Tuesday, December 3, 2019

कैसे बिगड़ा हर घर का अर्थशास्त्र !!!




पिछले 10-15 वर्षों में हमारे देश और समाज ने आर्थिक रूप से काफी तरक्की की है और जिस के कारण हमारे रहन-सहन, खान-पान, जीवन-यापन के साधनों में बहुत सारे परिवर्तन हुए हैं. कुछ दशकों पहले जो साधन या सुविधाएँ सिर्फ एक उच्च आय वर्ग को मिलती थी आज वो साधन और सुविधाएँ एक आम आदमी के लिए भी उपलब्ध है और वह उसका उपभोग भी कर रहा है.

जैसा की कहा जाता है कि हर बदलाव के कुछ अच्छे और कुछ बुरे पहलू होते हैं. अच्छा पहलू यह है कि आम आदमी का जीवन विज्ञान और आर्थिक तरक्की ने बहुत सुगम और सुविधाओं से भरपूर बना दिया है और इसके अलावा भी बहुत सारे लाभ देश या समाज को मिला है. घरों में आज ऐसी तमाम चीजें मिल जायेंगी जिनको 10-15 साल पहले लोग या तो जानते नहीं थे या सिर्फ फिल्मों , टेलीविजन या पत्रिकाओं में ही देखते थे और यह चीजें अब टेलीविजन और सिनेमा के परदों से निकल कर घरों में पहुँच गई.

इन बदलावों के कुछ नकारात्मक पक्ष भी हैं लेकिन हम इस चर्चा को सिर्फ आर्थिक या फाइनेंसियल नजरिये से ही देखना चाहेंगे और यह समझने का प्रयास करेंगे कि एक परिवार के पैसे खर्च करने की आदतों में क्या बड़े बदलाव हुए हैं जिनको हम निश्चित रूप से यह मान सकते हैं कि इन्होने कहीं न कहीं हमारे ऊपर जरुरत से ज्यादा आर्थिक रूप से बोझ बढाया है और जिस से एक आम परिवार की बैलेंसशीट बिगड़ गई है.

तो आज चर्चा करते हैं पिछले 10-15 वर्षों में खर्चों और लाइफ स्टाइल में आये उन 10 बदलावों की जिन्होंने एक घर के अर्थशास्त्र  पर बहुत प्रभाव डाला है.. 

1- खान-पान में बदलाव के कारण घर में बने खाने की जगह रेस्टोरेंट के खाने या पैकेज्ड फ़ूड का प्रचलन बढ़ना. घर की रसोई पर निर्भरता कम होने से हमारे घर के खाने पीने के खर्चे बहुत तेजी से बढे हैं और जिसके कारण आपके मंथली बजट में इस मद में खर्चे तेजी से बढे हैं.

2- ब्रांडेड वस्तुओं के प्रति आकर्षण ने हर एक चीज की खरीददारी के निर्णय उसकी कीमत और वैल्यू से नहीं बल्कि ब्रांड के नाम से हो चुकी है और जिसकी वजह से लोगों का खर्च भी बढ़ा है.

3- हॉस्पिटल, स्कूल, कोचिंग, एक्टिविटी क्लासेज और तमाम ऐसी चीजों का बाजारीकरण बढ़ने से इनके ऊपर होने वाले खर्चो में बेतहासा वृद्धि हुई है. एक सामान्य परिवार के मंथली बजट का एक मोटा हिस्सा इन सब पर खर्च हो रहा है. 

4- कार, महंगी बाइक और महंगे गैजेट का खरीदना और वो भी जरूरत के लिए नहीं बल्कि दूसरों के ऊपर प्रभाव दिखाने के लिए ज्यादा किया जाने के लिए . स्टाइल में रहने का..

5- जन्म दिन या शादी की सालगिरह जैसे मौकों को स्पेशल बनाने के लिए परिवार के साथ समय बिताने की जगह अनावश्यक चीजों में खर्चे करने पर जोर ज्यादा हो गया है.

6-पिछले कुछ वर्षों में  शादियों और अन्य परिवार के फंक्शन को भव्य बनाने के लिए अनावश्यक रूप से खर्चे बढे हैं अब परिवार के फंक्शन को कॉर्पोरेट या फ़िल्मी इवेंट की तरह बना दिया गया है. सोशल मीडिया और फिल्मों ने  इसमें बड़ा योगदान किया है. इसमें ज्यादातर खर्चे गैर जरुरी और सिर्फ दिखावे के लिए होते  हैं लेकिन जेब फटती है तो फटने दो.

7- घर या ऑफिस के लिए महंगे फर्नीचर और इंटीरियर पर खर्चे करना और साथ में इनके रख रखाव का भी खर्च बढ़ाना. 

