Tuesday, June 20, 2017

डेब्ट म्यूच्यूअल फण्ड या फिक्स्ड डिपाजिट... किसमे कितना है दम


एक आम निवेशक को म्यूच्यूअल फण्ड में रिस्क और रिटर्न समझाना अपने आप में एक बड़ी चुनौती होती है. एक निवेशक का निवेश करने से पहले आम तौर पर यही प्रश्न होता है इसमें कितना रिटर्न मिलेगा और बैंक डिपाजिट से या फिक्स्ड डिपाजिट से कितना ज्यादा देगा, साथ में ही इस रिटर्न की क्या गारंटी है ? कहाँ लिखा है ? और यहीं पर फिक्स्ड इनकम म्यूच्यूअल फण्ड ट्रेडिसनल फिक्स्ड डिपाजिट से अलग हो जाता है क्यूंकि इनमे में भविष्य में मिलने वाला रिटर्न कहीं  लिखा नहीं होता, यहां सिर्फ पिछले सालों में मिले रिटर्न का विवरण होता है. आगे क्या मिलेगा इसका आंकलन फण्ड को होनी वाली इंटरेस्ट इनकम और भविष्य में इंटरेस्ट रेट में होने वाले परिवर्तन से किया जा सकता है. जबकि बैंक डिपाजिट या फिक्स्ड डिपाजिट में इंटरेस्ट या मेच्योरिटी वैल्यू पहले से ही लिखा होता है.

म्यूच्यूअल फण्ड को अपने  रिटर्न किसी बेंचमार्क से तुलना करके बताने होते हैं तो डेब्ट म्यूच्यूअल फण्ड में भी कई सारे बेंचमार्क हैं, जैसे क्रिसिल लिक्विड फण्ड इंडेक्स, क्रिसिल सॉर्ट टर्म बांड फण्ड इंडेक्स या क्रिसिल लॉन्ग टर्म बांड फण्ड इंडेक्स. अब डेब्ट फण्ड और इंडेक्स की परफॉरमेंस का तुलनात्मक अध्ययन करना और एक आम निवेशक को यह समझाना की डेब्ट फण्ड भी आपको बैंक डिपाजिट से बेहतर और स्टेबल रिटर्न दे सकते हैं यह समझा पाना थोडा पेंचीदा हो जाता है. 

इसीलिए एक आम निवेशक ऐसे प्रोडक्ट में निवेश करना ज्यादा पसंद करता है जिसमे उसे पहले से ही पता हो की कब और कितना रिटर्न मिलेगा, जैसा की बैंक डिपाजिट या फिक्स्ड डिपाजिट में होता है. 

पहले यह समझते हैं कि बैंक डिपाजिट कैसे काम करते हैं . बैंक अपने अकाउंट होल्डर से डिपाजिट लेता है और उसी पैसे को दूसरों को अधिक ब्याज पर लोन देता है. उदाहरण के लिए जब बैंक अपने डिपाजिटर से 6% पर डिपाजिट लेता है और उसी पैसे को दुसरे आदमी को 9.5% ब्याज पर लोन दे देता है तो बैंक की समय पर ब्याज और मूल धन चुकाने की क्षमता इस बात पर निर्भर करती है कि लोन लेना वाला आदमी उसे कितने समय से पैसे ब्याज के साथ लौटा रहा है. और यह तो सभी को पता है ऐसा कोई बैंक नहीं है जिसके पास आज के समय अच्छा खासा नॉन परफोर्मिंग एसेट ना हो, हर एक बैंक के लोन बुक में समस्या है. इसलिए यह समझना बहुत जरुरी है की बैंक यह कैसे आश्वस्त करता है कि इन  नॉन परफोर्मिंग एसेट या बैड लोन का रिस्क  डिपाजिटर पर ना पड़े.

एक बैंक अपने लोन की फंडिंग पूरी तरह से डिपाजिट से नहीं कर सकता उसे इक्विटी कैपिटल भी रखना पड़ता है जिससे वो इन नुकसानों का सामना कर सके और उसका प्रभाव एक आम डिपाजिटर पर ना पड़ने दे. लेकिन क्या यह सिस्टम पूरी तरह से सुरक्षित है क्या एक आम डिपाजिटर का पैसा वाकई में ऐसे बैंक में सुरक्षित है जहाँ लोन डिफ़ॉल्ट ज्यादा हों या नॉन परफोर्मिंग एसेट नियंत्रण से बाहर होने वाले हों और जिनके पास पर्याप्त कैपिटल ना हो.

