक्स देने वाले लोग bail-out पैकेज का भार अप्रत्यक्ष रूप से वहन कर लेते हैं और उस बैंक को बचा लेते हैं.

Financial Resolution & Deposit Insurance 2017 बिल को भी बैंकिंग सेक्टर में एक रिफार्म के रूप में देखा जाना चाहिए. इससे एक ऐसी संस्था का निर्माण होगा जो कि वित्तीय संस्थाओं को डिफ़ॉल्ट या दिवालिया जैसी विषम परिस्थिति में जाने से पहले उनको बचाने का समय पर प्रयास करेगी और ऐसा करके वो देश और उसके टैक्स देने वाले लोगों के ऊपर पड़ने वाले आर्थिक बोझ से बचाएगी. इस बिल का उद्देश्य देश के फाइनेंसियल सिस्टम को और मजबूत बनाना है, देश को 2008 विश्व आर्थिक समस्या जैसी स्थिति का सामना करने के लिए तैयार करना और ऐसी समस्याओं से बचाना है.


Thursday, November 9, 2017

टैक्स चोरी से नहीं, टैक्स सही से भरने से बनते हैं ज्यादा पैसे


जानिए कैसे टैक्स चोरी करके नहीं बल्कि सही से चुका के ज्यादा पैसे बनते हैं 

नोटबंदी एक ऐसा शब्द जो 8 नवंबर 2016 से पहले बहुत कम उपयोग में आया होगा लेकिन पिछले एक साल में इस शब्द का उपयोग सबसे ज्यादा हुआ है. एक ऐसा शब्द जिसने कई लोगों का चैन छीन लिया था, एक ऐसी घटना जिसने कैश में काला धन रखने वालों की नीद उड़ा दी थी. लेकिन आज एक साल के बाद ऐसा लगता है कि जिनके पास भी काला धन था उन्होंने ने कोई जुगाड़ लगा कर बैंकों में अपने कैश जमा करव दिया या उसको ठिकाने लगा दिया और अपने 1000 और 500 की नोटों को नई जिन्दगी दे दी (अगर सरकार नहीं पकड़ पाई तो).

पिछले कई दिनों से प्रिंट मीडिया इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में नोटबंदी को लेकर बहस फिर से शुरू हो गई उसके कारण चुनाव भी है और नोटबंदी को एक साल होना भी है. मै इस ब्लॉग के माध्यम से नोटबंदी के फायदे नुकसान की बात नहीं करूँगा. मेरा उद्देश्य इस ब्लॉग के माध्यम से उन लोगों के आँखों से बंधी पट्टी को निकालना है जो टैक्स बचाने के चक्कर में अपने सफ़ेद धन को काला कर लेते हैं.

एक अर्थव्यवस्था में काला धन मोटे तौर पर दो तरह से पैदा होता है, पहला अवैध कारोबार से और दूसरा टैक्स कि चोरी से .

अवैध कारोबार मतलब  लूट, चोरी, डकैती, जुआ, तस्करी, देह व्यापार, फिरौती, घोटाला, घूस जैसी तमाम घोर अनैतिक कारोबार से निकलने वाला धन

टैक्स चोरी का मतलब एकाउंट्स में हेर फेर कर के अपनी सही कमाई या लाभ को छिपाना.

मुख्यतः यही दो कारण हैं जिनसे अर्थव्यवस्था में काले धन का निर्माण होता है.

मै यहाँ पर दूसरे कारण की बात करूँगा. जो लोग टैक्स बचाने के चक्कर में अपने सफ़ेद धन को काला कर लेते हैं वो देश का नुकसान तो कर रहे हैं लेकिन देश के साथ वो अपना नुकसान भी कर रहे हैं.

टैक्स चोरी के पीछे एक मात्र कारण होता है अपनी आय बढ़ाना. कारोबारी, व्यवसायी, प्रोफेशनल या कैपिटल गेन बनाने वाले लोग आय बढ़ाने के लिए टैक्स चोरी करते हैं. लेकिन मेरा नजरिया है कि ऐसे लोग केवल छोटे फायदे देख कर या अपनी अज्ञानतावश ऐसा करते हैं वो अगर थोडा दूर की सोचें तो शायद ही टैक्स बचाने के चक्कर में लम्बे समय में अपना बड़ा नुकसान करेंगे.

आपको लग रहा है मै कैसी बात कर रहा हूँ जो आदमी सही टैक्स देता है उसकी कमाई का लगभग एक तिहाई हिस्सा डायरेक्ट टैक्स में चला जाता है और जो चोरी कर लेता है वो एक तिहाई लाभ बढ़ा लेता है. ऐसे में पहले वाले को ज्यादा फायद कैसे होगा?

इसको सिद्ध करने के लिए मै कुछ बहुत साधारण सी लेकिन जमीनी बाते आपके सामने रखूँगा.

मान लीजिये एक कारोबारी या प्रोफेशनल ने अपनी इनकम घटा के दिखाई जिस से उसे टैक्स कम देना पड़े ऐसी स्थिति में वो बचे पैसों को जो कैश में होगी उसका क्या करेगा.

1- खर्च करेगा- इस स्थिति में तो टैक्स तो बचा लिया लेकिन पैसा नहीं बचा पाया क्यूंकि आमतौर पर यह आदमी का स्वभाव होता है जब एक्स्ट्रा कमाई होती हो और वो भी आसानी से तो खर्चे अपने आप बढ़ जाते हैं और ऐसी स्थिति में टैक्स चोरी करने के बाद भी आदमी पैसे खर्च करके क्षणिक खुशियाँ तो पा लेता है लेकिन उसकी आर्थिक स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं होता.

2-कैश में जमा करेगा- चलिए मान लेते हैं कि टैक्स चोरी करके आदमी ने सयंम के साथ अपने खर्चे को नहीं बढ़ने दिया, लेकिन क्यूंकि यह 100 रुपये अब काले धन में परिवर्तित हो गए हैं तो इसे कैश में रखेगा अपनी तिजोरी में. अब आप बताइए इस 100 रुपये को आदमी 5 साल बाद खर्च करने के लिए निकालेगा तो यह 100 से ज्यादा तो होंगे नहीं यह 100 के 100 ही होंगे लेकिन महंगाई बढ़ने के कारण 5 साल बाद यह 100 रुपये उतने सामान नहीं खरीद पाएंगे जितना वो आज खरीद सकते हैं और अगर महंगाई दर 6% से बढ़ी हो तो 5 साल बाद इन 100 रुपयों कि कीमत 70 रुपये से भी कम होगी. उसके बाद इस पैसे के साथ हमेशा नोटबंदी, कालेधन धन के खिलाफ कार्यवाही, चोरी, डकैती  जैसी विभिन्न समस्याओं का डर अलग से लगा  रहेगा.

3- गोल्ड, सिल्वर या एसेट्स खरीदेगा- टैक्स चोरी करके आदमी और  स्मार्ट बन गया और उसने उसे खपाने के लिए बेनामी संपत्ति बनाई, सोना ख़रीदा चांदी खरीदी. लेकिन एक चीज उसे हमेशा परेशान करेगी वह है डर लेकिन दूसरी चीज जो उस से भी बड़ी है वो है लम्बे समय सही तरह से संपत्ति निर्माण करने के मौके से चूकना.


अब एक बहुत सामान्य सी लगने वाला कैलकुलेशन करते हैं.

मान लीजिए किसी की 100 रूपये की कुल आय है , वह अपने हिसाब किताब में कुछ हेरा फेरी करके इस आय को 0 बना देता है अब किताब के हिसाब से उसके पास कोई तो आय नहीं है लेकिन वास्तव में उसके पास 100 रुपये हैं दूसरी स्थिति में आदमी 100 रुपये कि आय दिखाता है और उस पर 30% कि दर से टैक्स देता है और 70 रुपये अपनी आय घोषित करता है .

नीचे दिए हुए चार्ट में इन विभिन्न परिस्थितियों में इस 100 रुपये का भविष्य क्या हो सकता है समझने की कोशिश करते हैं.


पहली स्थिति में हेराफेरी करके आदमी ने टैक्स तो बचा लिए लेकिन वो पैसे नहीं बचा पाया और सारे पैसे खर्च कर दिया, दूसरी स्थिति में टैक्स बचाए लेकिन उसे कैश में ही रखा तो 100 रुपये 10 साल बाद भी तिजोरी से 100 रुपये ही निकला और अगर इसमें महंगाई का भी नजरिया रख के सोचे तो 10 साल में 100 का 50 हो जायेगा. तीसरी परिस्थिति में टैक्स चोरी करके बनाये पैसे को सोने चांदी में लगा दिया अगर यह 8% से बढेगा तो 100 रुपये का सोना 10 साल में 216 रूपये कि वैल्यू का होगा लेकिन यह रहेगा हमेशा काला धन, आदमी इस सोने चांदी को लेकर कभी निश्चित नहीं होगा ना ही कभी खुल के उपभोग कर पायेगा.

वहीँ चौथी पारिस्थिति में टैक्स देने के बाद अगर आदमी को 70 रुपये भी बचे और उसे सही जगह निवेश कर दिए तो अगले 10-20 सालों में वो ज्यादा वैल्यू भी बनाएगा, आदमी हमेशा तिकड़म कि उलझन से दूर भी रहेगा.
उसकी सम्पति पूरी तरह से सफ़ेद और टैक्स फ्री होगी.

अब यह देख कर कोई भी समझदार व्यक्ति टैक्स चुका कर नई संभावनाओं में निवेश करना ज्यादा उचित समझेगा और वो संभावनाए खुद के कारोबार में भी हो सकती हैं और इक्विटी म्यूच्यूअल फण्ड के साथ देश और दुनिया के बड़े कारोबार में निवेश करने की भी हो सकती हैं.

