Thursday, December 5, 2019

बैंक डिपाजिट से ज्यादा सुरक्षित और अधिक ब्याज देना वाला विकल्प





जब भी एक आम आदमी निवेश करने के बारे में सोचता है तो पहली बात जो उसके दिमाग में आती है वो है अपने पूंजी या डिपाजिट की सुरक्षा. ऐसे में उसका सबसे पसंदीदा विकल्प बनता है बैंक फिक्स्ड डिपाजिट. क्यूंकि बैंक डिपाजिट एक आसान और सुरक्षित निवेश करने का विकल्प है इसलिए ज्यादातर लोगों के पास जब भी कुछ सरप्लस फण्ड होता है तो बैंक फिक्स्ड डिपाजिट ही करते हैं. लेकिन क्या ऐसा कोई निवेश विकल्प है जो बैंक फिक्स्ड डिपाजिट से अधिक भरोसेमंद हो और साथ में ब्याज भी अधिक देता हो!!!

तो आज के ब्लॉग में हम में ऐसे ही एक निवेश विकल्प की बात करेंगे जो बैंक डिपाजिट से अधिक भरोसेमंद है और जिस पर निवेशक को ब्याज भी अधिक मिलता है.

7.75% Savings (Taxable) Bond, 2018 

भारत सरकार द्वारा जारी, आर बी आई बांड 2018  जिसको 7.75% Savings (Taxable) Bond, 2018 के भी नाम से जाना जाता है एक ऐसा ही विकल्प है तो आइये जानते हैं इसकी अन्य विशेषतायें और लाभ
  • एक निश्चित ब्याज दर 7.75% पूरे 7 वर्ष के लिए
  • क्यूंकि यह RBI द्वारा जारी की जाती है  इस लिए यहाँ पर निवेश 100% सुरक्षित है
  • इस बांड में निवेश करने पर कोई अधिकतम सीमा नहीं है इसलिए इसमें कितनी भी राशि निवेश की जा सकती है
  • यह बांड एक पूर्व निश्चित अवधि जो की 7 वर्ष है, के लिए जारी की जाती है
  • इन बांड्स पर ब्याज या तो प्रत्येक 6 माह पर  या  अवधि पूरी होने पर एक साथ ले सकते हैं. विकल्प का चुनाव बांड में निवेश करते समय चुनना होता है
  • ब्याज प्रति वर्ष 31st जनवरी और 31st जुलाई को देय होता है
  • ब्याज 1 फरवरी और 1 अगस्त को ECS या डायरेक्ट क्रेडिट के माध्यम से बैंक अकाउंट में आते हैं
  • अवधि पूरी होने पर पूरी भुगतान अपने आप बांड होल्डर के अकाउंट में आ जाता है, इसके लिए बांड को कहीं जमा करने की जरुरत नहीं होती.
  • जो बांड होल्डर एक साथ, अवधि पूरी होने पर भुगतान लेते हैं उन्हें प्रति 1000 रूपये पर 1703 रुपये (मूलधन और ब्याज) का भुगतान होता है.
  • बांड पर मिलने वाला ब्याज टैक्स फ्री नहीं होता
  • यदि साल में ब्याज 40,000 रूपये से ज्यादा ब्याज आ रहा है तो 10% टीडीएस काट कर ब्याज का भुगतान होता है
  • बांड पर निवेश वेल्थ टैक्स एक्ट, 1957 के अंतर्गत वेल्थ टैक्स से एक्सेम्प्ट होता है
  • हालांकि ये बांड्स 7 वर्ष की अवधि के लिए हैं लेकिन सीनियर सिटीजन के लिए लॉक-इन पीरियड में कुछ छूट मिलती है. 60-70 वर्ष के लोग 6 वर्ष के उपरांत, 70-80 वर्ष के लोग 5 वर्ष के उपरांत और 80 वर्ष से ज्यादा उम्र के लोग 4 वर्ष के उपरांत इन बांड्स से पैसे निकाल सकते हैं. लेकिन 7 वर्ष की अवधि से पहले पैसे निकालने की स्थिति में  पिछले 6 महीने के देय ब्याज पर 50% के दर से पेनाल्टी लगती है अर्थात पिछले 6 महीने में ब्याज दर आधी रह जाती है
  • इन बांड्स में सिर्फ कोई व्यक्ति या HUF ही निवेश कर सकता है. कोई संस्था या NRI इन बांड्स में निवेश नहीं कर सकते. 
  • बांड्स में निवेश डीमेट या फिजिकल दोनों माध्यम से किया जा सकता है
  • इन बांड्स की खरीद बिक्री खुले बाज़ार में नहीं होती, इनका स्वामित्व ट्रान्सफर नहीं किया जा सकता. सिर्फ बांड होल्डर की मृत्यु की दशा में ही इनका स्वामित्व बदलता है
  • नॉमिनेशन की सुविधा भी इन बांड्स में होती है 
  • इन बांड्स को किसी भी सरकारी या गैर सरकारी बैंक, किसी ब्रोकर या निवेश सलाहकार के माध्यम से ख़रीदा जा सकता है.
अगर इन बांड्स की तुलना बैंक डिपाजिट से करें तो यह ज्यादा सुरक्षित निवेश है और ज्यादा ब्याज देने वाला निवेश है. क्यूंकि ये बांड्स RBI द्वारा जारी किये जाते  हैं इसलिए इन बांड्स पर एक तरह से भारत सरकार की गारंटी है जबकि बैंक डिपाजिट पर भारत सरकार कोई गारंटी नहीं देता बल्कि यह जिम्मेदारी उस बैंक की होती है इसलिए बैंक में डिपाजिट का इंश्योरेंस होता है जिससे कि यदि बैंक बंद या दिवालिया हो जाय तो डिपाजिट होल्डर को 1 लाख रूपये तक की रकम वापस की जा सके. यहाँ मेरा कहना एकदम यह नहीं है कि बैंक डिपाजिट सुरक्षित नहीं है, हाँ लेकिन इतना जरुर है कि बैंक डिपाजिट की तुलना में RBI बांड ज्यादा सुरक्षित है. जहाँ तक ब्याज दरों की बात करें तो बैंक डिपाजिट पर इससे कहीं कम ब्याज देता है, यहाँ तक बैंक की ब्याज दरें वरिष्ठ नागरिकों के लिए भी इससे कम ही है.

क्यूँ ना करें RBI बांड में निवेश- एक फिक्स्ड इनकम निवेशक के लिए 7 साल तक 7.75% का ब्याज निश्चित रूप से आकर्षक है लेकिन लिक्विडिटी यानि पैसे समय से पहले ना निकाल पाने का कारण इन बांड्स को कम आकर्षक बनाता है. 7 वर्ष एक लम्बा समय होता है और यदि इन्वेस्टमेंट होराइजन इतना लम्बा नहीं है या आप समय और पैसे की आवश्यकता को लेकर निश्चित ना हों तो इसमें बिल्कुल निवेश न करें. 

कुल मिला कर RBI बांड, फिक्स्ड इनकम इन्वेस्टर के लिए एक बेहतर विकल्प है. जहाँ हर 3 महीने पर ब्याज दरें घट रही हों वहां 7 वर्ष के लिए एक निश्चित और आकर्षक ब्याज दर मिलना वो भी भारत सरकार की गारंटी की साथ तो यह निश्चित रूप से सोने पर सुहागा जैसा है.

Tuesday, December 3, 2019

कैसे बिगड़ा हर घर का अर्थशास्त्र !!!




पिछले 10-15 वर्षों में हमारे देश और समाज ने आर्थिक रूप से काफी तरक्की की है और जिस के कारण हमारे रहन-सहन, खान-पान, जीवन-यापन के साधनों में बहुत सारे परिवर्तन हुए हैं. कुछ दशकों पहले जो साधन या सुविधाएँ सिर्फ एक उच्च आय वर्ग को मिलती थी आज वो साधन और सुविधाएँ एक आम आदमी के लिए भी उपलब्ध है और वह उसका उपभोग भी कर रहा है.

जैसा की कहा जाता है कि हर बदलाव के कुछ अच्छे और कुछ बुरे पहलू होते हैं. अच्छा पहलू यह है कि आम आदमी का जीवन विज्ञान और आर्थिक तरक्की ने बहुत सुगम और सुविधाओं से भरपूर बना दिया है और इसके अलावा भी बहुत सारे लाभ देश या समाज को मिला है. घरों में आज ऐसी तमाम चीजें मिल जायेंगी जिनको 10-15 साल पहले लोग या तो जानते नहीं थे या सिर्फ फिल्मों , टेलीविजन या पत्रिकाओं में ही देखते थे और यह चीजें अब टेलीविजन और सिनेमा के परदों से निकल कर घरों में पहुँच गई.

इन बदलावों के कुछ नकारात्मक पक्ष भी हैं लेकिन हम इस चर्चा को सिर्फ आर्थिक या फाइनेंसियल नजरिये से ही देखना चाहेंगे और यह समझने का प्रयास करेंगे कि एक परिवार के पैसे खर्च करने की आदतों में क्या बड़े बदलाव हुए हैं जिनको हम निश्चित रूप से यह मान सकते हैं कि इन्होने कहीं न कहीं हमारे ऊपर जरुरत से ज्यादा आर्थिक रूप से बोझ बढाया है और जिस से एक आम परिवार की बैलेंसशीट बिगड़ गई है.

तो आज चर्चा करते हैं पिछले 10-15 वर्षों में खर्चों और लाइफ स्टाइल में आये उन 10 बदलावों की जिन्होंने एक घर के अर्थशास्त्र  पर बहुत प्रभाव डाला है.. 

1- खान-पान में बदलाव के कारण घर में बने खाने की जगह रेस्टोरेंट के खाने या पैकेज्ड फ़ूड का प्रचलन बढ़ना. घर की रसोई पर निर्भरता कम होने से हमारे घर के खाने पीने के खर्चे बहुत तेजी से बढे हैं और जिसके कारण आपके मंथली बजट में इस मद में खर्चे तेजी से बढे हैं.

2- ब्रांडेड वस्तुओं के प्रति आकर्षण ने हर एक चीज की खरीददारी के निर्णय उसकी कीमत और वैल्यू से नहीं बल्कि ब्रांड के नाम से हो चुकी है और जिसकी वजह से लोगों का खर्च भी बढ़ा है.

3- हॉस्पिटल, स्कूल, कोचिंग, एक्टिविटी क्लासेज और तमाम ऐसी चीजों का बाजारीकरण बढ़ने से इनके ऊपर होने वाले खर्चो में बेतहासा वृद्धि हुई है. एक सामान्य परिवार के मंथली बजट का एक मोटा हिस्सा इन सब पर खर्च हो रहा है. 

4- कार, महंगी बाइक और महंगे गैजेट का खरीदना और वो भी जरूरत के लिए नहीं बल्कि दूसरों के ऊपर प्रभाव दिखाने के लिए ज्यादा किया जाने के लिए . स्टाइल में रहने का..

5- जन्म दिन या शादी की सालगिरह जैसे मौकों को स्पेशल बनाने के लिए परिवार के साथ समय बिताने की जगह अनावश्यक चीजों में खर्चे करने पर जोर ज्यादा हो गया है.

6-पिछले कुछ वर्षों में  शादियों और अन्य परिवार के फंक्शन को भव्य बनाने के लिए अनावश्यक रूप से खर्चे बढे हैं अब परिवार के फंक्शन को कॉर्पोरेट या फ़िल्मी इवेंट की तरह बना दिया गया है. सोशल मीडिया और फिल्मों ने  इसमें बड़ा योगदान किया है. इसमें ज्यादातर खर्चे गैर जरुरी और सिर्फ दिखावे के लिए होते  हैं लेकिन जेब फटती है तो फटने दो.

7- घर या ऑफिस के लिए महंगे फर्नीचर और इंटीरियर पर खर्चे करना और साथ में इनके रख रखाव का भी खर्च बढ़ाना. 

