Thursday, December 5, 2019

बैंक डिपाजिट से ज्यादा सुरक्षित और अधिक ब्याज देना वाला विकल्प





जब भी एक आम आदमी निवेश करने के बारे में सोचता है तो पहली बात जो उसके दिमाग में आती है वो है अपने पूंजी या डिपाजिट की सुरक्षा. ऐसे में उसका सबसे पसंदीदा विकल्प बनता है बैंक फिक्स्ड डिपाजिट. क्यूंकि बैंक डिपाजिट एक आसान और सुरक्षित निवेश करने का विकल्प है इसलिए ज्यादातर लोगों के पास जब भी कुछ सरप्लस फण्ड होता है तो बैंक फिक्स्ड डिपाजिट ही करते हैं. लेकिन क्या ऐसा कोई निवेश विकल्प है जो बैंक फिक्स्ड डिपाजिट से अधिक भरोसेमंद हो और साथ में ब्याज भी अधिक देता हो!!!

तो आज के ब्लॉग में हम में ऐसे ही एक निवेश विकल्प की बात करेंगे जो बैंक डिपाजिट से अधिक भरोसेमंद है और जिस पर निवेशक को ब्याज भी अधिक मिलता है.

7.75% Savings (Taxable) Bond, 2018 

भारत सरकार द्वारा जारी, आर बी आई बांड 2018  जिसको 7.75% Savings (Taxable) Bond, 2018 के भी नाम से जाना जाता है एक ऐसा ही विकल्प है तो आइये जानते हैं इसकी अन्य विशेषतायें और लाभ
  • एक निश्चित ब्याज दर 7.75% पूरे 7 वर्ष के लिए
  • क्यूंकि यह RBI द्वारा जारी की जाती है  इस लिए यहाँ पर निवेश 100% सुरक्षित है
  • इस बांड में निवेश करने पर कोई अधिकतम सीमा नहीं है इसलिए इसमें कितनी भी राशि निवेश की जा सकती है
  • यह बांड एक पूर्व निश्चित अवधि जो की 7 वर्ष है, के लिए जारी की जाती है
  • इन बांड्स पर ब्याज या तो प्रत्येक 6 माह पर  या  अवधि पूरी होने पर एक साथ ले सकते हैं. विकल्प का चुनाव बांड में निवेश करते समय चुनना होता है
  • ब्याज प्रति वर्ष 31st जनवरी और 31st जुलाई को देय होता है
  • ब्याज 1 फरवरी और 1 अगस्त को ECS या डायरेक्ट क्रेडिट के माध्यम से बैंक अकाउंट में आते हैं
  • अवधि पूरी होने पर पूरी भुगतान अपने आप बांड होल्डर के अकाउंट में आ जाता है, इसके लिए बांड को कहीं जमा करने की जरुरत नहीं होती.
  • जो बांड होल्डर एक साथ, अवधि पूरी होने पर भुगतान लेते हैं उन्हें प्रति 1000 रूपये पर 1703 रुपये (मूलधन और ब्याज) का भुगतान होता है.
  • बांड पर मिलने वाला ब्याज टैक्स फ्री नहीं होता
  • यदि साल में ब्याज 40,000 रूपये से ज्यादा ब्याज आ रहा है तो 10% टीडीएस काट कर ब्याज का भुगतान होता है
  • बांड पर निवेश वेल्थ टैक्स एक्ट, 1957 के अंतर्गत वेल्थ टैक्स से एक्सेम्प्ट होता है
  • हालांकि ये बांड्स 7 वर्ष की अवधि के लिए हैं लेकिन सीनियर सिटीजन के लिए लॉक-इन पीरियड में कुछ छूट मिलती है. 60-70 वर्ष के लोग 6 वर्ष के उपरांत, 70-80 वर्ष के लोग 5 वर्ष के उपरांत और 80 वर्ष से ज्यादा उम्र के लोग 4 वर्ष के उपरांत इन बांड्स से पैसे निकाल सकते हैं. लेकिन 7 वर्ष की अवधि से पहले पैसे निकालने की स्थिति में  पिछले 6 महीने के देय ब्याज पर 50% के दर से पेनाल्टी लगती है अर्थात पिछले 6 महीने में ब्याज दर आधी रह जाती है
  • इन बांड्स में सिर्फ कोई व्यक्ति या HUF ही निवेश कर सकता है. कोई संस्था या NRI इन बांड्स में निवेश नहीं कर सकते. 
  • बांड्स में निवेश डीमेट या फिजिकल दोनों माध्यम से किया जा सकता है
  • इन बांड्स की खरीद बिक्री खुले बाज़ार में नहीं होती, इनका स्वामित्व ट्रान्सफर नहीं किया जा सकता. सिर्फ बांड होल्डर की मृत्यु की दशा में ही इनका स्वामित्व बदलता है
  • नॉमिनेशन की सुविधा भी इन बांड्स में होती है 
  • इन बांड्स को किसी भी सरकारी या गैर सरकारी बैंक, किसी ब्रोकर या निवेश सलाहकार के माध्यम से ख़रीदा जा सकता है.
अगर इन बांड्स की तुलना बैंक डिपाजिट से करें तो यह ज्यादा सुरक्षित निवेश है और ज्यादा ब्याज देने वाला निवेश है. क्यूंकि ये बांड्स RBI द्वारा जारी किये जाते  हैं इसलिए इन बांड्स पर एक तरह से भारत सरकार की गारंटी है जबकि बैंक डिपाजिट पर भारत सरकार कोई गारंटी नहीं देता बल्कि यह जिम्मेदारी उस बैंक की होती है इसलिए बैंक में डिपाजिट का इंश्योरेंस होता है जिससे कि यदि बैंक बंद या दिवालिया हो जाय तो डिपाजिट होल्डर को 1 लाख रूपये तक की रकम वापस की जा सके. यहाँ मेरा कहना एकदम यह नहीं है कि बैंक डिपाजिट सुरक्षित नहीं है, हाँ लेकिन इतना जरुर है कि बैंक डिपाजिट की तुलना में RBI बांड ज्यादा सुरक्षित है. जहाँ तक ब्याज दरों की बात करें तो बैंक डिपाजिट पर इससे कहीं कम ब्याज देता है, यहाँ तक बैंक की ब्याज दरें वरिष्ठ नागरिकों के लिए भी इससे कम ही है.