असली समझदारी टैक्स चोरी में नहीं सही से टैक्स चूका कर पैसे को सही ढंग से निवेश करने में है

मुझे लगता है इस तरह से लोगों को जानकारी दी जाये और बताया जाय कि टैक्स चोरी करने से केवल आप देश का ही नुकसान नहीं कर रहे बल्कि लम्बे समय में आप अपना भी बहुत बड़ा नुकसान कर रहे हैं.

इसी प्रकार से एसेट्स बेचते हुए भी लोग टैक्स बचाने के चक्कर में कैश में लेन देन कर लेते हैं और जिस से काले धन की समस्या उत्पन्न होती है. वो भी अगर इस तरह से लम्बी दूरी का सोच कर अगर हिसाब लगायेंगे तो उन्हें भी टैक्स देना सुकून से रहना और बचे पैसे को सही ढंग से निवेश करने का विकल्प ज्यादा अच्छा समझ में आएगा.

आदमी तुरंत के लाभ के चक्कर में आगे के नुकसान की अनदेखी कर देता है या तुरंत की हानि से बचने के लिए आगे के अधिक लाभ के रास्ते बंद कर लेता है. तुरन्त हानि आदमी बर्दास्त नहीं करना चाहता उसे वो टालने का प्रयास करता है और इसी मनोवैज्ञानिक कारण से काले धन की समस्या खड़ी होती है और मेरा मानना है कि इस समस्या को जानकारी से दूर किया जा सकता है.

कृपया यह ब्लॉग अधिक से अधिक लोगों में शेयर करें अक्सर अज्ञानता में लोग टैक्स से सम्बन्धित गलतियाँ करते हैं अगर उन्हें सही तरह से समझाया जाय तो शायद टैक्स चोरी करने के विकल्प को लोग त्याग देंगे.

ही टैक्स भरिये अपने भविष्य की तरक्की सुनिश्चित कीजिये.

Tuesday, September 5, 2017

लिक्विड फण्ड में मिलता है सेविंग्स अकाउंट से 3% ज्यादा रिटर्न : ICRA


ICRA जो कि भारत की जानी मानी रिसर्च एजेंसी है उसकी हाल ही में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार लिक्विड फण्ड के माध्यम से एक आम आदमी सेविंग्स अकाउंट से लगभग 3% सालाना ज्यादा रिटर्न बना सकता है. अगर पोस्ट टैक्स रिटर्न की बात करें तो भी यह अंतर 30% टैक्स स्लैब वाले के लिए 1.63% का होता है.

https://www.icraresearch.in/research/ViewResearchReport/1492
रिपोर्ट पढने के लिए ऊपर दिए गए लिंक को क्लिक करें.

31st जुलाई 2017 को देश के सबसे बड़े बैंक SBI ने जब से अपनी सेविंग्स अकाउंट की ब्याज दरें घटाई तब से अब तक लगभग सभी बैंकों ने अपने सेविंग्स अकाउंट में ब्याज दरें घटा दी हैं. क्यूंकि अधिकतर बैंकों में नोटबंदी के बाद डिपॉजिट्स बढे हैं लेकिन अर्थव्यवस्था के हालात अभी भी ना सुधरने के कारण क्रेडिट ग्रोथ एकदम सुस्त है दूसरी तरफ MCLR लागू होने के बाद से बैंकों के NIM पर भी दबाव पड़ा है जिसके चलते लगभग सभी छोटे बड़े बैंकों ने अपने सेविंग्स अकाउंट पर ब्याज दरें कम कर दी. सेविंग्स अकाउंट का योगदान बैंकों के CASA बैलेंस में लगभग 78% और बैंकों को टोटल डिपाजिट बेस में लगभग 30% है और एक अनुमान के अनुसार यह 0.50% कि ब्याज दरों में कटौती, बैंकों के NIM को लगभग 15 बीपीएस बढ़ा देगा.

इस तरह से बैंकों ने अपने फायदे का काम तो कर  लिया है. अब बारी है एक आम आदमी को इस बात को समझने की सेविंग्स अकाउंट के तुलना में लिक्विड फण्ड अगर आपको 3% तक ज्यादा रिटर्न दे सकते हैं तो क्यूँ ना सेविंग्स अकाउंट का पैसा लिक्विड फण्ड में रखा जाय.

बैंकों का यह मानना है कि रिटेल कस्टमर सेविंग्स अकाउंट का प्रयोग इन्वेस्टमेंट या लम्बे समय तक रखने के लिए नहीं करता है बल्कि सेविंग्स अकाउंट का उपयोग वह केवल ट्रांजेक्शन करने के लिए करता है और सेविंग्स अकाउंट और करंट अकाउंट का उद्देश्य भी यही है . लेकिन देश में क्या इतने लोग फाइनेंसियली जागरूक हैं?? निश्चित तौर पर नहीं अन्यथा इतना बड़ा अमाउंट (टोटल डिपाजिट का 30%) सेविंग्स अकाउंट में नहीं पड़ा रहता और बैंकिंग इंडस्ट्री का CASA बैलेंस 100 लाख 10 हजार करोड़ नहीं होता.

फिलहाल  नयी परिस्थितयों में लिक्विड फण्ड के बारे में लोगों में जागरूकता बढ़ाने में ICRA की रिपोर्ट काम आ सकती है.

इस रिपोर्ट के अनुसार, 31st जुलाई 2017 को म्यूच्यूअल फण्ड इंडस्ट्री के पास 4.19 लाख करोड़ रूपये लिक्विड फण्ड में जमा थे और पिछले 1 साल में इन योजनाओं में 6.5% से 7% की सालाना दर से रिटर्न बना है. जब की पिछले 5 महीनों में ब्याज दरों के घटने कि बाद भी लिक्विड फंड्स ने 6.25% से 6.50% की दर से रिटर्न दिया है.

 ऊपर दिए गए चार्ट से यह निकल कर आता है कि अगर आप 30% टैक्स दायरे में हैं तो भी पोस्ट टैक्स 1.63% ज्यादा रिटर्न बनाते हैं,

नियमों के अनुसार लिक्विड फण्ड 91 दिन तक के मनी मार्केट इंस्ट्रूमेंट्स में निवेश कर सकते हैं, जब कि अधिकतर  लिक्विड फण्ड 60 दिन से ज्यादा के इंस्ट्रूमेंट्स में निवेश नहीं करते. सेबी के निर्देश अनुसार 60 दिन या उस से कम के डेब्ट  इंस्ट्रूमेंट्स की वैल्यू म्यूच्यूअल फण्ड कंपनी Amortisation मेथड से कर सकती है और 60 दिन से ज्यादा के इंस्ट्रूमेंट्स का वैल्यूएशन मार्क तो मार्केट मेथड के अनुसार करना होता है.

NAV जब Amortisation प्रक्रिया से निकाली जाती है तो पोर्टफोलियो की वैल्यू में कोई उतार चढाव नहीं आता और NAV हमेशा सीधी लाइन में बढ़ते हुए क्रम में चलती है, इसलिए लिक्विड फण्ड की  NAV में उतार चढ़ाव नहीं देखे जाते. बैंक और बड़े कॉर्पोरेट्स इसलिए लिक्विड फण्ड में निवेश करते हैं क्यूंकि उन्हें सेफ्टी के साथ यहाँ पर लिक्विडिटी भी मिलती है और ज्यादा रिटर्न भी.

एक साल में कितना फायदा हो सकता है सेविंग्स अकाउंट कि जगह लिक्विड फण्ड में पैसे रखने से

एक साल में 1000 से लेकर 3000 रुपये तक नुकसान आप उठाते हैं अगर आप अपने सेविंग्स अकाउंट में औसतन 1 लाख रुपये रखते हैं. नीचे दिए गए चार्ट के अनुसार 30% टैक्स स्लैब वाले को साल में 1000 रुपये का नुकसान होता है और यही नुकसान 5% स्लैब वाले के लिए बढ़ कर 2675 रुपये हो जाता है.

और यह नुकसान बढ़ कर 7500 से 15000 रुपये हो जाता है अगर आपका सेविंग्स अकाउंट में पूरे साल में औसतन जमा 5 लाख रुपये रहता है.
समझने वाली बात यह भी है कि आप लिक्विड फण्ड में पैसे लगा कर अपने लिए भी ज्यादा लाभ कमाते हैं  और देश की तरक्की में भी अपना योगदान ज्यादा टैक्स दे कर करते हैं.

इसीलिए कॉर्पोरेट्स, बैंक और बड़े निवेशक (HNI) अपने छोटे समय के सरप्लस फंड्स को लिक्विड फण्ड में रखते हैं जिस से वो थोड़ी अतिरिक्त कमाई भी कर लेते हैं और उनका पैसा सुरक्षित होने के साथ कभी भी इस्तेमाल करने के लिए बिना किसी रुकावट के उपलब्ध रहता है.


कॉर्पोरेट्स, बैंक और बड़े निवेशक (HNI) तो इन योजनाओं का लाभ उठा रहे हैं, अब देखना यह है कि म्यूच्यूअल फण्ड इंडस्ट्री इस शानदार प्रोडक्ट को रिटेल इन्वेस्टर तक सही तरीके से कब तक पहुंचा पाते है और दूसरी तरफ रिटेल इन्वेस्टर लिक्विड फण्ड को अपने लिए कितना जरुरी समझ पाता है.