8- घर के प्रत्येक सदस्य के पास कम से कम एक या उस से अधिक मोबाइल होना और हर साल मोबाइल चेंज करते रहना क्यूंकि हर 2-3 महीने में नया और तथाकथित अपग्रेडेड मोबाइल आ जाता है. 

9- दूसरों को देख कर उनके दबाव में बाहर घूमने जाने, होटल व रेस्टोरेंट पर खर्च करना. मेरी फ्रेंड ने चाँद से सेल्फी लेकर सोशल मीडिया पर डाल दिया और एक मै अभी तक नैनीताल भी नहीं गया.

10- क्रेडिट कार्ड या लोन लेकर अपने शौक पूरे करना. भविष्य में कमायेंगे वर्तमान में उड़ायेंगे की आदत. पहले एक कहावत बहुत प्रचलित थी  कि पाँव उतनी ही फैलाओ जितनी बड़ी चादर हो लेकिन आज के समय लोगों की सोच बहुत बदल चुकी है लोग अब इस तरह से नहीं सोचते, आज अगर किसी को यह बात बोली जाय तो निश्चित रूप से उसका जवाब होगा कि भाई मैं तो पैर फैला के सोऊंगा और चैन से सोने के लिए मैं चादर उधार लेना पसंद करूँगा.

अगर आंकड़ों की बात करें तो पिछले 10 वर्षो में भारत का हाउस होल्ड डेब्ट रेशियो 2% से बढ़ कर 20% हो गया है, वहीँ पर फाइनेंसियल सेविंग रेट 12% से घट कर सिर्फ 8% रह गई है. यानी लोगों ने  एक तरफ लोन लेकर खर्चे करने लगे हैं और जिसके कारण उनकी फाइनेंसियल सेविंग्स घट रही है और खर्चे का कमाई से ज्यादा तेजी से बढ़ना घर के अर्थशास्त्र को बिगाड़ रहा है. 

इस तरह से पीछे कुछ वर्षों में लोगों के अन्दर पैसे खर्च करने के तरीकों और बहुत सारी आदतों में बदलाव आया है.सोशल मीडिया के ज़माने में अक्सर लोग खुद को खुश रखने में कम और दूसरों को दिखाने में ज्यादा लगे हुए हैं और इसलिए ज्यादातर खर्च और लाइफ स्टाइल में बदलाव लोग बिना अपनी आवश्यकता को समझे, मीडिया, मित्र या रिश्तेदार के प्रभाव में कर रहे हैं परिणाम स्वरुप लोगों के ऊपर आर्थिक बोझ बढ़ता जा रहा है. आदमी खर्च करने और कमाने में लगा हुआ जितना भी कमा रहा है उतना ही उसे कम लग रहा है.

लोगों के खर्चे, लाइफ स्टाइल में जिस तरह से बदलाव हुआ है उसकी तुलना में उनका फाइनेंसियल स्टेटस (संपत्ति, सेविंग) नहीं बढ़ पा रही. क्यूंकि कमाई से ज्यादा तेजी से लाइफ स्टाइल और उस पर होने वाले खर्चे बढ़ रहे हैं और साथ ही क्रेडिट कार्ड और आसानी से मिलने वाले लोन ने भी कमाने से पहले पैसे खर्च करने की आदत डाल दी है. 

आज ज्यादातर परिवारों की समस्या यह है कि यदि उनकी इनकम 100 रूपये हैं तो वो प्रयास करते हैं कि उनकी लाइफ स्टाइल 200 रुपये इनकम वाले की तरह दिखे.

 इस भेड़ चाल से निकलने के लिए एक बार रुक कर अपने लाइफ स्टाइल अपनी इनकम, अपनी जरुरत और अपनी इच्छा जैसे पहलुओं पर विचार करने की जरुरत है. जबकि पर्सनल फाइनेंस विशेषज्ञ हमेशा यह बात बोलते हैं कि "Live below your means". 

यदि आप की इनकम और खर्च के साथ बचत भी बढ़ रही है, निवेश और सम्पतियाँ भी बढ़ रही हैं तब तो कोई समस्या नहीं लेकिन यदि सिर्फ खर्चे बढ़ रहे हैं कमाई नहीं या खर्चे की तुलना में कमाई या सेविंग्स नहीं बढ़ रही  तो आप निश्चित ही बड़ी परेशानी में पड़ने वाले हैं.

अधिक खर्च करने वाले विचार कीजिये.....चाहतों और दिखावों के पीछे भागने के चक्कर में कहीं ऐसा ना हो कि भविष्य में जरुरतें ही चाहत बन कर रह जाए.

  

Thursday, September 26, 2019

Do I really need Health Insurance?




क्या हेल्थ इंश्योरेंस या स्वास्थ बीमा पॉलिसी लेना मेरे लिए ज़रुरी है? यह प्रश्न लोगों के मन में कई बार आता है. जब कम उम्र होती है और स्वास्थ अच्छा होता है तो सोचता है कि मुझे इस पर फालतू में पैसे बर्बाद करने की क्या जरूरत, जब एम्प्लायर से हेल्थ इंश्योरेंस कवर मिला हो तब तो हेल्थ इंश्योरेंस लेना बेवकूफी लगती है, जब अपने व्यवसाय या प्रोफेशन में हों और कमाई बहुत अच्छी ना हो तो ऐसे खर्च गैर-जरुरी और अपने बजट से बाहर के लगते हैं और जिनकी कमाई अच्छी हो उनको लगता है कि मै क्यूँ हेल्थ इंश्योरेंस के झंझट में पडूं, जब कुछ होगा तो इतना पैसा है मेरे पास कि मुझे कोई समस्या नहीं होगी.

लेकिन यही लोग जब किसी अन्य व्यक्ति की बीमारी और उस पर होने वाले हॉस्पिटल और दवाओं के खर्च के बारे में सुनते हैं या देखते हैं तो मन में यह भी आता है कि बाप रे इतने खर्चे !!! देश में मेडिकल सुविधाएँ कितनी महंगी हैं ? अगर मेरे ऊपर ऐसी समस्या आएगी तो क्या होगा ??? क्या मेरी इतनी बचत है? क्या मेरे एम्प्लायर द्वारा दिया गया हेल्थ इंश्योरेंस पर्याप्त है? तो क्या थोडा सा प्रीमियम दे कर 5-10 लाख या उस से अधिक का हेल्थ इंश्योरेंस लेने में समझदारी नहीं है ?  


आज इस ब्लॉग के माध्यम से  समझने का प्रयास करेंगे कि हेल्थ इंश्योरेंस लेना किसके लिए जरुरी है, किसके लिए  नहीं है , जरुरी है तो क्यूँ है, किसे और कब हेल्थ इंश्योरेंस लेना चाहिए?

क्या हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी लेना जरुरी है?


बिना आवश्यकता के कोई भी वस्तु या सेवा खरीदने में समझदारी नहीं होती, यह पैसे को सही इस्तेमाल करने वाले किसी भी व्यक्ति की सोच होती है लेकिन इंश्योरेंस एक ऐसी चीज है जो जरुरत न होने पर ही मिलती है.


हेल्थ इंश्योरेंस तब किसी को नहीं मिलेगा जब उसे कोई गंभीर बीमारी हो जाय या किसी दुर्घटना के समय जब वो हॉस्पिटल में एडमिट हो . एक बार आदमी अस्वस्थ हो गया तो इंश्योरेंस कवर मिलने में बहुत समस्या होती है.

 इसलिए अगर किसी का यह तर्क हो कि इंश्योरेंस की आवश्यकता उसको या उसके परिवार को नहीं है क्यूंकि वह स्वस्थ है तो यह तर्क उस व्यक्ति और उसके परिवार के लिए नुकसान देह हो सकता है.


क्यूँ लें हेल्थ इंश्योरेंस?

  1.  जरुरी नही की हर समय घर में या  बैंक अकाउंट में पर्याप्त धन राशि 💵💴 हो, हेल्थ इंश्योरेंस में कैशलेस सुविधा होना व्यक्ति को बड़े मेडिकल खर्चों और धन की व्यवस्था करने की बड़ी चिंता से बचाता है.

  2. बढती उम्र के साथ मेडिकल खर्चे बढ़ना निश्चित है. बढती उम्र, अपने साथ कई बीमारियाँ लेकर आती हैं और साथ में शरीर की प्रतिरोधक क्षमता भी घट जाती है ऐसे में समय रहते अपने स्वास्थ के प्रति सचेत होने और बीमारियों के खर्च से निपटने के लिए सही व्यवस्था ना बनाई तो बुढ़ापा बहुत दुःख दाई हो सकता है. हेल्थ इंश्योरेंस बढ़ती उम्र में फाइनेंसियल सिक्योरिटी देता है. सही तरीका है आप या तो मेडिकल सम्बंधित खर्च के लिए समय रहते फण्ड बनाइये या तो हेल्थ इंश्योरेंस प्लान समय रहते खरीदिये. 

  3.  बीमारी 💉कभी भी बता कर नही आती, अपने स्वास्थ के प्रति आदमी का गैर जिम्मेदाराना रवैया और कुछ जिन्दगी की भाग दौड़ में अपने लिए टाइम ना निकाल पाना भी बीमारियों लिए काफी हद तक जिम्मेदार होती हैं. आज कल लोगों के खान-पान और लाइफ स्टाइल में परिवर्तन भी बीमारियां बढ़ा रही हैं ऐसे में हेल्थ इंश्योरेंस की जरुरत और बढ़ जाती है.

  4. हॉस्पिटल 🏥 में डिस्काउंट ऑफर  नही चलते, जितना खर्चा आएगा उसकी व्यवस्था व्यक्ति को या उसके परिवार को करनी ही पड़ती है और यदि पैसे की व्यवस्था न हो तो इलाज संभव नहीं हो पाता इसलिए जरुरी है कि व्यक्ति के पास पर्याप्त पैसे हो या पर्याप्त हेल्थ इंश्योरेंस कवर. एक बीमारी कई बार परिवार की कई सालों की बचत एकाएक ले जाती है और साथ में ही सर पर कर्ज का बोझ भी डाल जाती है. आदमी सालों तक तमाम जतन कर के 10-15 लाख रूपये बचाता है और वो एक झटके में हॉस्पिटल में एडमिट होते ही ख़त्म हो जाता है.
  5. एक अनुमान के अनुसार भारत में लगभग 40% लोगों को Hospitalized होने पर या तो अपनी संपत्तियां 💍🚕📿 बेचनी पड़ती हैं या कर्ज लेना पड़ता है, ऐसे में अंदाजा लगाना कठिन नहीं है कि हेल्थ इंश्योरेंस कितना आवश्यक है.

  6. हेल्थ इंश्योरेंस ना केवल हॉस्पिटल में एडमिट होने पर खर्चे बचाता है बल्कि हॉस्पिटल में एडमिट होने के पहले और बाद के खर्चे भी कवर करता है, जो की कई बार एक अच्छा खासा अमाउंट हो जाता है.

  7.  हेल्थ इंश्योरेंस में पहले से हुई बीमारियाँ भी एक निश्चित अवधि के बाद कवर हो जाती हैं जिसका फायदा भी व्यक्ति ले सकता है. पहले से हुई बीमारियों को कुछ पालिसी 2 साल बाद कवर करती हैं और कुछ 3 या 4 साल बाद.

  8.  बहुत बार लोगों के व्यवसाय बीमारी की दोहरी मार में बंद हो जाते हैं एक तरफ तो हॉस्पिटल का खर्च और दूसरी तरफ व्यवसाय पर ध्यान ना दे पाना ऐसे में हेल्थ इंश्योरेंस कम से कम एक तरफ से किसी को बचा सकता है.

  9.  एक अनुमान के अनुसार लगभग 16% भारतीय परिवार, बीमारी के खर्च के कारण अभाव ग्रस्त या गरीब हो जाते हैं और उन्हें अपने पुराने लाइफ स्टाइल को वापस पाने में कई वर्ष लग जाते हैं.