ग्लोबल ट्रस्ट बैंक के अलावा पिछले 20-25 सालों में किसी बैंक का उदाहरण हमें नहीं मिलता जिसमे डिफ़ॉल्ट होने की नौबत आई और फिर सरकार और RBI को हस्तक्षेप कर के बैंक को फाइनेंसियल प्रॉब्लम से उबारने के लिए किसी दूसरे बैंक को अधिग्रहण करवाना पड़ा. वैसे ग्लोबल ट्रस्ट बैंक के डिपाजिटर के लिए यह समय बहुत आराम दायक नहीं था, उस समय उनको अपने डिपाजिट के वापस मिलने का भरोसा थोडा डगमगा गया था. इस तरह की समस्या केवल एक  बैंक में होती है तब तो सरकार संभाल सकती है लेकिन अगर ऐसी समस्या एक से ज्यादा बैंको में हो जाय तो सरकार के लिए भी इसे संभाल पाना भी मुश्किल हो सकता है.  

कोऑपरेटिव बैंको के उदाहरण कई सारे मिल जायेंगे जहाँ पर डिपाजिट होल्डर के सेविंग अकाउंट के पैसे भी वापस नहीं मिल पाए. लेकिन प्राइवेट & सरकारी बैंकों का को-ऑपरेटिव बैंको से तुलना करना सही नहीं होगा.

सरकारी बैंक में आज के समय बैड एसेट या NPA की जो समस्या है वो एक डरावनी तस्वीर पेश करती है. अगर बैंक इनको संभाल ना सकी तो भविष्य में परेशानियाँ किसी नए रूप में आम डिपाजिटर के सामने आ सकती हैं.


आम तौर पर निवेशक फिक्स्ड डिपाजिट के पीछे के रिस्क को समझ नहीं पाता. कोई भी संस्था पेपर पर प्रिंट करके मेच्योरिटी या इंटरेस्ट बता दे तो उसे सुरक्षित और गारंटी समझ लेते हैं. इसीलिए थोडा ज्यादा कमाने की लालच में पोंज़ी स्कीम में निवेश बहुत सारे लोग निवेश करते हैं, जहाँ पर भी पेपर में छाप कर ज्यादा रिटर्न, ज्यादा मेच्योरिटी वैल्यू देने की बात को गारंटी दी जाती है. और इस तरह से लोगों के हजारों करोड़ रूपये शारदा ग्रुप, रोज वैली या PACL जैसी संस्थाओं के हाथ में चले जाते हैं.

दूसरा तरीका होता है कॉर्पोरेट फिक्स्ड डिपाजिट में निवेश करने का जहाँ पर फिर ज्याद इंटरेस्ट देने का ऑफर आम निवेशक के सामने होता है . यहाँ पर जो संस्थाएं ज्यादा इंटरेस्ट ऑफर करते हैं उनके पीछे के कारण या तो उस कॉर्पोरेट के आर्थिक हालात अच्छे ना होना होता है या उनके मैनेजमेंट की और समस्याएं हो सकती हैं. लेकिन जब एक आम निवेशक फिक्स्ड डिपाजिट के रिस्क को नहीं समझता तब हमारे सामने जे पी, यूनीटेक और यश बिरला ग्रुप की कंपनी के फिक्स्ड डिपाजिट में निवेश करने और पूंजी फ़साने वाले ऐसे लाखों लोग सामने आते हैं.   

अब हम बात करते हैं फिक्स्ड इनकम या डेब्ट म्यूच्यूअल फण्ड में रिस्क और रिटर्न की.

एक डेब्ट या फिक्स्ड इनकम म्यूच्यूअल फण्ड में जो निवेशक होता है वो इक्विटी होल्डर (Owner) होता है उसे उस स्कीम का यूनिट होल्डर कहते हैं यहाँ बैंक की तरह निवेशक एक डिपाजिटर ही नहीं रह जाता बल्कि वह उस स्कीम का एक हिस्सेदार बन जाता है इसलिए उसे यहाँ पर होने वाला लाभ या रिटर्न इस बात पर निर्भर करता है कि उस स्कीम की एसेट में कितनी वृद्धि हुई या उसके पोर्टफोलियो की वैल्यू कितनी बढ़ी.