ऊपर दिए गए चार्ट से यह तो पता चलता है कि पिछले दो वर्षों में रिटेल इन्वेस्टर का योगदान लिक्विड फण्ड  के  AUM में 2% बढ़ा है लेकिन 4.19 लाख करोड़ के मुकाबले 36000 करोड़  बहुत कम है.

म्यूच्यूअल फण्ड इंडस्ट्री को मिल कर लिक्विड फण्ड को रिटेल इन्वेस्टर के लिए और भी आकर्षक और सुविधाजनक बनाने के लिए प्रयास करना होगा जिससे कि यह प्रोडक्ट देश के हर बैंक अकाउंट होल्डर के पास पहुँच सके. हाल ही में सेबी ने लिक्विड फण्ड से 50,000 रुपये तक तुरन्त निकासी की सुविधा देने के म्यूच्यूअल फण्ड इंडस्ट्री के प्रस्ताव को मंजूरी दी  है. नए प्रावधान के अनुसार अब आप 50000 रुपये तक की राशि लिक्विड फण्ड से आप तुरंत निकाल कर अपने बैंक अकाउंट में ला सकते हैं जब कि पहले लिक्विड फण्ड से पैसे बैंक अकाउंट में आने में 1 दिन का समय पहले लगता था.

म्यूच्यूअल फण्ड की यह योजना सेविंग्स अकाउंट का पूरी तरह से विकल्प तो नही हो सकती लेकिन आप इसका सही से इस्तेमाल करके अपने लिए अधिक फायदा के काम कर सकते हैं.

जरुरत है एक आम निवेशक को इसे समझने और प्रयोग में लाने की.

Wednesday, August 2, 2017

SBI ने क्यूँ घटाई सेविंग्स अकाउंट की ब्याज दरें और अब आपको क्या करना चाहिये




देश के सबसे बड़े बैंक SBI का सेविंग्स अकाउंट पर ब्याज दरें घटाना किसी को भी अच्छा नहीं लग रहा, सोशल मीडिया पर भी इस को लेकर लोग कड़ी प्रतिक्रिया दे रहे हैं. लेकिन इस कदम के पीछे क्या कारण है इसे समझना चाहिए और एक आम आदमी के पास क्या विकल्प हैं इसके बारे में भी हमें जानना चाहिए.

सबसे पहले समझते हैं ये सेविंग्स अकाउंट या करंट अकाउंट किस लिए है ??

फाइनेंसियल एक्सपर्ट का मानना है कि सेविंग्स अकाउंट या करंट अकाउंट पैसे के लेन देन के लिए बनाये गये हैं. इसका उद्देश्य आपको पैसे के लेन-देन में मदद करना है ना कि एक बड़ा अमाउंट इसमें जमा करना है. लेकिन अपने देश में फाइनेंसियल निरक्षरता के कारण लोग इन अकाउंट्स में बड़ी राशी लम्बे समय तक रखते हैं. केवल SBI ग्रुप के बैंको के सेविंग्स और करंट अकाउंट में 9.5 लाख, करोड़ रूपये जमा हैं और शायद यह आंकड़ा 110 लाख, करोड़ में बदल जाएगा जब आप सारे बैंकों के सेविंग्स और करंट अकाउंट बेस कि बाते करेंगे.

अब आप खुद सोचिये जिस देश के लोग 110 लाख करोड़ रूपये सेविंग्स और करंट अकाउंट में रखते हैं वो अपने आर्थिक मामले कैसे सँभालते होंगे.

अगर आप नोटबंदी के समय लिखे गए मेरे ब्लॉग को दोबारा पढेंगे तो आपको इस बात का आभास हो जायेगा कि इसके बारे में मै पहले ही आगाह कर  चूका हूँ कि आने वाले समय में बैंक अपने सेविंग अकाउंट पर भी ब्याज दरें घटा सकते हैं और साथ में आप को और कौन से विकल्पों के बारे में सोचना, समझना चाहिए.

क्यूँ घटायी SBI ने सेविंग्स अकाउंट कि ब्याज दर-

लगभग 6 साल पहले RBI ने सेविंग अकाउंट कि ब्याज दरें तय करने की छूट बैंकों को दी थी तब से किसी बड़े बैंक ने पहली बार अपनी ब्याज दरें घटाई हैं.

SBI का CASA (Current A/C & Savings A/C) बेस पहले ही से बहुत बड़ा था, नोटबंदी के बाद इसमें लगभग 1.5 लाख करोड़ की बढ़ोतरी देखी गई. CASA बैलेंस में वृद्धि देख कर बैंकों को अपने  MCLR घटाने पड़े. लेकिन जब परिस्थियाँ सामान्य होने लगीं तो बैंक में नोटबंदी के बाद आये डिपॉजिट्स में से लगभग 60% पैसा निकल गए . नोटबंदी के बाद डिपाजिट बेस बढ़ने से जहाँ बैंक पर ब्याज देने का बोझ पड़ा वहीँ पर MCLR घटने से उनका मार्जिन कम हुआ, क्रेडिट ग्रोथ कम होने और जान बूझ कर लोगों का लोन रीपेमेंट (कृषि और अन्य लोन पर ) ना करने के कारण बैंकों के ऊपर ब्याज कि कमाई कम होने के कारण दबाव दिखने लगा.

अब इस दबाव को कम करने के लिए बैंक या तो अपनी कास्ट ऑफ़ फंडिंग घटाये या लोन पर ब्याज दरें बढ़ाये मतलब बैंक के पास दो रास्ते थे पहला कि वह MCLR बढ़ाये (लोन पर ब्याज दरें) और दूसरा डिपाजिट पर ब्याज दरें घटाये.

फिक्स्ड डिपाजिट पर ब्याज घटाने से आने वाली नयी डिपॉजिट्स पर ही बैंक को कम ब्याज देना पड़ता और उसका प्रभाव केवल इंक्रीमेंटल होता लेकिन सेविंग्स अकाउंट में ब्याज दर घटाने से एक ही बार में SBI ने अपने ऊपर से काफी बोझ हल्का कर लिया.

वहीँ लोन पर ब्याज दरें बढ़ाने का मतलब है रही सही क्रेडिट ग्रोथ को और कम करना इसलिए ज्यादा सही रास्ता बैंक के लिए कास्ट ऑफ़ फंडिंग घटाना ही था.

और यहाँ SBI ने ऐसा रास्ता चुना जो कि मुझे लगता है कि ज्यादा ठीक है, क्यूंकि उसने ना तो उनको दण्डित किया जो फिक्स्ड डिपाजिट करते हैं और ना ही उनको जो उसके लोन ग्राहक हैं. बल्कि सेविंग्स और करंट अकाउंट में बड़ा पैसा रखने वाले लोगों के हिस्से से थोडा ब्याज कम कर दिया. अब जो लोग 4% कि ब्याज दर पर पैसे रख कर सालों से किसी चमत्कार का इन्तेजार कर रहे हैं उनके लिए 0.50% का कमी क्या मायने रखती है. इसलिए मुझे लगता है SBI का यह समझदारी भरा कदम है.

हो सकता है आने वाले समय में बाकि बैंक भी यह रास्ता चुने.


आपके पास क्या विकल्प हैं ?

जब से RBI ने सेविंग्स अकाउंट पर ब्याज दर को तय करने की छूट बैंकों को दी है तब से कुछ प्राइवेट और छोटे बैंकों ने अपने सेविंग्स अकाउंट पर ब्याज दरें बढ़ा दी तो एक काम आप यह कर सकते हैं कि अपना सेविंग्स अकाउंट दूसरे बैंक में शिफ्ट करिये. आप कि जानकारी  के लिए नीचे दिए गए कुछ बैंक कि सेविंग्स अकाउंट पर मिलने वाली ब्याज दरें उपलब्ध करा रहा हूँ आप इनके बारे में पता लगा सकते हैं.


Source: www.bankbazaar.com

लेकिन सेविंग्स बैंक अकाउंट बदलना बहुत आसान नहीं है क्यूंकि हो सकता है यह आपका सैलरी अकाउंट हो या आपके लोन कि किश्त इस से जाती हो या आपने विभिन्न जगहों पर जैसे इनकम टैक्स, म्यूच्यूअल फण्ड, इंश्योरेंस या अन्य किसी जगह पर यह अकाउंट दिखा रखा हो और इसे बंद करने से पहले आपको बाकि सब जगहों पर अपने रिकार्ड्स अपडेट कराने पड़ेंगे.

इतनी सारी बातें सोच कर आम तौर पर लोग मन मसोस कर बैंक अकाउंट चालू ही रखेंगे कम से कम पीछे का ट्रेंड तो यही बताता है. पिछले 6 सालों में कई बैंक ने अपने सेविंग्स अकाउंट पर ब्याज दरें बढाई हैं लेकिन जिन बैंकों ने ऐसा नहीं किया उनके ना तो अकाउंट कम हुए और ना ही उनका डिपाजिट बेस कम हुआ, बल्कि उनका डिपाजिट बेस औसत दर से तेज बढ़ा है. मतलब यही समझा जाये कि एक अकाउंट होल्डर के लिए सेविंग्स अकाउंट बंद करना और नये बैंक में खोलना बहुत आसान नहीं है और ना ही वह ज्यादा ब्याज के लिए करता है.

इसलिए ऐसा समझा जाना गलत नहीं होगा  कि SBI के इस कदम से उसके ना तो अकाउंट ही कम होंगे और ना ही उसका डिपाजिट बेस कम होगा, हाँ लेकिन उसकी कास्ट ऑफ़ फंडिंग कम हो जायेगी.