  10. मेडिकल इमरजेंसी का एक बड़ा कारण होती हैं दुर्घटना. सड़क पर आप खुद तो सेफ ड्राइव कर सकते हैं लेकिन दूसरे वाहन और उसके चालक की गारंटी नही ले सकते ऐसी मेडिकल इमरजेंसी में हेल्थ इंश्योरेंस काफी मददगार हो सकता है. घर में, वाशरूम में गिर जाने से भी लोगों को कई बार गंभीर चोटें लग जाती हैं, जिसके इलाज में भी भी लाखों रूपये जेब से झट से गायब हो जाते हैं.

  11.  इलाज पहले की तरह सस्ते नही रहे, मेडिकल खर्चे 10-12% से ज्यादा हर साल महंगे हो जाते हैं, गंभीर बीमारियों के खर्च लाखों में होते हैं. इसलिए बिना हेल्थ इंश्योरेंस के आदमी आर्थिक परेशानी में फंस सकता है 

  12.  बड़े मेडिकल खर्च आसानी से उठा सकना सबके बस का नहीं है . मेडिकल क्षेत्र में पिछले वर्षों में काफी तरक्की हुई है जिसके परिणाम स्वरूप जो बीमारी कभी लाइलाज होती थीं उनका इलाज संभव है लेकिन गंभीर बीमारियाँ का इलाज बहुत खर्चीला होता है, जिसका खर्च उठा पाना एक आम आदमी के बस की बात नहीं है. गंभीर बीमारियाँ जैसे कैंसर, ह्रदय रोग, किडनी से सम्बंधित, स्पाइन से सम्बन्धित सर्जरी या अंग प्रत्यारोपण में खर्चे लाखों में आते हैं. इसलिए ऐसे खर्चो के लिए जरुरी है कि आपके परिवार के पास हेल्थ इंश्योरेंस की सुरक्षा हो. 

नीचे दिए हुए इन्फोग्राफिक्स को ध्यान से पढ़िए, आपको खुद ही अंदाजा लग जायेगा कि किस बीमारी के इलाज में अभी कितने खर्च आ रहे हैं. 




किसको हेल्थ इंश्योरेंस नहीं लेना चाहिए ?


1-जिसे  एम्प्लायर से जिन्दगी भर के लिए उसके और उसके परिवार के लिए स्वास्थ सेवा की सुविधा मिली हो, जो कहीं भी जा कर किसी भी बीमारी का इलाज मुफ्त ले सकता हो.

2-जिसके पास अत्यधिक धन सम्पत्ति हो और उसके लाख-दस लाख या बीस-पच्चीस लाख रूपये मायने न रखते हों.

3-जिसे इस बात का भरोसा हो कि उसे या उसके परिवार को कभी भी बीमारी या दुर्घटना के कारण हॉस्पिटल का मुंह नहीं देखना पड़ेगा.


किसको हेल्थ इंश्योरेंस लेना चाहिए ?


वैसे हेल्थ इंश्योरेंस सभी के लिए आवश्यक है, लेकिन अक्सर लोग इसे प्राथमिकता नहीं देते इसलिए मै कहूँगा  जो लोग अपने ऊपर आकस्मिक खर्चो का बोझ नहीं डालना चाहते और उसके लिए पहले से तैयार रहना चाहते हैं ऐसे लोगों को हेल्थ इंश्योरेंस जरुर लेना चाहिये वो भी पर्याप्त हेल्थ कवर के साथ.



कब ले सकते है हेल्थ इंश्योरेंस?

अभी, क्योंकि स्वस्थ बीमा तब ले जब आपको इसकी आवश्यकता ना हो, क्योंकि जब आपको इसकी जरुरत होगी मतलब जब कोई अस्वस्थ हो जाता है तब स्वस्थ्य बीमा उसे मिल नही पाता. बढती उम्र, गलत खान-पान और बुरी लाइफ स्टाइल अपने साथ बीमारियां लेकर आती हैं और एक बार कोई व्यक्ति बीमार (शुगर, हार्ट, आर्थराइटिस) हो गया तो उसे हेल्थ इंश्योरेंस मिलता नहीं और अगर मिलता भी है तो वो तमाम शर्तों और अधिक प्रीमियम दे कर.

स्वास्थ बीमा फायदे के लिए नहीं होने वाले आर्थिक नुकसान से बचने के लिए लिया जाता है, इसलिए हेल्थ इंश्योरेंस फायदे के नजरिये से नहीं बल्किआर्थिक नुकसान से बचने के नजरिये से लें.

कितने का होना चाहिए रिस्क कवर ?

कुछ लोग कहते हैं कि सालाना कमाई का 50% से 100% का हेल्थ कवर जरुर होना चाहिए. लेकिन रिस्क कवर कितने अमाउंट का होना चाहिये यह इस बात पर भी निर्भर करता है कि व्यक्ति किस शहर में रहता है, वहाँ पर मेडिकल फैसिलिटी कैसी है और उसकी कॉस्ट कितनी है? इसलिए बड़े महानगरों में रहने वालों का रिस्क कवर छोटे शहर में रहने वाले से कहीं ज्यादा होना चाहिए. बेहतर है इस सम्बन्ध में अपने फाइनेंसियल एडवाइजर से विस्तार से चर्चा करें.



अगर एम्प्लायर से हेल्थ इंश्योरेंस मिला है तब भी अलग से पालिसी लेना जरुरी है ?

यदि एम्प्लायर जीवन पर्यंत (रिटायरमेंट के बाद भी) आपका और आपके परिवार का मेडिकल खर्च उठाने के लिए तैयार हैं तब तो आवश्यकता नहीं है लेकिन यदि यह सुविधा नौकरी की अवधि से जुड़ी है तो इसकी जरुरत है क्यूंकि जब नौकरी नहीं रहेगी तब इसकी सबसे ज्यादा जरूरत पड़ेगी और उस समय बड़े मेडिकल एक्स्पेंसेस को अपनी बचत से देना बहुत महंगा पड़ सकता है. साथ में यह प्रश्न जरुर अपने आप से पूछना चाहिये कि क्या जितना कवर एम्प्लायर दे रहा है उतना पर्याप्त है? क्या उतने बजट में और उन शर्तों में सारे इलाज संभव हैं यदि नहीं तो जरुर लें.
वैसे मुझे लगता है किसी को भी एम्प्लायर द्वारा दी गई इस सुविधा के साथ-साथ अपने और अपने परिवार के लिए एक बैकअप प्लान के तौर पर शुरू से ही एक हेल्थ पालिसी लेनी चाहिए और समय के साथ -साथ उसका कवर भी बढ़ाते रहना चाहिए.


हेल्थ इंश्योरेंस लेने के निर्णय को टालने से हो सकता है बड़ा नुकसान ?

बीमा उत्पाद चाहे स्वास्थ हो या जीवन को लेने के निर्णय को टालना नहीं चाहिए, क्यूँकि इसे लेने में आप जितना लेट करेंगे उतना ही आपका नुकसान होगा. कई बार लोग कोई बीमारी पता चलने के बाद बहुत हाथ पाँव मारते हैं कि उनको स्वस्थ बीमा मिल जाय लेकिन तब उन्हें मिल नहीं पाता और तब उन्हें पता चलता है कि निर्णय लेने में थोडी देर हो गई. 

कई बार लोग अपने लिए बेस्ट प्लान ढूंढने के चक्कर में महीनों लगा देते हैं और ये जानते और समझते हुए भी कि उनके लिए यह निर्णय जरुरी है फिर भी किसी नतीजे पर पहुँच नहीं पाते. उनको यह समझाना बहुत जरुरी है कोई भी हेल्थ इंश्योरेंस प्लान बेस्ट नहीं है और सबके प्रीमियम एक बराबर नहीं होते, सबके फीचर एक जैसे नहीं मिलेंगे तो ज्यादा समय विचार करने में ना लगायें, निर्णय जल्दी लें और अपनी जरूरत के आधार पर लें. क्यूंकि आप ने अलग गलत निर्णय ले भी लिया है तो फ्री लुक पीरियड है,आप उस समय में पालिसी सरेंडर कर सकते हैं, साथ में कुछ महीनों के बाद भी आप रिफंड लेकर पालिसी बंद कर सकते हैं. अगर भविष्य में आपको बेहतर प्लान मिलता है या मौजूदा प्लान में कोई कमी नजर आती है तो आप पालिसी पोर्ट भी कर सकते हैं तो फिर इतना सोचना क्यूँ ? 


आज के समय हेल्थ इंश्योरेंस एक आवश्यकता है इस बात को जितनी जल्दी समझ जाएँ उतना अच्छा है और यदि किसी को 10-15 या 20-30 हजार रुपये साल का देना ज्यादा लगता है तो सोचिये....कभी ऐसा हुआ है कि जरुरत लाखों में हुई तो उसका क्या होगा. इसलिए समय रहते हुए हेल्थ इंश्योरेंस एडवाइजर से बात करें और अपनी जरुरत के अनुसार हेल्थ इंश्योरेंस प्लान जरुर लें .

Saturday, September 7, 2019

क्या 1st Oct से आपकी EMI घटने वाली है?




4th Sept को RBI ने एक नया सर्कुलर जारी किया जिसके अनुसार बैंकों को 1st Oct, 2019 से सारे फ्लोटिंग रेट लोन की ब्याज दरों को एक्सटर्नल बेंचमार्क से लिंक करना होगा.

मीडिया इस सर्कुलर के बारे में  लोगों को इस तरह से बता रही है कि आपके होम लोन और कार लोन की EMI 1st Oct से घटने वाली है. क्या मीडिया का यह विश्लेषण सही है या इसके मायने कुछ और हैं..आइये समझते हैं..

सबसे पहले यह समझते हैं कि फिक्स्ड और फ्लोटिंग रेट लोन क्या है?

फिक्स्ड रेट लोन में ब्याज दरें लोन के रिपेमेंट के दौरान चेंज नहीं होती यानि पूरे समय ब्याज दरें एक ही रहती हैं.

फ्लोटिंग रेट लोन में ब्याज दरें अर्थव्यवस्था में ब्याज दरों में परिवर्तन के साथ घटती बढती रहती हैं.


क्या है ये नया सिस्टम?

RBI के सर्कुलर के अनुसार सिर्फ फ्लोटिंग रेट लोन की ब्याज दरों को एक्सटर्नल बेंचमार्क से जोड़ने की बात हो रही है और नई दरें सिर्फ नए लोन पर लागू होंगी. पुराने लोन की ब्याज दरों पर इस सर्कुलर का कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा. यह नई व्यवस्था सिर्फ इंडिविजुअल के लिए है, नॉन इंडिविजुअल के लिए नहीं. फिक्स्ड रेट लोन पर यह व्यवस्था लागू नहीं होगी. साथ में ही यह सर्कुलर केवल बैंक के ऊपर लागू होगा किसी हाउसिंग फाइनेंस कंपनी पर नहीं क्यूंकि हाउसिंग फाइनेंस कंपनी अभी भी RBI के अंतर्गत नहीं आती. हालाँकि इस साल के बजट में इनको भी RBI के अंतर्गत लाने की घोषणा हो चुकी है.

अभी तक फ्लोटिंग रेट लोन की ब्याज दरें बैंक के इंटरनल बेंचमार्क से लिंक रहती थीं.. जैसे PLR, Base Rate और  MCLR (Marginal cost of lending). यह सभी बेंचमार्क, बैंक द्वारा ब्याज दरों को निर्धारित करने की प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने के लिए समय-समय पर लाये गए. लेकिन RBI को लगता है कि ये सिस्टम अभी भी अपने निर्धारित लक्ष्य को प्राप्त करने में उतने सफल नहीं रहे. जैसे पिछले 1 वर्ष में RBI ने रेपो रेट में लगभग 1 की कमी की लेकिन बैंको ने ब्याज दरें 0.25%-0.30% तक ही घटाई. इसके उलट जब भी RBI ने पहले रेपो रेट बढ़ाये तो बैंक ब्याज दरें बढ़ाने में  तेजी दिखाते रहे.

इसलिए RBI ने यह निष्कर्ष निकाला कि इंटरनल बेंचमार्क का उपयोग बैंक अपने फायदे के लिए अधिक कर रहे हैं और अर्थव्यवस्था में ब्याज दरों को घटाने के प्रयास में RBI इसी लिए पूरी तरह से सफल नहीं हो पा रहा.