जहाँ बैंक के डिपाजिटर को यह पता नहीं होता की उससे पैसा लेकर वह किसी माल्या को दिया गया है या किसी अच्छे ऋणग्राहक को दिया गया है, बैंक का लोन पोर्टफोलियो कैसा है. वहीँ म्यूच्यूअल फण्ड के निवेशक को उसके पाई-पाई का हिसाब पता होता है कि जिस स्कीम में उसका निवेश है उसने किन बैंको के या किस कंपनी के बांड में पैसे लगाये हैं . एक म्यूच्यूअल फण्ड निवेशक अपने यूनिट के वैल्यू (NAV) रोजाना देख सकता है, हर महीने पोर्टफोलियो की समीक्षा कर सकता है और अगर वह किन्ही कारणों से चाहें वो पोर्टफोलियो की क्वालिटी या परफॉरमेंस से या किसी और चीज से संतुष्ट ना हो तो किसी भी समय वर्तमान मूल्य पर अपने पैसे निकाल भी सकता है. ना तो यहाँ पर पूरा पैसा डूबने का रिस्क है ना एक आम निवेशक को बंध के रहने की मजबूरी है. जब भी जितनी जरुरत है पैसे निकाल ले और जब भी चाहे निवेश बढ़ा ले.

एक प्रोफेशनल मैनेजमेंट आप के पैसों को  किसी एक बैंक, एक कॉर्पोरेट, एक पब्लिक सेक्टर की कंपनी, भारत सरकार या किसी राज्य सरकार के एक बांड में या एक समयावधी के बांड या डिबेंचर में निवेश नहीं करता बल्कि इन सबको मिला कर एक पोर्टफोलियो बनाता जिस से एक आम निवेशक को कम रिस्क और स्टेबिलिटी के साथ बेहतर रिटर्न बना कर दे सके.

डेब्ट म्यूच्यूअल फण्ड में रिस्क उसके पोर्टफोलियो की क्रेडिट क्वालिटी और उसके मोड ड्यूरेशन पर निर्भर करता है.  और यही काम होता है फण्ड मैनेजर का की वह स्कीम के ऑब्जेक्टिव के अनुसार कम से कम रिस्क उठा के स्टेबल और टैक्स एफीसियेंट रिटर्न बना सके.

डेब्ट म्यूच्यूअल फण्ड में फिक्स्ड डिपाजिट की तरह ही रिटर्न का श्रोत सिर्फ इन्ट्रेस्ट ही नहीं होता, इन्ट्रेस्ट के साथ-साथ पोर्टफोलियो में रखे हुए फिक्स्ड इनकम इंस्ट्रूमेंट्स के रेट भी घटते बढ़ते हैं और यह दूसरा श्रोत डेब्ट म्यूच्यूअल फण्ड के रिटर्न को थोडा  प्रभावित करता है.

फिक्स्ड डिपाजिट के मुकाबले फिक्स्ड इनकम म्यूच्यूअल फण्ड ज्यादा टैक्स एफीसियेंट होते हैं  क्यूंकि इन्हें इनकम टैक्स एक्ट ने लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन पर इंडेक्सेशन का फायदा दिया है जिसके कारण 3 साल के बाद इनसे होने वाले गेन पर टैक्स फिक्स्ड डिपाजिट के मुकाबले कहीं कम लगता है.

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http://arthagyanindia.blogspot.in/2016/05/fixed-deposits.html

जैसे फिक्स्ड डिपाजिट अलग-अलग समयवधि के लिए अलग होते हैं वैसे ही डेब्ट म्यूच्यूअल फण्ड भी कई प्रकार के हैं यहाँ पर एक दिन या एक हफ्ते के लिए अलग स्कीम है, 3 महीने या 6 महीने के लिए अलग हैं और साल दो साल या इस से ज्यादा समय के लिए अलग म्यूच्यूअल फण्ड स्कीम हैं. इसलिए इनमे निवेश करने से पहले आप या तो पूरी जानकारी हासिल कर लें या अच्छे म्यूच्यूअल फण्ड एडवाइजर की सलाह लें. अगर आप यह नहीं कर सकते तो फिक्स्ड डिपाजिट ही आप के लिए बेहतर है.