अब आपको मै दूसरा विकल्प बताता हूँ जिसको करने के लिए आपको बैंक अकाउंट बंद नहीं करना पड़ेगा बल्कि इसी बैंक अकाउंट के जरिये आप ज्यादा कमाई कर पायेंगे और आपका पैसा भी सुरक्षित रहेगा और सेविंग्स अकाउंट कि तरह वो लिक्विड भी रहेगा.


और इस विकल्प का नाम है लिक्विड फण्ड....


लिक्विड फण्ड के बारे में अधिक जानकारी के लिए आप नीचे दिए गए लिकं को क्लिक करें.


लिक्विड फण्ड आपके सेविंग्स अकाउंट का रिप्लेसमेंट तो नहीं हो सकता क्यूंकि यह माध्यम बहुत कम अवधि के लिए सेविंग या डिपाजिट करने के लिए है किसी और से लेन-देन करने के लिए नहीं. हाँ लेकिन यह सेविंग्स अकाउंट या करंट अकाउंट का एक्सटेंशन हो सकता है. जब भी देखा सरप्लस पैसा है बैंक अकाउंट में तो वहां से शिफ्ट कर दिया लिक्विड फण्ड में और जैसे पैसे कि जरुरत पड़ी लिक्विड फण्ड से अपने बैंक अकाउंट में शिफ्ट कर लिया. और यकीन मानिए ऐसा करने में आपको 2 मिनट से ज्यादा का समय नहीं लगेगा.

देश में डिजिटल क्रांति के कारण लिक्विड फण्ड में आज के समय निवेश करना और उनसे पैसे निकालना बहुत ही आसान है. आज आप मोबाइल ऐप के माध्यम से sms के माध्यम से , व्हाट्स ऐप के माध्यम से या फ़ोन करके म्यूच्यूअल फण्ड में पैसे लगा भी सकते हैं और निकाल भी सकते हैं.

एक औसत लिक्विड फण्ड ने पिछले 1 साल में 6.80% का रिटर्न दिया है जो कि SBI की सेविंग्स अकाउंट पर मिलने वाले आज के ब्याज दर का लगभग दोगुना है.

कितना पैसा रखें सेविंग्स अकाउंट में - 

सेविंग्स अकाउंट में आपको 1-3 महीने भर के खर्चे से ज्यादा पैसा नहीं रखना चाहिए बाकी इस से अधिक पैसे आपके सेविंग्स अकाउंट में हों तो लिक्विड फण्ड में डालिए.


आखिर में एक बात कहूँगा .......पैसा आपका है, निर्णय आपको करना है कि बैंक द्वारा ब्याज दरें घटाने पर मन ही मन कुढ़ते रहना है या बेहतर विकल्पों के बारे में जानकारी लेनी है और उनके साथ आगे बढ़ना है.

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Monday, July 24, 2017

डेब्ट फण्ड समझिये और फिक्स्ड डिपाजिट भूल जाइये...



डेब्ट फण्ड और फिक्स्ड डिपाजिट के बारे में आपने पिछले ब्लॉग में पढ़ा होगा.. आज समझते हैं कि डेब्ट फण्ड कैसे रिटर्न बनाते हैं और कैसे वो फिक्स्ड डिपाजिट से बेहतर बनते हैं.

डेब्ट फण्ड या फिक्स्ड इनकम फण्ड इतने प्रकार के होते हैं कि आम निवेशक के लिए यह समझना बहुत मुश्किल है कि उसके लिए कौन सा फण्ड सही है उसे कितने समय के लिए किन फंड्स में निवेश करना है, क्यूँ इतने तरह के डेब्ट फंड्स मार्केट में उपलब्ध है? 

वैसे तो डेब्ट फण्ड, इक्विटी फण्ड के मुकाबले बहुत ज्यादा सुरक्षित होते हैं लेकिन इनसे मिलने वाला रिटर्न, अलग अलग फंड्स की उनकी उपयोगिता और रिटर्न के कम या ज्यादा होने कि संभावना, इन तीनों बातों को आप समझ कर पैसे नहीं लगाते तो आपका अनुभव शायद इनको लेकर उतना अच्छा ना हो.

कुछ दिन पहले मेरी एक वर्कशॉप में एक रिटायर्ड पीसीएस ऑफिसर अपने नोटबुक के साथ आये उन्होंने बहुत सारे प्रश्न डेब्ट फंड्स के बारे में मुझसे किये, वर्क शॉप के बाद उन्होंने अपनी नोट बुक मुझे दिखाई, उस नोट बुक में उन्होंने कई सारे समाचार पत्रों में निकले लेखों कि कटिंग लगा रखी थी. अपने रिटायरमेंट फण्ड का निवेश करने के लिए इतनी पढाई वो कर रहे थे. लेकिन जिन लेखों का रेफ़रेन्स वो ले रहे थे वो उन्हें गलत दिशा में ले जा रहे थे, जैसे एक लेख में लिखा था "डायनेमिक बांड फण्ड ने दिया इक्विटी से ज्यादा रिटर्न ", दूसरे लेख में लिखा था "बांड फण्ड में बने एक साल में 14% रिटर्न और साथ में वह लेख इस तरह से लिखा था कि आम निवेशक यही समझे कि यहाँ पर पैसे लगाने में एक साल में 14% ब्याज मिलता है और यही बात वो भी समझ रहे थे. जब मैंने अपने वर्कशॉप में यह बात की आम तौर पर डेब्ट फण्ड में डबल डिजिट रिटर्न बनाना मुश्किल  होता है तो वह इसी लेख में लिखी  बातों को लेकर प्रश्न करने लगे. क्यूंकि उन्होंने पेपर में छपे लेख पर इतना भरोसा था कि जब तक मैंने उन्हें डेब्ट फण्ड में रिटर्न कहाँ से और कैसे मिलते हैं वो ठीक से नहीं समझा दिया तब तक वो न्यूज़ पेपर कि बात को गलत मानने के लिए तैयार नहीं थे.

तो इस तरह से कई बार निवेशक सही तरह से प्रोडक्ट को समझ नहीं पाते और इतनी रिसर्च करने के बाद भी गलत फण्ड में निवेश करते हैं और फिर म्यूच्यूअल फण्ड के बारे में गलत धारणा बना लेते हैं.

डेब्ट म्यूच्यूअल फण्ड में अगर आप पैसे लगाने जा रहे हैं तो इस ब्लॉग को ध्यान से पढ़िए. इसे पढने के बाद आप जान पाएंगे कि डेब्ट फण्ड में पैसे लगाने से पहले क्या-क्या तथ्य आप को देखने चाहिए साथ ही एक आम निवेशक के लिए कौन से डेब्ट फण्ड सही होते हैं.


डेब्ट फण्ड में रिटर्न कहाँ से आता है - 


डेब्ट फण्ड में रिटर्न दो तरह से बनते हैं पहला तो उसके पोर्टफोलियो में जो भी बांड, डिबेंचर, गवर्नमेंट सिक्योरिटीज या और कोई डेब्ट इंस्ट्रूमेंट ख़रीदे गए हैं उनसे मिलने वाले ब्याज से और दूसरा अर्थव्यवस्था में ब्याज दर के गिरने से उन बांड, डिबेंचर, गवर्नमेंट सिक्योरिटीज के मार्किट रेट में होने वाले परिवर्तन से . केवल यही दो सोर्स होते हैं किसी भी डेब्ट फण्ड में रिटर्न बनाने के. 

यहाँ पर ये समझान बहुत जरुरी है कि पहला सोर्स तो एक तरह से स्टेबल होता है लेकिन दूसरा सोर्स कई बार फण्ड के रिटर्न बढाता है और कई बार फण्ड के रिटर्न कम भी कर देता है. और यही दूसरा सोर्स डेब्ट फंड्स को ट्रेडिशनल फिक्स्ड डिपाजिट से अलग करता है.

डेब्ट फण्ड के रिटर्न समझने के लिए आपको जानने चाहिए ये तीन महत्वपूर्ण तथ्य-

1- पोर्टफोलियो का YTM (Yield Till Maturity)


ये बहुत महत्वपूर्ण इंडिकेटर है जिसे देख कर आप मोटा-मोटा यह अनुमान लगा सकते हैं कि आपके डेब्ट फण्ड के रिटर्न में पहला सोर्स ऑफ़ रिटर्न मतलब इंटरेस्ट कितना योगदान देने वाला है. पोर्टफोलियो का YTM जितना ज्यादा है उस डेब्ट फण्ड में ब्याज से होने वाली इनकम उतनी ज्यादा होगी.


2- पोर्टफोलियो का Modified Duration (Mod)



पोर्टफोलियो का Mod आपको यह बताता है कि मार्किट में 1% ब्याज दर के घटने से आपके फण्ड का रिटर्न कितना बढेगा और 1% ब्याज बढ़ने से फण्ड का रिटर्न कितना कम होगा.



3- फण्ड के खर्चे (Expens Ratio)- 


फण्ड को मैनेज करने, मार्किट करने या अन्य किसी तरह के खर्चे को दर्शाने के लिए फण्ड का एक्सपेंस रेशियो बताया जाता है. अगर किसी स्कीम का एक्सपेंस रेशियो 1.25% है तो इसका मतलब है पुरे साल में फण्ड 1.25% कि दर से फण्ड कि NAV (Net Asset Value) से ये खर्चे काट लिए  



अब ऊपर दिया गए तीनों फैक्टर्स को देख कर आप आसानी से यह अनुमान लगा सकते हैं कि अगले एक साल में आपके डेब्ट फण्ड में क्या रिटर्न मिल सकता है.