अब इसी समस्या का समाधान करने के लिए RBI ने यह सर्कुलर जारी किया है कि जिस से बैंक आगे से ब्याज दरें निर्धारित करने के लिए ऐसे बेंचमार्क का प्रयोग करें जिसका नियंत्रण बैंकों के हाथ में ना हो. ऐसे बेंचमार्क जिनका रेट या तो मार्केट से निर्धारित हो रहे हो या RBI से...

जैसे - RBI Repo Rate या 3-6 महीने के सरकारी T-Bill.. 

रेपो रेट जहाँ RBI के कंट्रोल में होता है वहीँ T-Bill के रेट मार्केट निर्धारित करता है

तो अब 1st Oct से बैंक नए फ्लोटिंग रेट लोन पर ब्याज का निर्धारण के लिए Repo rate या T-Bill के rate में अपना Spread जोड़ेगा.. जो कुछ इस तरह से होगा 

New Floating Rate Interest on Loans = External Benchmark + Spread

जहाँ तक बैंक स्प्रेड की बात है वो भी बैंक पहले से निर्धारित करनी होगी और उसमें परिवर्तन की इजाजत RBI किसी विशेष परिस्थति में ही देगा.

क्या पुराने लोन पर नई ब्याज दरें लागू होंगी?

नहीं, पुराने लोन में कोई परिवर्तन नहीं होगा उनकी ब्याज दरों का निर्धारण पुराने सिस्टम यानि MCLR पर ही होगा. यदि आप अपने लोन को नये सिस्टम में लाना चाहेंगे तो बैंक एक निश्चित प्रोसेसिंग फीस लेकर आपके लोन को एक्सटर्नल बेंचमार्क से लिंक कर देगा लेकिन एक बार आप अपने लोन को नए सिस्टम  में शिफ्ट कर लेते हैं तो फिर आपको पुराने सिस्टम में वापस जाना संभव नहीं होगा.

क्या आपको नए सिस्टम में अपना लोन शिफ्ट कर देना चाहिए?

नया सिस्टम ज्यादा पारदर्शी होगा और बैंको का ब्याज दर निर्धारण पर नियंत्रण कम होगा, जिस से आगे से बैंक अपने अनुकूल ब्याज दरें नहीं निर्धारित कर पायेंगे और उसका फायदा आने वाले समय में निश्चित रूप से आम उपभोक्ता को मिलेगा. इसलिए मुझे लगता है कि अच्छा होगा अपने लोन इस सिस्टम में शिफ्ट कर लें.

1st Oct के बाद अपने बैंक से इस नए सिस्टम के बारे में अवश्य पूछताछ करिये, अगर आपको लगे नए सिस्टम के अंतर्गत आप को लोन ट्रान्सफर करने में फायदा है तो जरुर करिये.
  

RBI इस बार यह सुनिश्चित करने का भी प्रयास कर रहा है कि बैंक के पास नए सिस्टम को सही तरह से लागू करें इसलिए RBI ने यह भी आदेश दिया है कि बैंक अपनी सुविधा अनुसार बेंचमार्क को समय-समय पर ना बदलें. मतलब एक तरह के लोन के लिए एक बेंचमार्क होगा, जैसे होम लोन को अगर बैंक ने Repo से लिंक किया है तो सभी लोगों को होम लोन Repo से ही लिंक रहेगा साथ ही ब्याज को रिसेट करने का विकल्प भी लोन लेने वालों को 3 महीने में एक बार मिलेगा.

निश्चित रूप से नई व्यवस्था बैंक के लिए उतनी अच्छी नहीं है, क्यूँकि बैंक के कण्ट्रोल में बेंचमार्क रेट होंगे नहीं और वो अपना स्प्रेड भी आसानी से चेंज ना ही कर पाएंगे. ऐसे में बैंक के ग्राहकों के लिए यह व्यवस्था अच्छी है क्यों कि यह अधिक पारदर्शी है और RBI द्वारा लिए गए फैसलों का प्रभाव उनके लोन पर जल्दी और लगभग  पूरी तरह से पड़ेगा.

यदि ब्लॉग आप को उपयोगी लगे तो अपने परिवारजनों, मित्रों एवं शुभ चिंतको को अवश्य फॉरवर्ड करें. 


Saturday, May 11, 2019

The Story of Chinese Bamboo & Your SIP


धैर्य, दृढ निश्चय, कठोर परिश्रम और अपार सफलता की अद्भुत मिसाल...


चीन के एक छोटे से गाँव में एक लड़का रहता था, अपने जीवन में बड़ी सफलता के उद्देश्य से वो लड़का एक बड़े शहर में कारोबार करने आया. बड़े उत्साह और दृढ निश्चय के साथ वह काम में लग गया लेकिन 3 साल बीत जाने के बाद भी उसे अपेक्षित सफलता नहीं मिली. धीरे-धीरे उसके पैसे ख़त्म होने लगे और वो परेशान रहने लगा. एक दिन उसका एक मित्र उससे मिलने आया, उसको परेशान देख कर उसके मित्र ने उसे सलाह दी कि क्यूँ नहीं वह कुछ दिन के लिए अपने गाँव वापस जाए और अपने परिवार से मिल के आये. अपने परिवार और पुराने दोस्तों से मिल कर उसका मन भी थोडा हल्का होगा और हो सकता है इस बीच उसे अपने कारोबार को बढ़ाने का कुछ बेहतर उपाय मिल जाय.

अपने मित्र की बात मान कर कुछ दिन बाद वह अपने गाँव पहुँचा. परिवार में सभी लोग 3 साल बाद उसको देख कर बहुत खुश होते हैं. माँ ने शाम को उसकी पसंद का भोजन बनाया, बहन और भाई उस से अपने लिए लाये उपहार के बारे में और शहर की कहानियां सुनते रहे. लेकिन उसके पिता को ना जाने कैसे पता चल गया कि वह कुछ उदास है और शहर जाने से पहले जो बेटे के अन्दर उत्साह देखा था वो कुछ कम हो गया है. रात में सब के सो जाने के बाद उसके पिता ने उस से पूछा कि क्या बात है तुम उतने खुश नहीं लग रहे, ऐसी क्या बात है जो तुम्हे परेशान कर रही है?

उस लड़के ने अपने पिता को पिछले तीन सालों के संघर्ष, अपेक्षित परिणाम ना मिलने और आर्थिक समस्या के बारे में बताया. आगे उसने बताया कि वह जिस कारोबार में है वो तो ठीक है लेकिन उसने जैसी सफलता की अपेक्षा की थी वो पिछले 3 वर्षों में उसे नहीं मिली. पहले एक साल में तो लगा कि काम ठीक हो जायेगा लेकिन समय के साथ जब काम उस तरह से नहीं चला तो धैर्य जवाब देने लगा और फिर पैसे की दिक्कत ने कारोबार में और परेशानी बढ़ा दी. पिता उसकी बात ध्यान से सुनते रहे और अंत में उसको सिर्फ इतना बोला कि अभी सो जाओ बहुत रात हो गई, हम लोग कल सुबह अपने खेत चलेंगे और बाकी बाते वहां पर करेंगे.

सुबह वह लड़का जब खेत पहुंचा तो उसे अपने खेत में बहुत बड़े-बड़े बांस के पेड़ (वैसे बांस एक तरह की घास होती है लेकिन उसकी लम्बाई के कारण उसके पेड़ कहा जाता है) पाया. वहां कई लोग उस खेत को देखने आये हुए थे. वह यह नजारा देख के भौंचका रह गया क्यंकि 3 साल पहले तो खेत में कुछ था ही नहीं और एकाएक 100 फुट लम्बे बांस के पेड़...उसने अपने पिता से इसके बारे में पूछा कि ऐसा पिछले तीन सालों में क्या हुआ ?

पिता ने जवाब दिया..बेटा याद है तुम्हे लगभग 5 साल पहले तुमने मेरे साथ इन्ही खेतों में काम किया था हमने यहीं पर बीज डाले थे, उसने बोला हाँ याद है. लेकिन 3 साल पहले जब वो शहर गया तब भी खेत खाली थे और लोग बोलते थे कि इस खेत में कुछ नहीं होगा. पिता ने बोला..लोगों का क्या है..लोग तो आज से 3 महीने पहले भी बोल रहे थे कि 5 साल से खेत में ना जाने क्या कर रहा है खेत में कुछ दिखता नहीं और ये ना जाने किस चीज की खेती कर रहा है. अगर मैं लोगों की बातों में आकर अपने लक्ष्य से भटक जाता, निराश हो जाता, परिश्रम करना छोड़ देता और इस खेत में कुछ और करने लगता तो आज तुम्हे ना तो बांस के ऐसे पेड़ दिखते और ना ही इतने सारे लोग जो कल तक मेरे पीछे मुझपे हँसते थे आज आकर मुझे शाबासी दे रहे होते.

तो पिता जी पिछले 3 महीने में ऐसा क्या हो गया जो पिछले 5 सालों में नहीं हो पाया ? लड़के के मुंह से अपने आप यह प्रश्न निकल गया. उसको समझाते हुए पिता ने उससे बोला बेटा हो तो पांच साल से ही रहा था, लेकिन मेरे अलावा किसी और को दिख नहीं रहा था. मेरा विश्वास, ज्ञान, परिश्रम और धैर्य यह सब पांच सालों में इस खेत के साथ थे, मै जमीन के नीचे होने वाले परिवर्तन को महसूस कर सकता था. बस प्रतीक्षा थी उस दिन की जब वह जमीन से बाहर निकलेगा और दुनिया को भी दिखाई देने लगे.

यह एक खास किस्म का बांस है जिसके बारे में मुझे कुछ साल पहले पता चला था. मैंने इसके बारे में अधिक जानकारी प्राप्त की तो यह बात पता चली की इसका पेड़ तैयार होने में 5-6 साल लगते हैं,  जिसमें शुरू के 4.5-5 साल तक जमीन के ऊपर कुछ दिखाई नहीं देता लेकिन अगले 45-50 दिनों में इसका पेड़ औसत 2 फुट प्रति दिन की दर से बढ़ते हुए लगभग 90-100 फुट लम्बा हो जाता है.

बेटा, यदि मैंने 2-3 साल में धैर्य छोड़ देता, अपने परिश्रम और ज्ञान पर विश्वास बनाये ना रखता तो मै भी आज तुम्हे यह दिखाने नहीं ला पाता. चाहता तो मै भी हर साल वाली फसल बाकी खेतों की तरह इस खेत में भी उगा सकता था. लेकिन मेरा उद्देश्य इस खेत में लम्बे समय में अधिक लाभ देने वाला कुछ काम करना था इसलिए मैं अपने पूरे समय अपने भरोसे पर कायम रहा, खेतों में परिश्रम करता रहा और परिणाम तुम्हारे सामने है.

बेटा, रात में मैंने समझ लिया था कि तुम्हारा भरोसा अपने काम पर थोडा कम हो गया है इसीलिए मैंने सुबह तुम्हे खेत में बुलाया कि जीवन में बड़ी सफलता प्राप्त करने के लिए धैर्य, दृढ संकल्प, परिश्रम और अपने और अपने काम पर विश्वास रखना अत्यंत आवश्यक है. कई बार ऐसा भी होता है जब आपको पता होता है कि परिणाम आपके अनुरूप होगा लेकिन उसमें इतना समय लगता है कि आप लक्ष्य से भटक जाते हैं. इन बातों को याद रखना जीवन में तुम्हे तुम्हारे अनुरूप सफलता मिलेगी.

वह लड़का अपने पिता की बात समझ गया था कुछ दिन बाद गाँव से शहर वह दुगने उत्साह और विश्वास के साथ गया और कुछ सालों बाद उसे अपने कारोबार में अच्छी सफलता प्राप्त हुई.

अब आप सोच रहे होंगे कि चीन के बांस के पेड़ की कहानी से SIP और हमारे इन्वेस्टमेंट्स का क्या सम्बन्ध है ? और आज इस कहानी को मै अपने ब्लॉग के माध्यम से क्यूँ शेयर कर रहा हूँ ?