याद रखें फिक्स्ड इनकम म्यूच्यूअल फण्ड में निवेश कर के आप बेहतर, स्टेबल और टैक्स एफीसियेंट रिटर्न बना सकते हैं. आप डेब्ट फण्ड को सही से समझ जायें तो आपके निवेश का पलड़ा हमेशा एक ट्रेडीसनल फिक्स्ड डिपाजिट के निवेशक से भारी ही रहेगा.

अगले ब्लॉग में पढ़े...कौन सा डेब्ट फण्ड सही है आपके लिए..

Image Source: http://www.freedigitalphotos.net



Monday, June 5, 2017

रिटायरमेंट के बाद कहाँ इन्वेस्टमेंट करें


रिटायरमेंट फण्ड कैसे बनाये इसके बारे में बहुत सारे लेख मिल जायेंगे और बहुत सारी योजनायें हैं लेकिन रिटायरमेंट के बाद इकट्ठा किये हुए आपके रिटायरमेंट फण्ड का उपयोग कैसे करें इस के बारे में बहुत कम बात होती है, बहुत  कम लेख छपते हैं और बहुत कम टीवी प्रोग्राम होते हैं. और इसी कमी को पूरा करने के उद्देश्य से मैंने पिछला ब्लॉग लिखा. मुझे लगता है इस विषय पर ज्यादा से ज्यादा बातें होनी चाहिये क्यूंकि यह विषय हमारे बड़े और आदरणीय वरिष्ठ नागरिकों से जुड़ा हुआ है.

अगर आपने पिछला ब्लॉग नहीं पढ़ा है तो नीचे दिए हुए लिंक पर क्लिक करके उसे पढ़ें और फिर इस ब्लॉग को पढ़ें.
http://arthagyanindia.blogspot.in/2017/05/blog-post_27.html

इस ब्लॉग के माध्यम से ऐसे कुछ विकल्प देने का प्रयास कर रहा हूँ जो सीनियर सिटीजन के लिए सही हो सकते हैं.

अगर सबसे ज्यादा सलाह एक रिटायर्ड इन्वेस्टर को दी जाती है तो वो है पैसे की सुरक्षा लेकिन मेरे विचार से केवल सुरक्षा का नजरिया लेकर अगर रिटायर्ड इन्वेस्टर निवेश करें तो उन्हें वो परेशानी हो सकती है जो पिछले ब्लॉग में मैंने श्याम जी के उदाहरण से समझाने का प्रयास किया था. 

मेर विचार से आपके इन्वेस्टमेंट ऐसी जगह होने चाहिए जो आपका लम्बे समय तक साथ भी दे, सुरक्षित भी रहे और जरुरत पड़ने पर आप आसानी से पैसे निकाल सकें. 

और नीचे दिए गए चार्ट को ध्यान से देखिये, मुझे लगता है कोई भी विकल्प अपने आप में ये तीनो चीजें आप को नहीं दे सकते और इनके अलावा और कोई रिटायर्ड इन्वेस्टर के लिए हैं भी नहीं.


PMVVY और SCSC दोनों में मिला कर आप 22.5 लाख रुपये तक का निवेश कर सकते हैं दोनों को मिला कर आपको इन से आज की ब्याज दर के अनुसार लगभग 8.25% का ब्याज मिल सकता है. अच्छी बात यह है कि PMVVY से आपको हर महीने ब्याज मिलता है वहीँ SCSC से आपको हर तिमाही पर. इन स्कीमों अगर यही रिटर्न टैक्स फ्री होते तो बहुत अच्छा होता लेकिन टैक्स देने के बाद आपका रिटर्न 0.80%-2.40% तक कम हो जाता है, अगर 10% स्लैब में हैं तो पोस्ट टैक्स रिटर्न लगभग 7.45%, 20% में हैं तो 6.65% और 30% स्लैब में हैं तो लगभग 5.85% का ही रह जाता है. भविष्य में ब्याज दर कम होने का रिस्क हमेशा रहता है.

अकसर ट्रेडिशनल तरीकों में इन्वेस्टमेंट करने वाले लोग निश्चित ब्याज दर को लेकर इतने कड़ा रुख रखते हैं कि वो बाकि चीजों को ध्यान नहीं देते. मेरा उनको यही सुझाव है आप को सुरक्षा के साथ लम्बे समय तक साथ देने वाले विकल्पों के बारे में पढ़ना, सुनना, समझना चाहिए और इस विषय के विशेषज्ञों से सलाह लेनी चाहिए. उसको मानना ना मानना हमेशा आपके हाथ में है.