मान लीजिये किसी फण्ड का YTM 9% है और उसका Mod 2.5% है और उसका एक्सपेंस रेशियो 1% है. अब हम अनुमान लगाते हैं कि अगले एक वर्ष में मार्केट में ब्याज दर 0.50 कम होती है, 0.50% बढती है या ब्याज दरों में कोई परिवर्तन नहीं होता है, तीनों अवस्था में डेब्ट फण्ड में रिटर्न अलग-अलग बनेंगे और इसका अनुमान बस आप एक सूत्र से पता कर सकते हैं


पोर्टफोलियो रिटर्न = YTM - (Change in Interest Rate X Mod Duration) - Exp Ratio

i) 0.50% ब्याज दर कम होना-


पोर्टफोलियो रिटर्न = 9 - (-0.50 X 2.50) - 1.25
                    = 9 - (-1.25) - 1.25
                    = 9 + 1.25) - 1.25
                    = 9%
इस तरह से 0.50% ब्याज दर में कमी आने से आपके डेब्ट फण्ड का रिटर्न 9% बन सकता है

ii)  0.50% ब्याज दर बढ़ना-


पोर्टफोलियो रिटर्न = 9 - (0.50 X 2.50) - 1.25
                    = 9 - (1.25) - 1.25
                    = 9 - 1.25 - 1.25
                    = 6.50 %
इस तरह से 0.50% ब्याज दर बढ़ने से आपके डेब्ट फण्ड का रिटर्न 6.50% बन सकता है

iii)  ब्याज दर में कोई परिवर्तन ना होना


पोर्टफोलियो रिटर्न = 9 - (0 X 2.50) - 1.25
                    = 9 -0 - 1.25
                    = 7.75%

जब ब्याज दर में कोई परिवर्तन ना आने पर आपके डेब्ट फण्ड का रिटर्न अगले एक वर्ष में 7.75% बन सकता है. 

एक डिस्क्लेमर देना यहाँ जरुरी है कि इस सूत्र द्वारा जो अनुमान लगा रहे हैं वो शत प्रतिशत तो आपके फण्ड से मिलने वाले रिटर्न से मैच नहीं करेगा. लेकिन इस तरह से आप मोटा-मोटा अनुमान लगा सकते हैं कि फण्ड कितना रिटर्न बना सकता है.  

तो इस तरह से आपने समझ लिए डेब्ट फण्ड के रिटर्न के बारे में.

अब जरुरी है समझना डेब्ट फण्ड में रिस्क के बारे में-

डेब्ट फण्ड में मुख्यतः 2 रिस्क होते हैं पहला इंटरेस्ट रेट रिस्क और दूसरा क्रेडिट रिस्क.

इंटरेस्ट रेट रिस्क आप ऊपर समझ चुके हैं... ब्याज दरों के घटने बढ़ने से आपके पोर्टफोलियो के रिटर्न घटते और बढ़ते हैं इस रिस्क को हम इंटरेस्ट रेट रिस्क कहते हैं और इसे आपने ऊपर दिए हुए उदाहरण से अच्छे से समझ लिया होगा. 

दूसरा रिस्क होता है क्रेडिट रिस्क, फण्ड मैनेजर  पोर्टफोलियो के रिटर्न बढ़ाने के लिए कम रेटिंग के बांड्स या डिबेंचर में निवेश करते हैं क्यूंकि जिन बांड्स कि रेटिंग कम होती है वो अच्छी रेटिंग वाले बांड्स कि तुलना में ज्यादा इंटरेस्ट देते हैं इसलिए फण्ड मैनेजर अपने फण्ड का रिटर्न बढ़ाने के लिए कैलकुलेट्ड रिस्क लेते हैं. क्रेडिट रेटिंग घटने से बांड की मार्केट वैल्यू भी घटती है और यही रिस्क कहलाता है क्रेडिट रिस्क. Govt Sec को हाईएस्ट क्रेडिट रेटिंग मिलती है, उसके बाद AAA रेटेड बांड का नंबर आता है, और जैसे-जैसे ये रेटिंग AA, A, BBB, BB घटती है वैसे ही बांड के क्रेडिट रिस्क बढ़ जाते हैं.


कौन सा डेब्ट फण्ड है आपके लिए -


पोर्टफोलियो की Average Maturity देख कर आप यह अनुमान लगा सकते हैं कि उस फण्ड में आपको कम से कम कितने दिन के लिए निवेश करना चाहिए.

अगर फण्ड की Average Maturity 1-60 दिन की है तो आप उसमे 1 दिन से लेकर 3 महीने के लिए पैसे लगायें. सामान्यतः इस रेंज में आपको लिक्विड फण्ड या मनी मार्केट फण्ड मिलेंगे.

अगर फण्ड की Average Maturity 4 महीने से 8 महीने की है तो आप उसमे 3 महीने से लेकर 6 महीने तक के लिए पैसे लगायें. सामान्यतः इस रेंज में आपको अल्ट्रा शोर्ट टर्म फण्ड मिलेंगे.

अगर फण्ड की Average Maturity 9 महीने से 1.5 साल के आस पास की है तो आप उसमे 6 महीने से लेकर 1 साल के लिए पैसे लगायें. सामान्यतः इस रेंज में आपको शार्ट टर्म फण्ड मिलेंगे.

अगर फण्ड की Average Maturity 1.5 साल से 4.5 साल के आस पास की है तो आप उसमे  दिन से लेकर 1 से 3 साल के लिए पैसे लगायें. सामान्यतः इस रेंज में आपको मीडियम टर्म, कॉर्पोरेट बांड फण्ड या क्रेडिट फण्ड मिलेंगे.

5 साल से अधिक के Average Maturity वाले फण्ड और पोर्टफोलियो में BB से नीचे रेटिंग वाले बांड में निवेश करने वाले फण्ड में पैसे लगाने से पहले अपने निवेश सलाहकार से फण्ड में क्रेडिट रिस्क और इंटरेस्ट रेट रिस्क के ऊपर अवश्य चर्चा करें.

डेब्ट फण्ड की Average Maturity, YTM, Mod Duration और Exp Ratio ये चारो चीजें आपको फण्ड के फैक्टशीट या अन्य वेबसाइटस से मिल सकता है. 

डायनामिक बांड फण्ड, गिल्ट फण्ड, लॉन्ग टर्म इनकम फण्ड या इनकम फण्ड जैसे नाम के फण्ड में एक रिटेल इन्वेस्टर को इन्वेस्ट करने से पहले आने वाले समय में अर्थव्यवस्था में होने वाले ब्याज दरों के परिवर्तन जरुर समझ लेना चाहिए क्यूंकि इन केटेगरी के फंड्स में इंटरेस्ट रेट रिस्क ज्यादा होता है. मार्केट में इंटरेस्ट रेट बढ़ने कि स्थिति में इन फंड्स के रिटर्न में कमी आती है और जिसके कारण कई बार 3-6 महीने के लिए इन फंड्स के रिटर्न नेगेटिव भी हो जाते हैं या बहुत कम हो जाते हैं.

कैपिटल प्रोटेक्शन और डेब्ट ओरिएंटेड हाइब्रिड फंड्स में तभी निवेश करें जब मार्केट में ब्याज दरें अधिक हों और इक्विटी मार्केट भी फेयर वैल्यूएशन पर हो अन्यथा आपको 3 साल बाद मिलना वाला रिटर्न फिक्स्ड डिपाजिट से बेहतर नहीं होगा.

तीन फैक्टर डेब्ट फंड्स को एक सामान्य फिक्स्ड डिपाजिट से बेहतर बनाते हैं- पहला फैक्टर है इंटरेस्ट रेट में होने वाले परिवर्तन को फण्ड मैनेजर कैसे आपके हित में काम करवाता है, दूसरा क्रेडिट रेटिंग के मामले में कैलकुलेट्ड रिस्क ले कर आपके रिटर्न कैसे बढाता है तीसरा इनसे मिलने वाले रिटर्न पर लगने वाला टैक्स. 

डेब्ट फण्ड को समझ कर यदि आप निवेश करेंगे तो आप अपने पुराने इन्वेस्टमेंट के तरीके को जल्दी ही भूल जायेंगे क्यूंकि यह तरीका आपके रिटर्न भी बढ़ाएगा और उस रिटर्न पर लगने वाले टैक्स के बोझ को भी कम करेगा और इस तरह से यह तरीका आपकी पूंजी पर ट्रेडिशनल डिपॉजिट्स से मिलने वाले पोस्ट टैक्स रिटर्न से साल दर साल  1-3% के रिटर्न बढ़ा सकता है.

डेब्ट फण्ड से मिलने वाले रिटर्न पर कैसे लगता है टैक्स पढने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें.


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Tuesday, June 20, 2017

डेब्ट म्यूच्यूअल फण्ड या फिक्स्ड डिपाजिट... किसमे कितना है दम


एक आम निवेशक को म्यूच्यूअल फण्ड में रिस्क और रिटर्न समझाना अपने आप में एक बड़ी चुनौती होती है. एक निवेशक का निवेश करने से पहले आम तौर पर यही प्रश्न होता है इसमें कितना रिटर्न मिलेगा और बैंक डिपाजिट से या फिक्स्ड डिपाजिट से कितना ज्यादा देगा, साथ में ही इस रिटर्न की क्या गारंटी है ? कहाँ लिखा है ? और यहीं पर फिक्स्ड इनकम म्यूच्यूअल फण्ड ट्रेडिसनल फिक्स्ड डिपाजिट से अलग हो जाता है क्यूंकि इनमे में भविष्य में मिलने वाला रिटर्न कहीं  लिखा नहीं होता, यहां सिर्फ पिछले सालों में मिले रिटर्न का विवरण होता है. आगे क्या मिलेगा इसका आंकलन फण्ड को होनी वाली इंटरेस्ट इनकम और भविष्य में इंटरेस्ट रेट में होने वाले परिवर्तन से किया जा सकता है. जबकि बैंक डिपाजिट या फिक्स्ड डिपाजिट में इंटरेस्ट या मेच्योरिटी वैल्यू पहले से ही लिखा होता है.