वो इसलिए, क्यूंकि आज कुछ लोगों का भरोसा अपने इन्वेस्टमेंट्स और SIPs से कम हो रहा है. इक्विटी म्यूच्यूअल फंड्स और SIP के इनफ्लो में आ रही गिरावट उसका बता रहे हैं. जो लोग दो-तीन साल से SIP चला रहे हैं उन्हें अपेक्षित परिणाम (ग्रोथ) नहीं दिख रहे और जिस कारण वो थोडा निराश हो रहे हैं. तो आज उन्हें इसी चीन के बांस की कहानी से सबक लेना चाहिए SIP और इक्विटी म्यूच्यूअल फण्ड में रिटर्न या ग्रोथ लम्बे समय में मिलते हैं. शेयर मार्केट में उतार चढाव आते ही रहते हैं और ऐसा पहली बार नहीं हो रहा कि जब 2-3 साल की SIP या इक्विटी फण्ड में अपेक्षित ग्रोथ नहीं आये. लेकिन अपना भरोसा बनाये रखिये.

आपको एक बार फिर से मैं पुराने आंकड़ो के आधार पर समझाने का प्रयास करता हूँ कि SIP में लम्बे समय में  ग्रोथ चीन के बांस की तरह कैसे होती है और यह समझने का प्रयास करते हैं कि किसी भी समय मार्केट के उतार चढाव एवं देश दुनिया में हो रहे घटना क्रमों को क्यूँ आपको नजर अंदाज करना चाहिए. दोस्त बोले, मीडिया बोले, परिवार बोले लेकिन आपका भरोसा अपनी SIP के इन्वेस्टमेंट्स से नहीं कम होना चाहिये.

जैसे आज से 2-3 साल पहले किसी ने SIP शुरू की है, उसी तरह आज से लगभग 20 वर्ष पहले किसी ने यदि 3000 रुपये की SIP शुरू की तो उसकी SIP अलग समय अन्तराल पर उसे क्या अनुभव कराती रही.

दिनांक 1 जनवरी 1999 से 3000 की एक SIP शुरू होती है. इस SIP को हम हर 3 वर्ष के अन्तराल पर चेक करते हैं और देखते हैं कि क्या होता है ?

पहली बार, 31 दिसम्बर 2001 को जब उसकी वैल्यू देखी जाती है तो वो कुछ इस तरह से दिखाई देती है 


SIP- Jan 99-Dec 2001

कुल निवेश 1.08 लाख और 31 dec 2001 की वैल्यू सिर्फ 1.11 लाख रुपये. 3 साल में 2% का ग्रोथ सेविंग अकाउंट से भी बुरा. हो सकता है व्यक्ति का विश्वास डोल जाय, जैसा आज के समय कई लोगों के मन में चल रहा है. लेकिन यहीं पर अपनी SIP और इन्वेस्टमेंट प्लान बंद मत करने ...क्योंकि आगे कि कहानी में कई उतार चढाव हैं..

SIP- Jan 99-Dec 2004

अगले 3 साल में तो शाइनिंग इंडिया हो गया और इन्वेस्टर का भरोसा अपनी SIP और इन्वेस्टमेंट प्लान में फिर से बन गया, लेकिन ऐसा भी हो सकता है कि 3 साल में इतनी ग्रोथ देख कर पैसे निकाल लेते. तो अगर यह भी विचार मन में आया तो आगे देखिये क्या होता है.

SIP- Jan 99-Dec 2007

SIP- Jan 99-Dec 2010

SIP- Jan 99-Dec 2013

SIP- Jan 99-Dec 2016

SIP- Jan 99-March 2019 

देखिये SIP का कमाल, 1999 से शुरू हुई एक छोटी सी बचत मार्च 2019 तक लगभग 60 लाख रूपये में बदल जाती है . पिछले 20 साल में दुनिया ने, भारत ने और शेयर मार्केट ने क्या -क्या नहीं देखा.. 2000 में Y2K से लेकर 2019 में ग्लोबल ट्रेड वॉर, ना जाने कितने इलेक्शन, मंदी-तेजी और  ना जाने कितने अच्छे बुरे घटना क्रम, लेकिन चीन के उस किसान की तरह जिस इन्वेस्टर ने धैर्य रखा हर छोटी बड़ी उतार चढाव में डटा रहा और सिर्फ अपने 20 साल के लक्ष्य पर ही निगाह रखी वो आज छोटी सी बचत से इतने पैसे इकठ्ठा कर लिया. और जो निवेशक प्रति दिन न्यूज़ पेपर पढ़ कर, डेली पोर्टफोलियो की वैल्यू चेक करके SIP बंद करता रहा और चालू करता रहा उसका कुछ खास नहीं हो पाया.

SIP के माध्यम से पैसे इकट्ठा होने में थोडा समय लगता है इसमें में ग्रोथ चीन के बांस के पेड़ की तरह ही होती है जो शुरू के कुछ सालों में तो आपको कुछ खास नहीं लगता लेकिन समय के साथ इसमें अद्भुत ग्रोथ होती है.

इसलिए आपसे आग्रह है यदि आपने SIP शुरू की है और उसमें अभी आपको ग्रोथ नहीं आ रही तो निराश ना होइये अपने फाइनेंसियल एडवाइजर से बात करिए अगर कहीं फण्ड सिलेक्शन में गलती हुई है तो उस पर करेक्टिव एक्शन लीजिये, लेकिन अपने सिस्टमेटिक इन्वेस्टमेंट प्लान यानि SIP को बंद मत करिये.

यदि आपने अभी तक SIP शुरू नहीं की है तो आज ही अपने सुरक्षित भविष्य के लिए, अपने बच्चों की उच्च शिक्षा एवं विवाह के लिए, अपने घर एवं गाड़ी के लिए और सबसे जरुरी अपने रिटायरमेंट के लिए SIP शुरू करिए. 

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Thursday, April 25, 2019

Rap.....Apna Bonus Aayega


अपना बोनस आएगा...ख़र्चे में चला जायेगा
गाड़ीं नई ख़रीद के..लॉंग ड्राइव पे जायेगा
या ऐपल का नया मोबाइल जल्दी बुक करवाएगा
जब अपना बोनस आएगा ...

लोन भी चुकायेगा या बीवी को फ़ॉरेन घुमायेगा
पार्टी शार्टी करके दोस्तों पे रोब जमायेगा
जब अपना बोनस आएगा..
पिछले सालों के गैजेट तो कूड़े के भाव बिक गए

कितने सालों के बोनस पार्टी करने में फूँक गए
थोड़ा सा दिमाग़ लगा तो पैसा ही पैसा कमाएगा
इस बार के बोनस को भी मैं काम पे लगायेगा
लॉंग टर्म की प्लानिंग करके अपना भविष्य बनायेगा..
अब अपना बोनस आएगा...अब अपना बोनस आयेगा


बोनस या अतिरिक्त आय का उपयोग समझदारी से करें...पढ़े 

https://arthagyanindia.blogspot.com/2019/04/the-6-smartest-things-to-do-with-your.html

Wednesday, April 24, 2019

The 6 smartest things to do with your Yearly Bonus





अप्रैल का महीना आपके लिए यदि नौकरी में बोनस ले कर आ रहा है तो यह मौका खुशियाँ मनाने का है . एक नौकरी वाला आदमी इस समय का इंतजार पूरे  साल करता है. बोनस में मिले पैसे को खर्च करने के लिए उसके मन में बहुत सारी योजनायें होती है. हो सकता है आपके मन में भी ऐसे कई सारे प्लान हों बोनस को लेकर जैसे बच्चे के लिए बाइक लेनी है या पूरे परिवार के साथ बाहर घुमने जाना है या अपने कार का डाउन पेमेंट या कुछ महंगे गैजेट खरीदने या घर की थोड़ी मरम्मत करानी है या घर के लिए ने फर्नीचर या और आवश्यक चीजें खरीदनी है. ऐसे बहुत सारी प्लानिंग एक नौकरी पेशे वाले के मन में बोनस को लेकर होती है. 

अर्थज्ञान के माध्यम से आपको फाइनेंसियल मामलों में सही जानकारी देने का और आपको फाइनेंसियल लाइफ को सही दिशा देने के प्रयास की अगली कड़ी में आज हम बात करेंगे बोनस या अतिरिक्त लाभ के सही ढंग से उपयोग करने के बारे में.

जब भी कभी हमें एक रेगुलर कैश फ्लो जैसे सैलरी या रेगुलर प्रॉफिट के अतिरिक्त कुछ पैसे मिलते हैं वो चाहे बोनस के रूप में हों या अधिक लाभ के रूप में हों तो उसका उपयोग करने में अक्सर लोग कैजुअल हो जाते हैं क्यूंकि ये पैसे कई बार लोग अपनी अतिरिक्त आय के रूप में समझ लेते हैं इसलिए उसका उपयोग भी बहुत सोच समझ के नहीं करते और इस कारण वो पैसे अनावश्यक खर्चे में  चले जाते हैं जिनका उपयोग अगर  सही ढंग से करते तो वह उनकी फाइनेंसियल लाइफ को और अच्छा बना सकता था. तो आज हम समझते हैं की ऐसे समय में हमे कैसे संतुलन बनाना चाहिए जिस से की हम इन मौकों को एन्जॉय भी कर सकें और अपने फाइनेंसियल लाइफ  को और भी व्यवस्थित कर सकें.


1- अपने आप को गिफ्ट करें- 
सबसे पहले बोनस से ऐसी चीज अपने आप को या अपने परिवार को गिफ्ट करें जिसमें आप सभी को ख़ुशी मिलें. जैसे बाहर छुट्टी पर घूमने जाने के लिए या बच्चों की बाइक या कंप्यूटर या और किसी इंस्ट्रूमेंट में जैसे अगर आपको या आपके बच्चे को म्यूजिक का शौक है तो म्यूजिक इंस्ट्रूमेंट या अपनी पत्नी या अपने पति के लिए ऐसा उपहार जो उनके दिल के करीब हो. लेकिन ध्यान यह रखें कि इन मदों में पूरे पैसे ना डाल दें, एक निश्चित राशि निर्धारित करें और सिर्फ उसी बजट में यह काम करें.

2- इमरजेंसी फण्ड बनायें-
फाइनेंसियल प्लानिंग करते हुए सबसे पहले इस बात पर ध्यान दिया जाता है कि आपके पास कम से कम 6 महीने के फिक्स्ड और रनिंग खर्च के बराबर की राशि का इमरजेंसी फण्ड होना चाहिए. क्यूंकि 6 महीने का खर्चा मतलब आपके 3-4 महीने की कमाई के बराबर की राशि जिसे  इकट्ठा होने में थोडा समय लगता है . इसलिए बोनस के पैसे से आप अपने इमरजेंसी फण्ड बना सकते हैं. इमरजेंसी फण्ड का उपयोग किसी को तभी समझ में आती है जब थोड़े समय के लिए उसकी नौकरी या बिज़नेस में समस्या आती है जैसे कोई मेडिकल प्रॉब्लम आ जाती है या किसी दुर्घटना में कुछ नुकसान हो जाता है या बिज़नेस में थोड़ी प्रॉब्लम आ जाय या नौकरी में कुछ समस्या हो जाय, ऐसे समय में इमरजेंसी फण्ड काम आता है. अक्सर देखा गया है जो लोग इमरजेंसी फण्ड नहीं रखते उन्हें कठिन परिस्थितियों में अपनी कुछ सम्पतियाँ मज़बूरी में कम कीमत में बेचनी पड़ जाती हैं. इसलिए इमरजेंसी फण्ड का होना सभी के लिए बहुत जरुरी होता है.

ध्यान रखें अपने इमरजेंसी फण्ड की राशि को दो हिस्सों में रखें 45 दिन के खर्च के बराबर की राशि सेविंग्स अकाउंट में और शेष राशि म्यूच्यूअल फण्ड की लिक्विड या अल्ट्रा शार्ट टर्म फण्ड में. ऐसा इसलिए कि ये ऐसे निवेश के विकल्प हैं जहाँ से पैसे बहुत आसानी से निकाले जा सकते हैं और इनमे किसी तरह के नुकसान की संभावना नहीं होती.