सलाह किस से ले रहे हैं यह भी बहुत महत्वपूर्ण है अक्सर देखा जाता हैं निवेश के मामले में मिश्रा जी अपने विभाग के शर्मा जी से सलाह लेते हैं और वहीं  शर्मा जी ने दुसरे विभाग के वर्मा जी से सलाह ली होती है और वर्मा जी ने किसी विशेषज्ञ से अपनी परिस्थियों के अनुकूल कोई इन्वेस्टमेंट किया होता है. अब मिश्रा जी बिना यह जाने हुए कि वर्मा जी ने क्या समझा था, किस परिस्थिति में कौन सी जगह निवेश किया था, वहां पर निवेश कर देंगे तो अब बताइए मिश्रा जी का अनुभव कैसा होगा.

अब आप सोचिये वर्मा जी की कमर 36 की है हाइट 5.5 ft की है अगर उनकी पैंट मिश्रा जी पहन लें जिनकी कमर 32 की है और हाइट 5.9 ft की है तो कैसा लगेगा. आपके इन्वेस्टमेंट आपकी परिस्थतियों, आपके रिस्क प्रोफाइल, कैश फ्लो की जरुरत और तमाम ऐसी बातों पर निर्भर करता है. इसलिए जैसे अपनी पैंट अपने नाप की सिलवा के पहने तो वो पहनने में भी आरामदायक होगी और देखने में भी अच्छी होगी उसी तरह से आपके इन्वेस्टमेंट भी आपके ही हिसाब से होंगे तभी आप के लिए ठीक होंगे.

मै कुछ विकल्प बताऊँ उस से पहले विश्व प्रसिद्ध इन्वेस्टमेंट गुरु पीटर लिंच की बात समझ लेते हैं उनका क्या कहना है रिटायरमेंट फण्ड के निवेश के बारे में. 

पीटर लिंच के अनुसार रिटायरमेंट के बाद मिले फण्ड को  इन्वेस्टमेंट करने का निर्णय जब आप ले रहे हों तो सेफ्टी के साथ इस बात पर जरुर ध्यान दें कि शुरुआती सालों में आपके इन्वेस्टमेंट पर मिलने वाला रिटर्न आपके द्वारा निकाले गए पैसों से अधिक रहे. अगर आप 8% का रिटर्न बना रहे हैं लेकिन आप निकाल भी उतना या उस से ज्यादा रहे हैं तो आपका फण्ड बहुत ज्यादा दिन चलने वाला नहीं है. आपके फण्ड की सेफ्टी बहुत जरुरी है लेकिन वो आपका लम्बे समय तक तभी साथ दे पायेगा जब आप शुरुआत के 5-7 सालों में अपने पे आउट से ज्यादा रिटर्न बना पायें. अगर आप ऐसा नहीं कर पाते तो आपकी मुश्किलें भविष्य में बढ़ने वाली हैं.


ट्रेडिशनल इन्वेस्टमेंट आप्शन आपको रेगुलर कैश फ्लो दे सकते हैं लेकिन वो उतना पैसा आपको हर साल बना के नहीं दे सकते जितनी आपकी जरूरतें हो सकती हैं और वहीँ बैलेंस्ड म्यूच्यूअल फंड्स आपको साल दर साल, महीने दर महीने एक बराबर का रिटर्न नहीं दे सकते उनके रिटर्न में उतार चढाव होता रहता है, लेकिन 3-5 साल की समयावधि में ये प्रोडक्ट दोहरे अंक वाले टैक्स फ्री रिटर्न देने के क्षमता रखते हैं. डेब्ट फंड्स में जहाँ रिटर्न देने के क्षमता ट्रेडिशनल इन्वेस्टमेंट से 1%-2% ज्यादा रहती है लेकिन वहां भी हर महीने एक निश्चित रिटर्न तो नहीं बन सकते, लेकिन 6 महीने-1 साल के रिटर्न में आप निश्चितता देख सकते हैं.

इनके अलावा कोई चौथी प्रोडक्ट केटेगरी एक रिटायर्ड इन्वेस्टर के लिए मुझे समझ में नहीं आती.

इन्ही तीनो केटेगरी के निवेश माध्यमों को मिला कर आप अपने लिए एक विनिंग प्लान बना सकते हैं. म्यूच्यूअल फंड्स से रेगुलर कैश फ्लो के लिए आप सिस्टेमेटिक विड्राल प्लान ले सकते हैं.