म्यूच्यूअल फण्ड को अपने  रिटर्न किसी बेंचमार्क से तुलना करके बताने होते हैं तो डेब्ट म्यूच्यूअल फण्ड में भी कई सारे बेंचमार्क हैं, जैसे क्रिसिल लिक्विड फण्ड इंडेक्स, क्रिसिल सॉर्ट टर्म बांड फण्ड इंडेक्स या क्रिसिल लॉन्ग टर्म बांड फण्ड इंडेक्स. अब डेब्ट फण्ड और इंडेक्स की परफॉरमेंस का तुलनात्मक अध्ययन करना और एक आम निवेशक को यह समझाना की डेब्ट फण्ड भी आपको बैंक डिपाजिट से बेहतर और स्टेबल रिटर्न दे सकते हैं यह समझा पाना थोडा पेंचीदा हो जाता है. 

इसीलिए एक आम निवेशक ऐसे प्रोडक्ट में निवेश करना ज्यादा पसंद करता है जिसमे उसे पहले से ही पता हो की कब और कितना रिटर्न मिलेगा, जैसा की बैंक डिपाजिट या फिक्स्ड डिपाजिट में होता है. 

पहले यह समझते हैं कि बैंक डिपाजिट कैसे काम करते हैं . बैंक अपने अकाउंट होल्डर से डिपाजिट लेता है और उसी पैसे को दूसरों को अधिक ब्याज पर लोन देता है. उदाहरण के लिए जब बैंक अपने डिपाजिटर से 6% पर डिपाजिट लेता है और उसी पैसे को दुसरे आदमी को 9.5% ब्याज पर लोन दे देता है तो बैंक की समय पर ब्याज और मूल धन चुकाने की क्षमता इस बात पर निर्भर करती है कि लोन लेना वाला आदमी उसे कितने समय से पैसे ब्याज के साथ लौटा रहा है. और यह तो सभी को पता है ऐसा कोई बैंक नहीं है जिसके पास आज के समय अच्छा खासा नॉन परफोर्मिंग एसेट ना हो, हर एक बैंक के लोन बुक में समस्या है. इसलिए यह समझना बहुत जरुरी है की बैंक यह कैसे आश्वस्त करता है कि इन  नॉन परफोर्मिंग एसेट या बैड लोन का रिस्क  डिपाजिटर पर ना पड़े.

एक बैंक अपने लोन की फंडिंग पूरी तरह से डिपाजिट से नहीं कर सकता उसे इक्विटी कैपिटल भी रखना पड़ता है जिससे वो इन नुकसानों का सामना कर सके और उसका प्रभाव एक आम डिपाजिटर पर ना पड़ने दे. लेकिन क्या यह सिस्टम पूरी तरह से सुरक्षित है क्या एक आम डिपाजिटर का पैसा वाकई में ऐसे बैंक में सुरक्षित है जहाँ लोन डिफ़ॉल्ट ज्यादा हों या नॉन परफोर्मिंग एसेट नियंत्रण से बाहर होने वाले हों और जिनके पास पर्याप्त कैपिटल ना हो.

ग्लोबल ट्रस्ट बैंक के अलावा पिछले 20-25 सालों में किसी बैंक का उदाहरण हमें नहीं मिलता जिसमे डिफ़ॉल्ट होने की नौबत आई और फिर सरकार और RBI को हस्तक्षेप कर के बैंक को फाइनेंसियल प्रॉब्लम से उबारने के लिए किसी दूसरे बैंक को अधिग्रहण करवाना पड़ा. वैसे ग्लोबल ट्रस्ट बैंक के डिपाजिटर के लिए यह समय बहुत आराम दायक नहीं था, उस समय उनको अपने डिपाजिट के वापस मिलने का भरोसा थोडा डगमगा गया था. इस तरह की समस्या केवल एक  बैंक में होती है तब तो सरकार संभाल सकती है लेकिन अगर ऐसी समस्या एक से ज्यादा बैंको में हो जाय तो सरकार के लिए भी इसे संभाल पाना भी मुश्किल हो सकता है.  

कोऑपरेटिव बैंको के उदाहरण कई सारे मिल जायेंगे जहाँ पर डिपाजिट होल्डर के सेविंग अकाउंट के पैसे भी वापस नहीं मिल पाए. लेकिन प्राइवेट & सरकारी बैंकों का को-ऑपरेटिव बैंको से तुलना करना सही नहीं होगा.

सरकारी बैंक में आज के समय बैड एसेट या NPA की जो समस्या है वो एक डरावनी तस्वीर पेश करती है. अगर बैंक इनको संभाल ना सकी तो भविष्य में परेशानियाँ किसी नए रूप में आम डिपाजिटर के सामने आ सकती हैं.


आम तौर पर निवेशक फिक्स्ड डिपाजिट के पीछे के रिस्क को समझ नहीं पाता. कोई भी संस्था पेपर पर प्रिंट करके मेच्योरिटी या इंटरेस्ट बता दे तो उसे सुरक्षित और गारंटी समझ लेते हैं. इसीलिए थोडा ज्यादा कमाने की लालच में पोंज़ी स्कीम में निवेश बहुत सारे लोग निवेश करते हैं, जहाँ पर भी पेपर में छाप कर ज्यादा रिटर्न, ज्यादा मेच्योरिटी वैल्यू देने की बात को गारंटी दी जाती है. और इस तरह से लोगों के हजारों करोड़ रूपये शारदा ग्रुप, रोज वैली या PACL जैसी संस्थाओं के हाथ में चले जाते हैं.

दूसरा तरीका होता है कॉर्पोरेट फिक्स्ड डिपाजिट में निवेश करने का जहाँ पर फिर ज्याद इंटरेस्ट देने का ऑफर आम निवेशक के सामने होता है . यहाँ पर जो संस्थाएं ज्यादा इंटरेस्ट ऑफर करते हैं उनके पीछे के कारण या तो उस कॉर्पोरेट के आर्थिक हालात अच्छे ना होना होता है या उनके मैनेजमेंट की और समस्याएं हो सकती हैं. लेकिन जब एक आम निवेशक फिक्स्ड डिपाजिट के रिस्क को नहीं समझता तब हमारे सामने जे पी, यूनीटेक और यश बिरला ग्रुप की कंपनी के फिक्स्ड डिपाजिट में निवेश करने और पूंजी फ़साने वाले ऐसे लाखों लोग सामने आते हैं.   

अब हम बात करते हैं फिक्स्ड इनकम या डेब्ट म्यूच्यूअल फण्ड में रिस्क और रिटर्न की.

एक डेब्ट या फिक्स्ड इनकम म्यूच्यूअल फण्ड में जो निवेशक होता है वो इक्विटी होल्डर (Owner) होता है उसे उस स्कीम का यूनिट होल्डर कहते हैं यहाँ बैंक की तरह निवेशक एक डिपाजिटर ही नहीं रह जाता बल्कि वह उस स्कीम का एक हिस्सेदार बन जाता है इसलिए उसे यहाँ पर होने वाला लाभ या रिटर्न इस बात पर निर्भर करता है कि उस स्कीम की एसेट में कितनी वृद्धि हुई या उसके पोर्टफोलियो की वैल्यू कितनी बढ़ी.

जहाँ बैंक के डिपाजिटर को यह पता नहीं होता की उससे पैसा लेकर वह किसी माल्या को दिया गया है या किसी अच्छे ऋणग्राहक को दिया गया है, बैंक का लोन पोर्टफोलियो कैसा है. वहीँ म्यूच्यूअल फण्ड के निवेशक को उसके पाई-पाई का हिसाब पता होता है कि जिस स्कीम में उसका निवेश है उसने किन बैंको के या किस कंपनी के बांड में पैसे लगाये हैं . एक म्यूच्यूअल फण्ड निवेशक अपने यूनिट के वैल्यू (NAV) रोजाना देख सकता है, हर महीने पोर्टफोलियो की समीक्षा कर सकता है और अगर वह किन्ही कारणों से चाहें वो पोर्टफोलियो की क्वालिटी या परफॉरमेंस से या किसी और चीज से संतुष्ट ना हो तो किसी भी समय वर्तमान मूल्य पर अपने पैसे निकाल भी सकता है. ना तो यहाँ पर पूरा पैसा डूबने का रिस्क है ना एक आम निवेशक को बंध के रहने की मजबूरी है. जब भी जितनी जरुरत है पैसे निकाल ले और जब भी चाहे निवेश बढ़ा ले.

एक प्रोफेशनल मैनेजमेंट आप के पैसों को  किसी एक बैंक, एक कॉर्पोरेट, एक पब्लिक सेक्टर की कंपनी, भारत सरकार या किसी राज्य सरकार के एक बांड में या एक समयावधी के बांड या डिबेंचर में निवेश नहीं करता बल्कि इन सबको मिला कर एक पोर्टफोलियो बनाता जिस से एक आम निवेशक को कम रिस्क और स्टेबिलिटी के साथ बेहतर रिटर्न बना कर दे सके.

डेब्ट म्यूच्यूअल फण्ड में रिस्क उसके पोर्टफोलियो की क्रेडिट क्वालिटी और उसके मोड ड्यूरेशन पर निर्भर करता है.  और यही काम होता है फण्ड मैनेजर का की वह स्कीम के ऑब्जेक्टिव के अनुसार कम से कम रिस्क उठा के स्टेबल और टैक्स एफीसियेंट रिटर्न बना सके.