लिक्विड फण्ड के बारे में जानकारी के लिए लिंक पर  क्लिक करें  http://arthagyanindia.blogspot.in/2016/04/liquid-funds.html


3- लोन का बोझ कम करने में -
बोनस या अतिरिक्त लाभ के पैसे का उपयोग आप अपने लोन को चुकाने में कर सकते हैं और यह खास कर ऐसे में और जरुरी हो जाता है जब लोन पर अधिक दर से ब्याज से दिया जा रहा हो और वहीँ नए निवेश पर रिटर्न या ब्याज की दर कम हो. ऐसा अक्सर देखा गया है कि लोग लोन पर 10% की दर से ब्याज चूका रहे होते हैं और अपने पैसे को ऐसी जगह निवेश कर रखे होते हैं जहाँ से उन्हें 7-8 का ब्याज या रिटर्न मिल रहा होता है.
अगर आप अपने बोनस का उपयोग लोन को चुकाने में करते हैं तो आपके ऊपर से EMI का बोझ को कम होता है. 

4-  अपने परिवार की आर्थिक सुरक्षा में
कमाई करने वाले व्यक्ति की असमय मृत्यु पूरे परिवार को दूसरों के ऊपर आश्रित बना सकती है इसलिए  परिवार को आर्थिक सुरक्षा के लिए टर्म इंश्योरेंस पालिसी अत्यंत आवश्यक है . किसी व्यक्ति का इंश्योरेंस कवर या सुरक्षा कवर उसकी कमाई, उसके खर्चे, उसके दायित्वों और उम्र में होने वाले बदलाव से बढ़ता है, लाइफ इंश्योरेंस व्यक्ति की कमाई का कम से कम 10 गुना होना चाहिये. 
बोनस का उपयोग परिवार की आर्थिक सुरक्षा के लिए टर्म प्लान खरीदने में करना समझदारी भरा फैसला है.

लाइफ इंश्योरेंस की जरूरत समझने के लिए पढ़ें-

5- क्रेडिट कार्ड या पर्सनल लोन से छुटकारा-
अपने बोनस का उपयोग लम्बे समय से चले आ रहे क्रेडिट कार्ड पर बकाया बिल या पर्सनल लोन को चुकाने में करें. क्यूंकि यह ऐसे लोन होते हैं जहाँ पर ब्याज दर काफी ज्यादा होती हैं और इनके रीपेमेंट में कोई गड़बड़ आपके भविष्य में पड़ने वाली जरूरतों के ऊपर भारी पड सकती हैं और साथ में  इससे आपका क्रेडिट स्कोर गड़बड़ होता है. इसलिए समय रहते इस तरह के लोन से छुटकारा पाने में ही समझदारी होगी.

6- फाइनेंसियल गोल्स को रिसेट करने में-
आपके इन्वेस्टमेंट का आधार हमेशा आपके फाइनेंसियल गोल्स होने चाहिए मतलब कोई भी इन्वेस्टमेंट करने से पहले आपको उस इन्वेस्टमेंट का उद्देश्य या लक्ष्य निर्धारित करना चाहिए.ऐसे में जब आपको बोनस या प्रॉफिट के रूप में कुछ सरप्लस फण्ड मिलते हैं तो अपने निवेश की जरूरतों को एक बार फिर से देखना चाहिए. हो सकता है आप बोनस के पैसे निवेश कर के अपने फाइनेंसियल गोल्स को समय से पहले प्राप्त कर सकें या अपने फाइनेंसियल गोल्स को पाने में आपको कम प्रयास करना पड़े. जब भी कभी एक मुश्त सरप्लस फण्ड आयें उनका उपयोग लम्बे समय में  वेल्थ क्रिएट करने में जरुर करिये. 


इस प्रकार से आप संतुलित तरीके से बोनस का उपयोग  कर के अपने तरक्की की राह पर आगे बढ़ सकते हैं. हो सकता है आपको अपनी बोनस की राशि कम लग रही हो या आप अपने बोनस से खुश ना हों, लेकिन आप छोटी बोनस राशि का भी सही उपयोग करके अपने लिए कुछ अच्छा कर सकते हैं.
https://www.youtube.com/watch?v=ZKC01iQrPAU

अपने सुझाव देने के लिए धन्यवाद. इस ब्लॉग को अधिक से  अधिक लोगों में शेयर करें. कोई भी प्रश्न आप ईमेल के जरिये पूछ सकते हैं.

Sunday, April 14, 2019

NCD में निवेश करने से पहले पढ़ें..



आम तौर पर निवेशकों के बीच सबसे प्रचलित इन्वेस्टमेंट आप्शन बैंक फिक्स्ड डिपाजिट है और इसका कारण है बैंक से मिलने वाला एक निश्चित ब्याज और साथ में पैसे की सुरक्षा . आप अपने बगल में खुले किसी बैंक की फिक्स्ड डिपाजिट में आसानी से निवेश कर सकते हैं और फिक्स्ड रिटर्न का लाभ उठा सकते हैं. लेकिन क्या कोई और ऐसे निवेश के साधन  हैं जहाँ पर निवेश कर के आप बैंक से 2%-3% ज्यादा मतलब वर्तमान में  9%-10.% ब्याज कमा सकते हैं और वहां पर पैसे भी सुरक्षित हो तो क्या आप इसके बारे में जानकारी लेना चाहेंगे.

तो आइये जानते हैं एक ऐसे निवेश माध्यम के बारे में जहाँ पर एक निश्चित समय के लिए पैसे लगा कर आप बैंक से बेहतर ब्याज कमा सकते हैं. इस निवेश माध्यम का नाम है डेबेंचर, यह एक ऐसे फाइनेंसियल उत्पाद या इंस्ट्रूमेंट हैं जिनको कंपनियां लम्बे और मध्यम समय के अपनी पूंजीगत जरूरतों के लिए पब्लिक को जारी करती हैं, यह एक निश्चित अवधि के लिए जारी किये जाती हैं और इनकी अवधि 1-20 वर्ष तक हो सकती है. इसमें ब्याज बैंक डिपाजिट की तरह एक निश्चित अन्तराल पर निवेशक को मिलता है. इसकी ब्याज दरें सामान्यतया बैंक फिक्स्ड डिपाजिट से अधिक होती हैं. अवधि पूरी होने पर मूलधन निवेशक को वापस मिल जाता है. बस इनकी उपलब्भता बैंक  डिपाजिट की तरह नहीं है और इन पर भरोसा भी बैंक की तरह लोग नहीं करते.

वैसे पैसे की सुरक्षा के मामले में यह निर्भर करता हैं इनकी क्रेडिट रेटिंग पर, विभिन्न रेटिंग एजेंसियां जैसे ICRA, CRISIL, FITCH और CARE, डिबेंचर जारी करने वाली कंपनियों और उनके इंस्ट्रूमेंट को क्रेडिट रेटिंग देती हैं. अगर डिबेंचर AAA रेटेड हैं तो सबसे ज्यादा सुरक्षित हैं और AA हैं तो AAA से कम सुरक्षित हैं और A हैं तो AA से कम सुरक्षित हैं.


ऐसे ही ब्याज दरें भी AAA में AA से कम और AA में A से कम होती हैं.


डिबेंचर दो प्रकार के होते हैं पहला कनवर्टिबल डिबेंचर और दूसरा नॉनकनवर्टिबल डिबेंचर (NCD)

कनवर्टिबल डिबेंचर वो होते हैं जिनमें अवधि पूरी होने पर मूलधन वापस ना मिलकर उसी कम्पनी के शेयर या इक्विटी पूर्व निर्धारित शर्तों के अनुसार निवेशक को मिल जाते हैं. जब की नॉनकनवर्टिबल डिबेंचर (NCD) में मेच्योरिटी पर मूल धन निवेशक को वापस मिलता है. इसीलिए फिक्स्ड इनकम इन्वेस्टर के लिए NCD उपयुक्त होती हैं.

NCD सामान्यतया दो तरह को होती हैं एक होती है सिक्योर्ड और दूसरी अनसिक्योर्ड. 


सिक्योर्ड NCD वो होती हैं जो कंपनी के एसेट्स से सुरक्षित होती हैं मतलब NCD जारी करने में जितने पैसे पब्लिक से लिए गए हैं उसके बदले में कंपनी के एसेट्स को एक तरह से बंधक बनाया गया होता है वहीँ पर अनसिक्योर्ड NCDs एसेट्स बैक्ड नहीं होती मतलब इनमें ज्यादा रिस्क होता है और इसलिए ये सिक्योर्ड NCDs से ज्यादा ब्याज दरें ऑफर करती हैं.


NCD  के फायदे



बेहतर रिटर्न- NCDs  का सबसे बड़ा फायदा यही है कि इन पर निवेशक को ब्याज या रिटर्न अन्य फिक्स्ड इनकम इंस्ट्रूमेंट जैसे पोस्ट ऑफिस डिपाजिट या बैंक डिपाजिट से अधिक मिलता है.


टीडीएस - NCDs से मिलने वाले ब्याज या गेन पर कोई टीडीएस नहीं लगता.

ब्याज मिलने के विकल्प- NCDs में निवेशक को ब्याज, मासिक, तिमाही, सालाना  या एक साथ परिपक्वता (Maturity) पर मिलने का विकल्प होता है.


लिक्विडिटी- NCD  जारी करने वाली कम्पनी सामान्यतया निवेशक को पैसे परिपक्वता पर ही देती है मगर परिपक्वता से पहले निवेशक को पैसे वापस चाहिए तो सेकेंडरी मार्केट में NCDs को बेच कर पैसे लिए जा सकते हैं. अगर NCD  पुट आप्शन के साथ है तो NCD जारी करने वाली कम्पनी से परिपक्वता से  पहले भी निवेशक पैसे वापस ले सकता है.


NCDs कहाँ से खरीदें

NCDs प्राइमरी मार्केट से और सेकेंडरी मार्केट दोनों जगह से ख़रीदे जा सकते हैं. जब कंपनी पहली बार NCD जारी करती है तो अपने DEMAT अकाउंट के माध्यम से प्राइमरी मार्केट से खरीद सकते हैं और बाद में सेकेंडरी मार्केट से भी इन्हें ख़रीदा जा सकता है. इन में निवेश करने के लिए सामान्यतया DEMAT अकाउंट होना जरुरी होता है.


ब्याज और कैपिटल गेन पर टैक्स 



NCDs से मिलने वाले ब्याज पर टीडीएस नहीं कटता है लेकिन ब्याज पूरी तरह से टैक्सेबल इनकम होती है.  निवेशक को अपने टैक्स स्लैब के अनुसार ब्याज पर टैक्स भरना होता है. 

NCD में कैपिटल गेन तभी होगा जब NCDs को परिपक्वता से पहले सेकेंडरी मार्केट में बेचा जाये.

यदि खरीदने के 12 महीने से पहले NCD बेचीं गई तो सॉर्ट टर्म कैपिटल गेन होगा और पूरा गेन निवेशक की इनकम में जुड़ जायेगा और उसको पाने टैक्स स्लैब के अनुसार टैक्स देना होगा.


यदि NCD 12 महीने के बाद बेची गई है तो लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन होगा और इस पर टैक्स, इनकम टैक्स एक्ट की धारा 112 के अंतर्गत 10.3% के रेट से टैक्स लगेगा.


NCD में निवेश करने से पहले इन बातों पर अवश्य ध्यान दें


अब हम आते हैं अपने मूल विषय पर की NCD में निवेश करने से पहले हमें किन बातों का ध्यान रखना चाहिए-

1- पैसे की सुरक्षा बहुत जरुरी है इसलिए निवेश सिर्फ उन्ही NCDs में करें जिनकी क्रेडिट रेटिंग से आप संतुष्ट हों. जैसा की  मैंने पहले ही बताया AAA रेटिंग सबसे सुरक्षित मानी जाती है. वैसे AA- तक रेटिंग वाले NCDs को इन्वेस्टमेंट की दुनिया में इन्वेस्टबल ग्रेड माना जाता है लेकिन एक रिटेल निवेशक के लिए शायद यह पैरामीटर सही नहीं हो. इसलिए हमेशा निवेश करने से पहले क्रेडिट रेटिंग देखें.