पढ़ें कैसे पायें स्टेबल रिटर्न के साथ रेगुलर कैश फ्लो
http://arthagyanindia.blogspot.in/2016/12/blog-post.html

अब यहाँ पर मैं आपको 4 अलग-अलग समीकरणों की एनालिसिस कर के दिखाता हूँ . इसको देख कर आप समझ पायेंगे की आपको कहाँ जाना चाहिए-

1- ट्रेडिशनल इन्वेस्टमेंट के साथ - एक्सपेक्टेड रिटर्न - 8%, टोटल इन्वेस्टमेंट कार्पस- 50 लाख रुपये,  शुरुआती मासिक विड्राल- 35000 रुपये, महंगाई दर- 5%

Withdrawal Plan

Investment at Retirement
5,000,000
Date of Retirement
06-06-2017
Annual Interest Rate
8.00%
Withdrawal Frequency
Monthly
First Withdrawal
35,000
Payment Type
End of Period
Annual Inflation Rate
5.00%
Current Age
60.0
Results

Years Until Retirement
0.00
Age at Retirement
60.0
Initial Withdrawal
35,004.68
Number of Payouts
178
Age at Last Payout
74.8
Final Payout
48,281.02
Total Interest Earned
4,184,513.02
Total Withdrawals
9,184,513.02

ऊपर दिये हुये चार्ट से यह बात कितनी स्पष्ट हो जाती है कि ट्रेडिशनल इन्वेस्टमेंट के भरोसे 15 साल मुश्किल से चला सकते हैं और इतने में ब्याज ही नहीं मूलधन  भी पूरी तरह से निकाल चुके होंगे. और यहाँ पर ना हमने आपके द्वारा दिए जा रहे टैक्स को ध्यान में रखा   है और ना ही महंगाई दर उतनी रखी है जितनी तेजी से आपके खर्चे बढ़ सकते  हैं. 

2- ट्रेडिशनल इन्वेस्टमेंट के साथ डेब्ट फण्ड - एक्सपेक्टेड रिटर्न - 8.75%, टोटल इन्वेस्टमेंट कार्पस- 50 लाख रुपये, शुरुआती मंथली विड्राल- 35000 रुपये, महंगाई दर- 5%

Withdrawal Plan

Investment at Retirement
5,000,000
Date of Retirement
06-06-2017
Annual Interest Rate
8.75%
Withdrawal Frequency
Monthly
First Withdrawal
35,000
Payment Type
End of Period
Annual Inflation Rate
5.00%
Current Age
60.0
Results

Years Until Retirement
0.00
Age at Retirement
60.0
Initial Withdrawal
35,004.68
Number of Payouts
191
Age at Last Payout
75.9
Final Payout
22,080.80
Total Interest Earned
5,132,367.99
Total Withdrawals
10,132,367.99

इस तरह से भी अगर आप प्लान करते हैं तो भी 16 साल से ज्यादा आपके फण्ड के रहने की संभावना नहीं है.

3- डेब्ट फण्ड के साथ बैलेंस्ड फण्ड- एक्सपेक्टेड रिटर्न - 11%, टोटल इन्वेस्टमेंट कार्पस- 50 लाख रुपये, शुरुआती मंथली विड्राल- 35000 रुपये, महंगाई दर- 5%

Withdrawal Plan

Investment at Retirement
5,000,000
Date of Retirement
06-06-2017
Annual Interest Rate
11.00%
Withdrawal Frequency
Monthly
First Withdrawal
35,000
Payment Type
End of Period
Annual Inflation Rate
5.00%
Current Age
60.0
Results

Years Until Retirement
0.00
Age at Retirement
60.0
Initial Withdrawal
35,004.68
Number of Payouts
253
Age at Last Payout
81.1
Final Payout
15,519.71
Total Interest Earned
10,569,561.24
Total Withdrawals
15,569,561.24

अगर आप इस तरह निवेश करते हैं कि आप औसतन 11% का रिटर्न पुरे समय में बना सकें तो आप अपना फण्ड रिटायरमेंट के 21 साल के बाद तक चला सकते हैं और इस तरह से यह विकल्प पिछले दोनों विकल्पों से अधिक समय तक चल सकता है.