डेब्ट म्यूच्यूअल फण्ड में फिक्स्ड डिपाजिट की तरह ही रिटर्न का श्रोत सिर्फ इन्ट्रेस्ट ही नहीं होता, इन्ट्रेस्ट के साथ-साथ पोर्टफोलियो में रखे हुए फिक्स्ड इनकम इंस्ट्रूमेंट्स के रेट भी घटते बढ़ते हैं और यह दूसरा श्रोत डेब्ट म्यूच्यूअल फण्ड के रिटर्न को थोडा  प्रभावित करता है.

फिक्स्ड डिपाजिट के मुकाबले फिक्स्ड इनकम म्यूच्यूअल फण्ड ज्यादा टैक्स एफीसियेंट होते हैं  क्यूंकि इन्हें इनकम टैक्स एक्ट ने लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन पर इंडेक्सेशन का फायदा दिया है जिसके कारण 3 साल के बाद इनसे होने वाले गेन पर टैक्स फिक्स्ड डिपाजिट के मुकाबले कहीं कम लगता है.

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http://arthagyanindia.blogspot.in/2016/05/fixed-deposits.html

जैसे फिक्स्ड डिपाजिट अलग-अलग समयवधि के लिए अलग होते हैं वैसे ही डेब्ट म्यूच्यूअल फण्ड भी कई प्रकार के हैं यहाँ पर एक दिन या एक हफ्ते के लिए अलग स्कीम है, 3 महीने या 6 महीने के लिए अलग हैं और साल दो साल या इस से ज्यादा समय के लिए अलग म्यूच्यूअल फण्ड स्कीम हैं. इसलिए इनमे निवेश करने से पहले आप या तो पूरी जानकारी हासिल कर लें या अच्छे म्यूच्यूअल फण्ड एडवाइजर की सलाह लें. अगर आप यह नहीं कर सकते तो फिक्स्ड डिपाजिट ही आप के लिए बेहतर है.

याद रखें फिक्स्ड इनकम म्यूच्यूअल फण्ड में निवेश कर के आप बेहतर, स्टेबल और टैक्स एफीसियेंट रिटर्न बना सकते हैं. आप डेब्ट फण्ड को सही से समझ जायें तो आपके निवेश का पलड़ा हमेशा एक ट्रेडीसनल फिक्स्ड डिपाजिट के निवेशक से भारी ही रहेगा.

अगले ब्लॉग में पढ़े...कौन सा डेब्ट फण्ड सही है आपके लिए..

Image Source: http://www.freedigitalphotos.net



Monday, June 5, 2017

रिटायरमेंट के बाद कहाँ इन्वेस्टमेंट करें


रिटायरमेंट फण्ड कैसे बनाये इसके बारे में बहुत सारे लेख मिल जायेंगे और बहुत सारी योजनायें हैं लेकिन रिटायरमेंट के बाद इकट्ठा किये हुए आपके रिटायरमेंट फण्ड का उपयोग कैसे करें इस के बारे में बहुत कम बात होती है, बहुत  कम लेख छपते हैं और बहुत कम टीवी प्रोग्राम होते हैं. और इसी कमी को पूरा करने के उद्देश्य से मैंने पिछला ब्लॉग लिखा. मुझे लगता है इस विषय पर ज्यादा से ज्यादा बातें होनी चाहिये क्यूंकि यह विषय हमारे बड़े और आदरणीय वरिष्ठ नागरिकों से जुड़ा हुआ है.

अगर आपने पिछला ब्लॉग नहीं पढ़ा है तो नीचे दिए हुए लिंक पर क्लिक करके उसे पढ़ें और फिर इस ब्लॉग को पढ़ें.
http://arthagyanindia.blogspot.in/2017/05/blog-post_27.html

इस ब्लॉग के माध्यम से ऐसे कुछ विकल्प देने का प्रयास कर रहा हूँ जो सीनियर सिटीजन के लिए सही हो सकते हैं.

अगर सबसे ज्यादा सलाह एक रिटायर्ड इन्वेस्टर को दी जाती है तो वो है पैसे की सुरक्षा लेकिन मेरे विचार से केवल सुरक्षा का नजरिया लेकर अगर रिटायर्ड इन्वेस्टर निवेश करें तो उन्हें वो परेशानी हो सकती है जो पिछले ब्लॉग में मैंने श्याम जी के उदाहरण से समझाने का प्रयास किया था. 

मेर विचार से आपके इन्वेस्टमेंट ऐसी जगह होने चाहिए जो आपका लम्बे समय तक साथ भी दे, सुरक्षित भी रहे और जरुरत पड़ने पर आप आसानी से पैसे निकाल सकें. 

और नीचे दिए गए चार्ट को ध्यान से देखिये, मुझे लगता है कोई भी विकल्प अपने आप में ये तीनो चीजें आप को नहीं दे सकते और इनके अलावा और कोई रिटायर्ड इन्वेस्टर के लिए हैं भी नहीं.


PMVVY और SCSC दोनों में मिला कर आप 22.5 लाख रुपये तक का निवेश कर सकते हैं दोनों को मिला कर आपको इन से आज की ब्याज दर के अनुसार लगभग 8.25% का ब्याज मिल सकता है. अच्छी बात यह है कि PMVVY से आपको हर महीने ब्याज मिलता है वहीँ SCSC से आपको हर तिमाही पर. इन स्कीमों अगर यही रिटर्न टैक्स फ्री होते तो बहुत अच्छा होता लेकिन टैक्स देने के बाद आपका रिटर्न 0.80%-2.40% तक कम हो जाता है, अगर 10% स्लैब में हैं तो पोस्ट टैक्स रिटर्न लगभग 7.45%, 20% में हैं तो 6.65% और 30% स्लैब में हैं तो लगभग 5.85% का ही रह जाता है. भविष्य में ब्याज दर कम होने का रिस्क हमेशा रहता है.

अकसर ट्रेडिशनल तरीकों में इन्वेस्टमेंट करने वाले लोग निश्चित ब्याज दर को लेकर इतने कड़ा रुख रखते हैं कि वो बाकि चीजों को ध्यान नहीं देते. मेरा उनको यही सुझाव है आप को सुरक्षा के साथ लम्बे समय तक साथ देने वाले विकल्पों के बारे में पढ़ना, सुनना, समझना चाहिए और इस विषय के विशेषज्ञों से सलाह लेनी चाहिए. उसको मानना ना मानना हमेशा आपके हाथ में है.

सलाह किस से ले रहे हैं यह भी बहुत महत्वपूर्ण है अक्सर देखा जाता हैं निवेश के मामले में मिश्रा जी अपने विभाग के शर्मा जी से सलाह लेते हैं और वहीं  शर्मा जी ने दुसरे विभाग के वर्मा जी से सलाह ली होती है और वर्मा जी ने किसी विशेषज्ञ से अपनी परिस्थियों के अनुकूल कोई इन्वेस्टमेंट किया होता है. अब मिश्रा जी बिना यह जाने हुए कि वर्मा जी ने क्या समझा था, किस परिस्थिति में कौन सी जगह निवेश किया था, वहां पर निवेश कर देंगे तो अब बताइए मिश्रा जी का अनुभव कैसा होगा.

अब आप सोचिये वर्मा जी की कमर 36 की है हाइट 5.5 ft की है अगर उनकी पैंट मिश्रा जी पहन लें जिनकी कमर 32 की है और हाइट 5.9 ft की है तो कैसा लगेगा. आपके इन्वेस्टमेंट आपकी परिस्थतियों, आपके रिस्क प्रोफाइल, कैश फ्लो की जरुरत और तमाम ऐसी बातों पर निर्भर करता है. इसलिए जैसे अपनी पैंट अपने नाप की सिलवा के पहने तो वो पहनने में भी आरामदायक होगी और देखने में भी अच्छी होगी उसी तरह से आपके इन्वेस्टमेंट भी आपके ही हिसाब से होंगे तभी आप के लिए ठीक होंगे.

मै कुछ विकल्प बताऊँ उस से पहले विश्व प्रसिद्ध इन्वेस्टमेंट गुरु पीटर लिंच की बात समझ लेते हैं उनका क्या कहना है रिटायरमेंट फण्ड के निवेश के बारे में. 

पीटर लिंच के अनुसार रिटायरमेंट के बाद मिले फण्ड को  इन्वेस्टमेंट करने का निर्णय जब आप ले रहे हों तो सेफ्टी के साथ इस बात पर जरुर ध्यान दें कि शुरुआती सालों में आपके इन्वेस्टमेंट पर मिलने वाला रिटर्न आपके द्वारा निकाले गए पैसों से अधिक रहे. अगर आप 8% का रिटर्न बना रहे हैं लेकिन आप निकाल भी उतना या उस से ज्यादा रहे हैं तो आपका फण्ड बहुत ज्यादा दिन चलने वाला नहीं है. आपके फण्ड की सेफ्टी बहुत जरुरी है लेकिन वो आपका लम्बे समय तक तभी साथ दे पायेगा जब आप शुरुआत के 5-7 सालों में अपने पे आउट से ज्यादा रिटर्न बना पायें. अगर आप ऐसा नहीं कर पाते तो आपकी मुश्किलें भविष्य में बढ़ने वाली हैं.