2- कोई सेक्टर या कंपनी  यदि बुरे समय में है तो ऐसे सेक्टर या कंपनी की NCD खरीदना उपयुक्त नहीं होता. इसलिए ऐसी परिस्थिति में अधिक ब्याज की लालच में ना पड़ें. क्यूंकि इन परिस्थितियों में ब्याज हो सकता हो आपको अन्य NCDs से अधिक मिल रहा हो लेकिन रिस्क भी उनमे अधिक होता है.

3. ऐसी कंपनी की NCD में निवेश ना करें जिनके इक्विटी में निवेश या शेयर में निवेश करने में आप कम्फर्टबल ना हों.

4. ऐसे सेक्टर या कंपनी में निवेश करने से बचे जहाँ पर होने वाले व्यापार या उनके बिज़नस में ट्रांस्पेरंसी ना हो

5. केवल एक कंपनी की NCD में निवेश ना करें. 

6. एसेट बैक्ड NCD यानि सिक्योर्ड NCD में ही निवेश करें.

7. सेकेंडरी मार्केट में NCD की खरीद-बेच होती है और उनका मूल्य, ब्याज दरों के घटने बढ़ने पर घटता बढ़ता है, इसलिए NCDs में परिपक्वता तक बने रहें हो सकता है बीच में निकलने पर आपको मूलधन से कम पर निकलना पड़ जाय.

8. NCD यदि कॉल आप्शन के साथ है तो ऐसे में कम्पनी NCD की परिपक्वता या अवधि पूरी होने से पहले निवेशक को मूलधन वापस कर सकती है.
9. NCD यदि पुट आप्शन के साथ है तो निवेशक NCD की परिपक्वता या अवधि पूरी होने से पहले कंपनी से अपना मूलधन वापस ले सकता है.

10. NCD में इक्विटी की तरह बहुत लाभ नहीं प्राप्त किया जा सकता यहाँ पर एक निश्चित ब्याज और थोडा सा कैपिटल गेन मिल सकता है इसलिए सिर्फ अधिक रिटर्न कमाने के नजरिये से ही इनमें निवेश न करें, रिस्क और लिक्विडिटी जैसे विषय को ध्यान में जरुर रखें.

  
NCDs के माध्यम से कंपनियां समय-समय पर अपने प्राइमरी इशू ला कर मार्केट से पैसे उठाती हैं, समय पर थोड़ी से जानकारी प्राप्त करके  NCDs के माध्यम से एक आम निवेशक अपने पैसे पर अधिक ब्याज या रिटर्न कमा सकता है. 

निवेश करने से पहले अपने निवेश सलाहकार से सलाह लें. धन्यवाद.






Saturday, April 6, 2019

रिटायरमेंट के बाद निवेश कैसे और कहाँ करें !!!





रिटायरमेंट फण्ड कैसे बनाये इसके बारे में बहुत सारे लेख मिल जायेंगे, बहुत सारी योजनायें हैं लेकिन रिटायरमेंट के बाद इकट्ठा किये हुए आपके रिटायरमेंट फण्ड का सही प्रबन्धन कैसे करें इस के बारे में बहुत कम बाते होती हैं, बहुत  कम लेख छपते हैं और बहुत कम टीवी प्रोग्राम होते हैं. इसी कमी को पूरा करने के उद्देश्य से मैंने पिछला ब्लॉग लिखा. कई लोगों ने मुझे पिछले ब्लॉग के लिए अच्छा फीडबैक दिया और मुझे प्रोत्साहित किया कि मै इस विषय पर और विस्तार से चर्चा करूँ. वैसे भी इस विषय को एक ब्लॉग में पूरा कर पाना संभव नहीं है और मुझे पता है कि इस ब्लॉग में भी सभी पक्ष पर प्रकाश नहीं डाला जा सकता क्यूंकि इसके आगे की बात अलग-अलग व्यक्ति के लिए अलग हो सकती है .

अगर आपने पिछला ब्लॉग नहीं पढ़ा है तो नीचे दिए हुए लिंक पर क्लिक करके उसे पढ़ें और फिर इस ब्लॉग को पढ़ें.
http://arthagyanindia.blogspot.in/2017/05/blog-post_27.html

इस ब्लॉग के माध्यम से ऐसे कुछ विकल्प के बारे में बताने का प्रयास कर रहा हूँ जो कि सीनियर सिटीजन के लिए सही हो सकते हैं.

एक रिटायर्ड इन्वेस्टर को सबसे पहले पैसे की सुरक्षा को लेकर सलाह दी जाती है और यह उचित भी है रिटायरमेंट के बाद या तो इनकम समाप्त  हो जाती है या आधी रह जाती है इसलिए आदमी को पैसे की सुरक्षा का नजरिया जरुर रखना चाहिए . लेकिन केवल सुरक्षा का नजरिया लेकर अगर रिटायर्ड इन्वेस्टर निवेश करें तो उन्हें वो परेशानी हो सकती है जो पिछले ब्लॉग में मैंने श्याम जी के उदाहरण से समझाने का प्रयास किया था. 

मेर विचार से आपके इन्वेस्टमेंट ऐसी जगह होने चाहिए जो आपका लम्बे समय तक साथ भी दे, सुरक्षित भी रहे और जरुरत पड़ने पर आप आसानी से पैसे निकाल सकें यानी की आपको पैसे की सुरक्षा के साथ बेहतर  रिटर्न और लिक्विडिटी भी चाहिए. और ऐसे में आप किसी एक विकल्प में निवेश कर के सारी चीजें नहीं पा सकते. आपको एक रणनीति के अनुसार विभिन्न  निवेश विकल्पों और अलग-अलग अवधि के लिए निवेश करना होगा.

और नीचे दिए गए चार्ट को ध्यान से देखिये, मुझे लगता है कोई भी विकल्प अपने आप में ये तीनो चीजें आप को नहीं दे सकते.

* Expected Return (Mutual Fund investments are subject to market risks, read all scheme related documents carefully.)

PMVVY और SCSC दोनों में मिला कर आप 22.5 लाख रुपये तक का निवेश कर सकते हैं दोनों को मिला कर आपको इन से आज की ब्याज दर के अनुसार अगले 5 वर्ष तक  लगभग 8.25% का ब्याज मिल सकता है, लेकिन उसके बाद क्या होगा पता नहीं. अच्छी बात यह है कि PMVVY से आपको हर महीने ब्याज मिलता है वहीँ SCSC से आपको हर तिमाही पर. इन स्कीमों अगर यही रिटर्न टैक्स फ्री होते तो बहुत अच्छा होता लेकिन टैक्स देने के बाद आपका रिटर्न 0.80%-2.40% तक कम हो जाता है, अगर 10% स्लैब में हैं तो पोस्ट टैक्स रिटर्न लगभग 7.45%, 20% में हैं तो 6.65% और 30% स्लैब में हैं तो लगभग 5.85% का ही रह जाता है. इन विकल्पों में भविष्य में ब्याज दर कम होने का रिस्क हमेशा रहता है.

अगर आप सिर्फ फिक्स्ड रिटर्न की चाहत रखते हैं तो फिर NCDs और कॉर्पोरेट FDs में निवेश कर सकते हैं लेकिन इनके रिस्क फैक्टर जैसे क्रेडिट रेटिंग, लिक्विडिटी रिस्क और डिफ़ॉल्ट रिस्क के बारे में जानकारी अवश्य लेनी चाहिये. बैंक FDs के रिटर्न SCSC, NCDs, PMVVY एवं कॉर्पोरेट FDs से सामान्यतया कम होते हैं.

PMVVY एक एन्युटी प्लान ही है इसके अलावा लाइफ इंश्योरेंस कंपनियों के जितने भी एन्युटी प्लान हैं उनके रिटर्न कम होते हैं. इसलिए एन्युटी प्लान को मैं उपयुक्त नहीं मानता.

अकसर ट्रेडिशनल तरीकों में इन्वेस्टमेंट करने वाले लोग निश्चित ब्याज दर को लेकर इतने कड़ा रुख रखते हैं कि वो बाकि चीजों को ध्यान नहीं देते. मेरा उनको यही सुझाव है आप को सुरक्षा के साथ लम्बे समय तक साथ देने वाले विकल्पों के बारे में पढ़ना, सुनना, समझना चाहिए और इस विषय के विशेषज्ञों से सलाह लेनी चाहिए. उसको मानना ना मानना हमेशा आपके हाथ में है.

सलाह किस से ले रहे हैं यह भी बहुत महत्वपूर्ण है अक्सर देखा जाता हैं निवेश के मामले में मिश्रा जी अपने विभाग के शर्मा जी से सलाह लेते हैं और वहीं  शर्मा जी ने दुसरे विभाग के वर्मा जी से सलाह ली होती है और वर्मा जी ने किसी विशेषज्ञ से अपनी परिस्थियों के अनुकूल कोई इन्वेस्टमेंट किया होता है. अब मिश्रा जी बिना यह जाने हुए कि वर्मा जी ने क्या समझा था, किस परिस्थिति में कौन सी जगह निवेश किया था, वहां पर निवेश कर देंगे तो अब बताइए मिश्रा जी का अनुभव कैसा होगा.

जैसे आप सोचिये वर्मा जी की कमर 36 की है हाइट 5.5 ft की है अगर उनकी पैंट मिश्रा जी पहन लें जिनकी कमर 32 की है और हाइट 5.9 ft की है तो कैसा लगेगा. आपके इन्वेस्टमेंट आपकी परिस्थतियों, आपके रिस्क प्रोफाइल, कैश फ्लो की जरुरत और तमाम ऐसी बातों पर निर्भर करता है. इसलिए जैसे अपनी पैंट अपने नाप की सिलवा के पहने तो वो पहनने में भी आरामदायक होगी और देखने में भी अच्छी होगी उसी तरह से आपके इन्वेस्टमेंट भी आपके ही हिसाब से होंगे तभी आप के लिए ठीक होंगे.

रिटायरमेंट फण्ड को मैनेज करने के बारे में मै आगे और कुछ बात करूँ उस से पहले विश्व प्रसिद्ध इन्वेस्टमेंट गुरु पीटर लिंच की बात समझ लेते हैं उनका क्या कहना है रिटायरमेंट फण्ड के निवेश के बारे में. 

पीटर लिंच के अनुसार रिटायरमेंट के बाद मिले फण्ड को  इन्वेस्टमेंट करने का निर्णय जब आप ले रहे हों तो सेफ्टी के साथ इस बात पर जरुर ध्यान दें कि शुरुआती सालों में आपके इन्वेस्टमेंट पर मिलने वाला रिटर्न आपके द्वारा निकाले गए पैसों से अधिक रहे. अगर आप 8% का रिटर्न बना रहे हैं लेकिन आप निकाल भी उतना या उस से ज्यादा रहे हैं तो आपका फण्ड बहुत ज्यादा दिन चलने वाला नहीं है. आपके फण्ड की सेफ्टी बहुत जरुरी है लेकिन वो आपका लम्बे समय तक तभी साथ दे पायेगा जब आप शुरुआत के 5-7 सालों में अपने पे आउट से ज्यादा रिटर्न बना पायें. अगर आप ऐसा नहीं कर पाते तो आपकी मुश्किलें भविष्य में बढ़ने वाली हैं.