4- बैलेंस्ड फण्ड के साथ- एक्सपेक्टेड रिटर्न - 13%, टोटल इन्वेस्टमेंट कार्पस- 50 लाख रुपये, शुरुआती मंथली विड्राल- 35000 रुपये, महंगाई दर- 5%

Withdrawal Plan

Investment at Retirement
5,000,000
Date of Retirement
06-06-2017
Annual Interest Rate
13.00%
Withdrawal Frequency
Monthly
First Withdrawal
35,000
Payment Type
End of Period
Annual Inflation Rate
5.00%
Current Age
60.0
Results

Years Until Retirement
0.00
Age at Retirement
60.0
Initial Withdrawal
35,004.68
Number of Payouts
460
Age at Last Payout
98.3
Final Payout
164,993.05
Total Interest Earned
43,413,872.88
Total Withdrawals
48,413,872.88

यह चार्ट तो बहुत खूबसूरत बन रहा है और यही एक स्थिति लगती है जब कोई अपने रिटायरमेंट फण्ड का पुरे समय तक उपयोग भी कर पाता है और अपनी अगली पीढ़ी के लिए कुछ छोड़ के भी जा सकता है. 

इन चारों समीकरणों को ठीक से समझिये. आप सबसे सुरक्षित चलना चाहेंगे और पहला या दूसरा विकल्प अपनाएंगे तो आपका भविष्य बहुत असुरक्षित हो सकता है और आपको ऐसी परिस्थिति का सामना कर पड सकता है जो बहुत भयवाह हो सकती है.

यहाँ पर एक बार पीटर लिंच की बात याद करिये और देखिये उन्होंने कितनी सही बात कही है. पहले विकल्प में आप 8% का रिटर्न बना रहें हैं और आपके विड्राल की शुरुआत 8.4% से हो रहे हैं. ऐसी स्थिति में आपका फण्ड 15 साल भी आपका साथ नहीं दे पाता है. अगर आप पहले या दुसरे विकल्प के साथ जाना चाहते हैं तो आप को अपने खर्चों पर बहुत नियंत्रण रखना चाहिए, आपके विड्राल अगर शुरुआत में 5% तक रहे तो आप अपने फंड्स 93 साल की उम्र तक चला सकते हैं. और यही एक मात्र तरीका है जो ट्रेडिशनल इन्वेस्टमेंट के साथ आपके खर्चे लम्बे समय तक चला सकता है.

तीसरे और चौथे विकल्प आपका साथ लम्बे समय तक दे सकते हैं लेकिन हो सकता हैं आपको शरुआत के सालों में थोड़ी परेशानी भी हो, जब उनकी वैल्यू में उतार चढाव होगी. कम से कम पिछले 20 सालों के म्यूच्यूअल फण्ड के  अनुभव तो यही बताते हैं.  इन विकल्पों को यदि आप चुनते हैं तो आप अपनी लाइफ स्टाइल भी बनाये रखेंगे, खुल के जी सकेंगे और लम्बे समय तक अपने फंड्स का लाभ भी उठा सकेंगे. लेकिन इन विकल्पों के साथ आपको थोडा सजग रहना पड़ेगा.

कोई भी व्यक्ति अपनी 75वीं सालगिरह पर पैसों के लिए अपने बच्चों की तरफ नहीं देखना चाहेगा और ना ही पैसों के लिए नौकरी करना चाहेगा. इसलिए समय से पहले या तो अपने खर्चों को घटा लें और ट्रेडिशनल इन्वेस्टमेंट आप्शन के साथ चलें और या तो मार्केट लिंक्ड प्रोडक्ट में समझदारी से निवेश करके डबल डिजिट रिटर्न बनायें और अपनी लाइफ स्टाइल बनाये रखे हुए अपनी लाइफ के गोल्डेन पीरियड एन्जॉय करें.

इनमे से कोई भी विकल्प चुनने से पहले अपने आप को ठीक तरह से समझे, अपने पैसे से ना तो एक्सपेरिमेंट करें ना ही किसी अनाड़ी (अपने रिश्तेदार, दोस्त) या खिलाडी (बैंकर या LIC एजेंट ) को करने दें. सोच समझ कर अपने इस एसेट के लिए प्लान बनायें या किसी अच्छे विशेषज्ञ से सलाह लें.  

आशा है यह ब्लॉग आपके रिटायरमेंट फण्ड को मैनेज करने में सहायक होगा.