ट्रेडिशनल इन्वेस्टमेंट आप्शन आपको रेगुलर कैश फ्लो दे सकते हैं लेकिन वो उतना पैसा आपको हर साल बना के नहीं दे सकते जितनी आपकी जरूरतें हो सकती हैं और वहीँ बैलेंस्ड म्यूच्यूअल फंड्स आपको साल दर साल, महीने दर महीने एक बराबर का रिटर्न नहीं दे सकते उनके रिटर्न में उतार चढाव होता रहता है, लेकिन 3-5 साल की समयावधि में ये प्रोडक्ट दोहरे अंक वाले टैक्स फ्री रिटर्न देने के क्षमता रखते हैं. डेब्ट फंड्स में जहाँ रिटर्न देने के क्षमता ट्रेडिशनल इन्वेस्टमेंट से 1%-2% ज्यादा रहती है लेकिन वहां भी हर महीने एक निश्चित रिटर्न तो नहीं बन सकते, लेकिन 6 महीने-1 साल के रिटर्न में आप निश्चितता देख सकते हैं.

इनके अलावा कोई चौथी प्रोडक्ट केटेगरी एक रिटायर्ड इन्वेस्टर के लिए मुझे समझ में नहीं आती.

इन्ही तीनो केटेगरी के निवेश माध्यमों को मिला कर आप अपने लिए एक विनिंग प्लान बना सकते हैं. म्यूच्यूअल फंड्स से रेगुलर कैश फ्लो के लिए आप सिस्टेमेटिक विड्राल प्लान ले सकते हैं.


पढ़ें कैसे पायें स्टेबल रिटर्न के साथ रेगुलर कैश फ्लो
http://arthagyanindia.blogspot.in/2016/12/blog-post.html

अब यहाँ पर मैं आपको 4 अलग-अलग समीकरणों की एनालिसिस कर के दिखाता हूँ . इसको देख कर आप समझ पायेंगे की आपको कहाँ जाना चाहिए-

1- ट्रेडिशनल इन्वेस्टमेंट के साथ - एक्सपेक्टेड रिटर्न - 8%, टोटल इन्वेस्टमेंट कार्पस- 50 लाख रुपये,  शुरुआती मासिक विड्राल- 35000 रुपये, महंगाई दर- 5%

Withdrawal Plan

Investment at Retirement
5,000,000
Date of Retirement
06-06-2017
Annual Interest Rate
8.00%
Withdrawal Frequency
Monthly
First Withdrawal
35,000
Payment Type
End of Period
Annual Inflation Rate
5.00%
Current Age
60.0
Results

Years Until Retirement
0.00
Age at Retirement
60.0
Initial Withdrawal
35,004.68
Number of Payouts
178
Age at Last Payout
74.8
Final Payout
48,281.02
Total Interest Earned
4,184,513.02
Total Withdrawals
9,184,513.02

ऊपर दिये हुये चार्ट से यह बात कितनी स्पष्ट हो जाती है कि ट्रेडिशनल इन्वेस्टमेंट के भरोसे 15 साल मुश्किल से चला सकते हैं और इतने में ब्याज ही नहीं मूलधन  भी पूरी तरह से निकाल चुके होंगे. और यहाँ पर ना हमने आपके द्वारा दिए जा रहे टैक्स को ध्यान में रखा   है और ना ही महंगाई दर उतनी रखी है जितनी तेजी से आपके खर्चे बढ़ सकते  हैं. 

2- ट्रेडिशनल इन्वेस्टमेंट के साथ डेब्ट फण्ड - एक्सपेक्टेड रिटर्न - 8.75%, टोटल इन्वेस्टमेंट कार्पस- 50 लाख रुपये, शुरुआती मंथली विड्राल- 35000 रुपये, महंगाई दर- 5%

Withdrawal Plan

Investment at Retirement
5,000,000
Date of Retirement
06-06-2017
Annual Interest Rate
8.75%
Withdrawal Frequency
Monthly
First Withdrawal
35,000
Payment Type
End of Period
Annual Inflation Rate
5.00%
Current Age
60.0
Results

Years Until Retirement
0.00
Age at Retirement
60.0
Initial Withdrawal
35,004.68
Number of Payouts
191
Age at Last Payout
75.9
Final Payout
22,080.80
Total Interest Earned
5,132,367.99
Total Withdrawals
10,132,367.99

इस तरह से भी अगर आप प्लान करते हैं तो भी 16 साल से ज्यादा आपके फण्ड के रहने की संभावना नहीं है.

3- डेब्ट फण्ड के साथ बैलेंस्ड फण्ड- एक्सपेक्टेड रिटर्न - 11%, टोटल इन्वेस्टमेंट कार्पस- 50 लाख रुपये, शुरुआती मंथली विड्राल- 35000 रुपये, महंगाई दर- 5%

Withdrawal Plan

Investment at Retirement
5,000,000
Date of Retirement
06-06-2017
Annual Interest Rate
11.00%
Withdrawal Frequency
Monthly
First Withdrawal
35,000
Payment Type
End of Period
Annual Inflation Rate
5.00%
Current Age
60.0
Results

Years Until Retirement
0.00
Age at Retirement
60.0
Initial Withdrawal
35,004.68
Number of Payouts
253
Age at Last Payout
81.1
Final Payout
15,519.71
Total Interest Earned
10,569,561.24
Total Withdrawals
15,569,561.24

अगर आप इस तरह निवेश करते हैं कि आप औसतन 11% का रिटर्न पुरे समय में बना सकें तो आप अपना फण्ड रिटायरमेंट के 21 साल के बाद तक चला सकते हैं और इस तरह से यह विकल्प पिछले दोनों विकल्पों से अधिक समय तक चल सकता है.

4- बैलेंस्ड फण्ड के साथ- एक्सपेक्टेड रिटर्न - 13%, टोटल इन्वेस्टमेंट कार्पस- 50 लाख रुपये, शुरुआती मंथली विड्राल- 35000 रुपये, महंगाई दर- 5%

Withdrawal Plan

Investment at Retirement
5,000,000
Date of Retirement
06-06-2017
Annual Interest Rate
13.00%
Withdrawal Frequency
Monthly
First Withdrawal
35,000
Payment Type
End of Period
Annual Inflation Rate
5.00%
Current Age
60.0
Results

Years Until Retirement
0.00
Age at Retirement
60.0
Initial Withdrawal
35,004.68
Number of Payouts
460
Age at Last Payout
98.3
Final Payout
164,993.05
Total Interest Earned
43,413,872.88
Total Withdrawals
48,413,872.88

यह चार्ट तो बहुत खूबसूरत बन रहा है और यही एक स्थिति लगती है जब कोई अपने रिटायरमेंट फण्ड का पुरे समय तक उपयोग भी कर पाता है और अपनी अगली पीढ़ी के लिए कुछ छोड़ के भी जा सकता है. 

इन चारों समीकरणों को ठीक से समझिये. आप सबसे सुरक्षित चलना चाहेंगे और पहला या दूसरा विकल्प अपनाएंगे तो आपका भविष्य बहुत असुरक्षित हो सकता है और आपको ऐसी परिस्थिति का सामना कर पड सकता है जो बहुत भयवाह हो सकती है.

यहाँ पर एक बार पीटर लिंच की बात याद करिये और देखिये उन्होंने कितनी सही बात कही है. पहले विकल्प में आप 8% का रिटर्न बना रहें हैं और आपके विड्राल की शुरुआत 8.4% से हो रहे हैं. ऐसी स्थिति में आपका फण्ड 15 साल भी आपका साथ नहीं दे पाता है. अगर आप पहले या दुसरे विकल्प के साथ जाना चाहते हैं तो आप को अपने खर्चों पर बहुत नियंत्रण रखना चाहिए, आपके विड्राल अगर शुरुआत में 5% तक रहे तो आप अपने फंड्स 93 साल की उम्र तक चला सकते हैं. और यही एक मात्र तरीका है जो ट्रेडिशनल इन्वेस्टमेंट के साथ आपके खर्चे लम्बे समय तक चला सकता है.

तीसरे और चौथे विकल्प आपका साथ लम्बे समय तक दे सकते हैं लेकिन हो सकता हैं आपको शरुआत के सालों में थोड़ी परेशानी भी हो, जब उनकी वैल्यू में उतार चढाव होगी. कम से कम पिछले 20 सालों के म्यूच्यूअल फण्ड के  अनुभव तो यही बताते हैं.  इन विकल्पों को यदि आप चुनते हैं तो आप अपनी लाइफ स्टाइल भी बनाये रखेंगे, खुल के जी सकेंगे और लम्बे समय तक अपने फंड्स का लाभ भी उठा सकेंगे. लेकिन इन विकल्पों के साथ आपको थोडा सजग रहना पड़ेगा.

कोई भी व्यक्ति अपनी 75वीं सालगिरह पर पैसों के लिए अपने बच्चों की तरफ नहीं देखना चाहेगा और ना ही पैसों के लिए नौकरी करना चाहेगा. इसलिए समय से पहले या तो अपने खर्चों को घटा लें और ट्रेडिशनल इन्वेस्टमेंट आप्शन के साथ चलें और या तो मार्केट लिंक्ड प्रोडक्ट में समझदारी से निवेश करके डबल डिजिट रिटर्न बनायें और अपनी लाइफ स्टाइल बनाये रखे हुए अपनी लाइफ के गोल्डेन पीरियड एन्जॉय करें.

इनमे से कोई भी विकल्प चुनने से पहले अपने आप को ठीक तरह से समझे, अपने पैसे से ना तो एक्सपेरिमेंट करें ना ही किसी अनाड़ी (अपने रिश्तेदार, दोस्त) या खिलाडी (बैंकर या LIC एजेंट ) को करने दें. सोच समझ कर अपने इस एसेट के लिए प्लान बनायें या किसी अच्छे विशेषज्ञ से सलाह लें.  

आशा है यह ब्लॉग आपके रिटायरमेंट फण्ड को मैनेज करने में सहायक होगा.