ट्रेडिशनल इन्वेस्टमेंट आप्शन आपको रेगुलर कैश फ्लो दे सकते हैं लेकिन वो उतना पैसा आपको हर साल बना के नहीं दे सकते जितनी आपकी जरूरतें हो सकती हैं और वहीँ हाइब्रिड म्यूच्यूअल फंड्स या एसेट एलोकेशन फंड्स आपको साल दर साल, महीने दर महीने एक बराबर का रिटर्न नहीं दे सकते उनके रिटर्न में उतार चढाव होता रहता है, लेकिन 5 साल से ऊपर की समयावधि में ये प्रोडक्ट दोहरे अंक वाले पोस्ट टैक्स रिटर्न देने के क्षमता रखते हैं.  NCD और कॉर्पोरेट FD में थोड़े बेहतर रिटर्न आप तब बना सकते हैं जब आप उसमें भी थोडा रिस्क लें यानी AAA रेटेड इंस्ट्रूमेंट में आप बैंक FDs तो बेहतर रिटर्न बना सकते हैं लेकिन वो भी वर्तमान में 9% से ज्यादा नहीं होंगे उस से ज्यादा रिटर्न के लिए आपको AA रेटेड इंस्ट्रूमेंट लेना पड़ेगा. डेब्ट फंड्स में जहाँ रिटर्न देने के क्षमता ट्रेडिशनल इन्वेस्टमेंट से 1%-2% ज्यादा रहती है लेकिन वहां भी हर महीने एक निश्चित रिटर्न तो नहीं बन सकते, लेकिन 6 महीने-1 साल के रिटर्न में आप निश्चितता देख सकते हैं.

रिटायरमेंट फण्ड को मैनेज करने के लिए Bucketing  Strategy सब से अच्छी मानी जाती है लेकिन यह विकल्प ऊपर दिए गए विकल्पों की तरह सरल नहीं है. इसमें  निवेश सलाहकार की विशेषज्ञता के साथ निवेशक के विश्वास और उस योजना पर लगातार चलते रहने पर निर्भर करता है. इस विषय के  बारे में किसी अन्य ब्लॉग में विस्तार से चर्चा करूँगा.

एक रिटायर्ड इन्वेस्टर के लिए इनके अलावा किसी अन्य विकल्पों के बारे में सोचना उचित नहीं होगा.

इन्ही विकल्पों और निवेश माध्यमों को मिला कर आप अपने लिए एक विनिंग प्लान बना सकते हैं. म्यूच्यूअल फंड्स से रेगुलर कैश फ्लो के लिए आप सिस्टेमेटिक विड्राल प्लान ले सकते हैं. म्यूच्यूअल फंड्स से डिविडेंड पेआउट आप्शन अब ना लें इस से आपको टैक्स ज्यादा चुकाना पड़ेगा और आपका पोस्ट टैक्स रिटर्न कम हो जायेगा.


पढ़ें कैसे पायें स्टेबल रिटर्न के साथ रेगुलर कैश फ्लो
http://arthagyanindia.blogspot.in/2016/12/blog-post.html

यहाँ पर मैं आपको 4 अलग-अलग समीकरणों का विश्लेषण कर के दिखाता हूँ . इसको देख कर आप समझ पायेंगे की आपको विभिन्न निवेश के साधनों में निवेश कर के लम्बे समय में कितने पैसे रेगुलरली ले सकते हैं और कितने साल तक चला सकते हैं.

1- ट्रेडिशनल इन्वेस्टमेंट के साथ - एक्सपेक्टेड रिटर्न - 8%, टोटल इन्वेस्टमेंट कार्पस- 50 लाख रुपये,  शुरुआती मासिक विड्राल- 35000 रुपये, महंगाई दर- 5%, विड्राल में सालाना वृद्धि - 5%

Withdrawal Plan

Investment at Retirement
5,000,000
Date of Retirement
06-06-2017
Annual Interest Rate
8.00%
Withdrawal Frequency
Monthly
First Withdrawal
35,000
Payment Type
End of Period
Annual Inflation Rate
5.00%
Current Age
60.0
Results

Years Until Retirement
0.00
Age at Retirement
60.0
Initial Withdrawal
35,004.68
Number of Payouts
178
Age at Last Payout
74.8
Final Payout
48,281.02
Total Interest Earned
4,184,513.02
Total Withdrawals
9,184,513.02

ऊपर दिये हुये चार्ट से यह बात कितनी स्पष्ट हो जाती है कि ट्रेडिशनल इन्वेस्टमेंट के भरोसे 15 साल मुश्किल से चला सकते हैं और इतने में ब्याज ही नहीं मूलधन  भी पूरी तरह से निकाल चुके होंगे. और यहाँ पर ना हमने आपके द्वारा दिए जा रहे टैक्स को ध्यान में रखा है और ना ही महंगाई दर उतनी रखी है जितनी तेजी से आपके खर्चे बढ़ सकते  हैं. इसी तरह लोगों के रिटायरमेंट फण्ड समय से पहले ख़त्म हो जाते हैं. इसलिए ट्रेडिशनल इन्वेस्टमेंट पर पूरी तरह से आश्रित होने से पहले इस विषय पर जरुर सोचे कि यह कितने दिन तक आपका साथ देंगे. 

2- ट्रेडिशनल इन्वेस्टमेंट के साथ डेब्ट फण्ड या NCD- एक्सपेक्टेड रिटर्न - 8.75%, टोटल इन्वेस्टमेंट कार्पस- 50 लाख रुपये, शुरुआती मंथली विड्राल- 35000 रुपये, महंगाई दर- 5%,  विड्राल में सालाना वृद्धि - 5%

Withdrawal Plan

Investment at Retirement
5,000,000
Date of Retirement
06-06-2017
Annual Interest Rate
8.75%
Withdrawal Frequency
Monthly
First Withdrawal
35,000
Payment Type
End of Period
Annual Inflation Rate
5.00%
Current Age
60.0
Results

Years Until Retirement
0.00
Age at Retirement
60.0
Initial Withdrawal
35,004.68
Number of Payouts
191
Age at Last Payout
75.9


Total Interest Earned
5,132,367.99
Total Withdrawals
10,132,367.99

इस तरह से भी अगर आप प्लान करते हैं तो भी 16 साल से ज्यादा आपके फण्ड के रहने की संभावना नहीं है. इस प्लान से भी बहुत परिवर्तन नहीं पड़ता. इसलिए यह प्लान भी बहुत उपयुक्त नहीं है.

3- डेब्ट फण्ड या NCD के साथ बैलेंस्ड एडवांटेज या एसेट एलोकेशन फण्ड- एक्सपेक्टेड रिटर्न - 11%, टोटल इन्वेस्टमेंट कार्पस- 50 लाख रुपये, शुरुआती मंथली विड्राल- 35000 रुपये, महंगाई दर- 5%, विड्राल में सालाना वृद्धि - 5%

Withdrawal Plan

Investment at Retirement
5,000,000
Date of Retirement
06-06-2017
Annual Interest Rate
11.00%
Withdrawal Frequency
Monthly
First Withdrawal
35,000
Payment Type
End of Period
Annual Inflation Rate
5.00%
Current Age
60.0
Results

Years Until Retirement
0.00
Age at Retirement
60.0
Initial Withdrawal
35,004.68
Number of Payouts
253
Age at Last Payout
81.1


Total Interest Earned
10,569,561.24
Total Withdrawals
15,569,561.24

अगर आप इस तरह निवेश करते हैं कि आप औसतन 11% का रिटर्न पूरे समय में बना सकें तो आप अपना फण्ड रिटायरमेंट के 21 साल के बाद तक चला सकते हैं और इस तरह से यह विकल्प पिछले दोनों विकल्पों से अधिक समय तक चल सकता है. और यह विकल्प कम रिस्क के साथ बेहतर काम करने के क्षमता रखता है.

4- बैलेंस्ड एडवांटेज फण्ड या एसेट एलोकेशन फण्ड के साथ- एक्सपेक्टेड रिटर्न - 13%, टोटल इन्वेस्टमेंट कार्पस- 50 लाख रुपये, शुरुआती मंथली विड्राल- 35000 रुपये, महंगाई दर- 5%

Withdrawal Plan

Investment at Retirement
5,000,000
Date of Retirement
06-06-2017
Annual Interest Rate
13.00%
Withdrawal Frequency
Monthly
First Withdrawal
35,000
Payment Type
End of Period
Annual Inflation Rate
5.00%
Current Age
60.0
Results

Years Until Retirement
0.00
Age at Retirement
60.0
Initial Withdrawal
35,004.68
Number of Payouts
460
Age at Last Payout
98.3
Final Payout
164,993.05
Total Interest Earned
43,413,872.88
Total Withdrawals
48,413,872.88

आखिरी समीकरण तो अच्छा लग रहा है लेकिन यह विकल्प तभी कारगर हो सकता है जब की आप निवेश की शुरुआत में उसमें बनने वाले रिटर्न से ज्यादा पैसे न निकाले तभी लम्बे समय में यह योजना काम आ सकती है. लेकिन इस योजना पर चलने से पहले आप को इस में होने वाले उतार चढाव के बारे में ठीक से समझना होगा.


इन चारों समीकरणों को ठीक से समझिये. आप सबसे सुरक्षित चलना चाहेंगे और पहला या दूसरा विकल्प अपनाएंगे तो आपका भविष्य बहुत असुरक्षित हो सकता है, वहीँ चौथा विकल्प आपको थोडा परेशान कर सकता है यदि आप इक्विटी मार्केट या म्यूच्यूअल फण्ड के बारे में अधिक जानकारी नहीं रखते.

यहाँ पर एक बार पीटर लिंच की बात याद करिये और देखिये उन्होंने कितनी सही बात कही है. पहले विकल्प में आप 8% का रिटर्न बना रहें हैं और आपके विड्राल की शुरुआत 8.4% से हो रहे हैं. ऐसी स्थिति में आपका फण्ड 15 साल भी आपका साथ नहीं दे पाता है. अगर आप पहले या दुसरे विकल्प के साथ जाना चाहते हैं तो आप को अपने खर्चों पर बहुत नियंत्रण रखना चाहिए, आपके विड्राल अगर शुरुआत में 5% तक रहे तो आप अपने फंड्स 93 साल की उम्र तक चला सकते हैं. और यही एक मात्र तरीका है जो ट्रेडिशनल इन्वेस्टमेंट के साथ आपके खर्चे लम्बे समय तक चला सकता है.

तीसरे और चौथे विकल्प आपका साथ लम्बे समय तक दे सकते हैं लेकिन हो सकता हैं आपको शरुआत के सालों में थोड़ी परेशानी भी हो, जब उनकी वैल्यू में उतार चढाव होगी. कम से कम पिछले 20 सालों के म्यूच्यूअल फण्ड के  अनुभव तो यही बताते हैं.  इन विकल्पों को यदि आप चुनते हैं तो आप अपनी लाइफ स्टाइल भी बनाये रखेंगे, खुल के जी सकेंगे और लम्बे समय तक अपने फंड्स का लाभ भी उठा सकेंगे. लेकिन इन विकल्पों के साथ आपको थोडा सजग रहना पड़ेगा. 
                                                                                                                                                             कोई भी व्यक्ति अपनी 75वीं सालगिरह पर पैसों के लिए अपने बच्चों की तरफ नहीं देखना चाहेगा और ना ही पैसों के लिए नौकरी करना चाहेगा. इसलिए समय से पहले या तो अपने खर्चों को घटा लें और ट्रेडिशनल इन्वेस्टमेंट आप्शन के साथ चलें और या तो मार्केट लिंक्ड प्रोडक्ट में समझदारी से निवेश करके डबल डिजिट रिटर्न बनायें और अपनी लाइफ स्टाइल बनाये रखे हुए अपनी लाइफ के गोल्डेन पीरियड एन्जॉय करें.

इनमे से कोई भी विकल्प चुनने से पहले अपने आप को ठीक तरह से समझे, अपने पैसे से ना तो एक्सपेरिमेंट करें ना ही किसी अनाड़ी (अपने रिश्तेदार, दोस्त) या खिलाडी (बैंकर या LIC एजेंट ) को करने दें. सोच समझ कर अपने इस एसेट के लिए प्लान बनायें या किसी अच्छे निवेश विशेषज्ञ से सलाह लें.  

आशा है यह ब्लॉग आपके रिटायरमेंट फण्ड को मैनेज करने में सहायक होगा.