8- घर के प्रत्येक सदस्य के पास कम से कम एक या उस से अधिक मोबाइल होना और हर साल मोबाइल चेंज करते रहना क्यूंकि हर 2-3 महीने में नया और तथाकथित अपग्रेडेड मोबाइल आ जाता है. 

9- दूसरों को देख कर उनके दबाव में बाहर घूमने जाने, होटल व रेस्टोरेंट पर खर्च करना. मेरी फ्रेंड ने चाँद से सेल्फी लेकर सोशल मीडिया पर डाल दिया और एक मै अभी तक नैनीताल भी नहीं गया.

10- क्रेडिट कार्ड या लोन लेकर अपने शौक पूरे करना. भविष्य में कमायेंगे वर्तमान में उड़ायेंगे की आदत. पहले एक कहावत बहुत प्रचलित थी  कि पाँव उतनी ही फैलाओ जितनी बड़ी चादर हो लेकिन आज के समय लोगों की सोच बहुत बदल चुकी है लोग अब इस तरह से नहीं सोचते, आज अगर किसी को यह बात बोली जाय तो निश्चित रूप से उसका जवाब होगा कि भाई मैं तो पैर फैला के सोऊंगा और चैन से सोने के लिए मैं चादर उधार लेना पसंद करूँगा.

अगर आंकड़ों की बात करें तो पिछले 10 वर्षो में भारत का हाउस होल्ड डेब्ट रेशियो 2% से बढ़ कर 20% हो गया है, वहीँ पर फाइनेंसियल सेविंग रेट 12% से घट कर सिर्फ 8% रह गई है. यानी लोगों ने  एक तरफ लोन लेकर खर्चे करने लगे हैं और जिसके कारण उनकी फाइनेंसियल सेविंग्स घट रही है और खर्चे का कमाई से ज्यादा तेजी से बढ़ना घर के अर्थशास्त्र को बिगाड़ रहा है. 

इस तरह से पीछे कुछ वर्षों में लोगों के अन्दर पैसे खर्च करने के तरीकों और बहुत सारी आदतों में बदलाव आया है.सोशल मीडिया के ज़माने में अक्सर लोग खुद को खुश रखने में कम और दूसरों को दिखाने में ज्यादा लगे हुए हैं और इसलिए ज्यादातर खर्च और लाइफ स्टाइल में बदलाव लोग बिना अपनी आवश्यकता को समझे, मीडिया, मित्र या रिश्तेदार के प्रभाव में कर रहे हैं परिणाम स्वरुप लोगों के ऊपर आर्थिक बोझ बढ़ता जा रहा है. आदमी खर्च करने और कमाने में लगा हुआ जितना भी कमा रहा है उतना ही उसे कम लग रहा है.

लोगों के खर्चे, लाइफ स्टाइल में जिस तरह से बदलाव हुआ है उसकी तुलना में उनका फाइनेंसियल स्टेटस (संपत्ति, सेविंग) नहीं बढ़ पा रही. क्यूंकि कमाई से ज्यादा तेजी से लाइफ स्टाइल और उस पर होने वाले खर्चे बढ़ रहे हैं और साथ ही क्रेडिट कार्ड और आसानी से मिलने वाले लोन ने भी कमाने से पहले पैसे खर्च करने की आदत डाल दी है. 

आज ज्यादातर परिवारों की समस्या यह है कि यदि उनकी इनकम 100 रूपये हैं तो वो प्रयास करते हैं कि उनकी लाइफ स्टाइल 200 रुपये इनकम वाले की तरह दिखे.

 इस भेड़ चाल से निकलने के लिए एक बार रुक कर अपने लाइफ स्टाइल अपनी इनकम, अपनी जरुरत और अपनी इच्छा जैसे पहलुओं पर विचार करने की जरुरत है. जबकि पर्सनल फाइनेंस विशेषज्ञ हमेशा यह बात बोलते हैं कि "Live below your means". 

यदि आप की इनकम और खर्च के साथ बचत भी बढ़ रही है, निवेश और सम्पतियाँ भी बढ़ रही हैं तब तो कोई समस्या नहीं लेकिन यदि सिर्फ खर्चे बढ़ रहे हैं कमाई नहीं या खर्चे की तुलना में कमाई या सेविंग्स नहीं बढ़ रही  तो आप निश्चित ही बड़ी परेशानी में पड़ने वाले हैं.

अधिक खर्च करने वाले विचार कीजिये.....चाहतों और दिखावों के पीछे भागने के चक्कर में कहीं ऐसा ना हो कि भविष्य में जरुरतें ही चाहत बन कर रह जाए.

  

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