क्यूँ ना करें RBI बांड में निवेश- एक फिक्स्ड इनकम निवेशक के लिए 7 साल तक 7.75% का ब्याज निश्चित रूप से आकर्षक है लेकिन लिक्विडिटी यानि पैसे समय से पहले ना निकाल पाने का कारण इन बांड्स को कम आकर्षक बनाता है. 7 वर्ष एक लम्बा समय होता है और यदि इन्वेस्टमेंट होराइजन इतना लम्बा नहीं है या आप समय और पैसे की आवश्यकता को लेकर निश्चित ना हों तो इसमें बिल्कुल निवेश न करें. 

कुल मिला कर RBI बांड, फिक्स्ड इनकम इन्वेस्टर के लिए एक बेहतर विकल्प है. जहाँ हर 3 महीने पर ब्याज दरें घट रही हों वहां 7 वर्ष के लिए एक निश्चित और आकर्षक ब्याज दर मिलना वो भी भारत सरकार की गारंटी की साथ तो यह निश्चित रूप से सोने पर सुहागा जैसा है.

Tuesday, December 3, 2019

कैसे बिगड़ा हर घर का अर्थशास्त्र !!!




पिछले 10-15 वर्षों में हमारे देश और समाज ने आर्थिक रूप से काफी तरक्की की है और जिस के कारण हमारे रहन-सहन, खान-पान, जीवन-यापन के साधनों में बहुत सारे परिवर्तन हुए हैं. कुछ दशकों पहले जो साधन या सुविधाएँ सिर्फ एक उच्च आय वर्ग को मिलती थी आज वो साधन और सुविधाएँ एक आम आदमी के लिए भी उपलब्ध है और वह उसका उपभोग भी कर रहा है.

जैसा की कहा जाता है कि हर बदलाव के कुछ अच्छे और कुछ बुरे पहलू होते हैं. अच्छा पहलू यह है कि आम आदमी का जीवन विज्ञान और आर्थिक तरक्की ने बहुत सुगम और सुविधाओं से भरपूर बना दिया है और इसके अलावा भी बहुत सारे लाभ देश या समाज को मिला है. घरों में आज ऐसी तमाम चीजें मिल जायेंगी जिनको 10-15 साल पहले लोग या तो जानते नहीं थे या सिर्फ फिल्मों , टेलीविजन या पत्रिकाओं में ही देखते थे और यह चीजें अब टेलीविजन और सिनेमा के परदों से निकल कर घरों में पहुँच गई.

इन बदलावों के कुछ नकारात्मक पक्ष भी हैं लेकिन हम इस चर्चा को सिर्फ आर्थिक या फाइनेंसियल नजरिये से ही देखना चाहेंगे और यह समझने का प्रयास करेंगे कि एक परिवार के पैसे खर्च करने की आदतों में क्या बड़े बदलाव हुए हैं जिनको हम निश्चित रूप से यह मान सकते हैं कि इन्होने कहीं न कहीं हमारे ऊपर जरुरत से ज्यादा आर्थिक रूप से बोझ बढाया है और जिस से एक आम परिवार की बैलेंसशीट बिगड़ गई है.

तो आज चर्चा करते हैं पिछले 10-15 वर्षों में खर्चों और लाइफ स्टाइल में आये उन 10 बदलावों की जिन्होंने एक घर के अर्थशास्त्र  पर बहुत प्रभाव डाला है.. 

1- खान-पान में बदलाव के कारण घर में बने खाने की जगह रेस्टोरेंट के खाने या पैकेज्ड फ़ूड का प्रचलन बढ़ना. घर की रसोई पर निर्भरता कम होने से हमारे घर के खाने पीने के खर्चे बहुत तेजी से बढे हैं और जिसके कारण आपके मंथली बजट में इस मद में खर्चे तेजी से बढे हैं.

2- ब्रांडेड वस्तुओं के प्रति आकर्षण ने हर एक चीज की खरीददारी के निर्णय उसकी कीमत और वैल्यू से नहीं बल्कि ब्रांड के नाम से हो चुकी है और जिसकी वजह से लोगों का खर्च भी बढ़ा है.

3- हॉस्पिटल, स्कूल, कोचिंग, एक्टिविटी क्लासेज और तमाम ऐसी चीजों का बाजारीकरण बढ़ने से इनके ऊपर होने वाले खर्चो में बेतहासा वृद्धि हुई है. एक सामान्य परिवार के मंथली बजट का एक मोटा हिस्सा इन सब पर खर्च हो रहा है. 

4- कार, महंगी बाइक और महंगे गैजेट का खरीदना और वो भी जरूरत के लिए नहीं बल्कि दूसरों के ऊपर प्रभाव दिखाने के लिए ज्यादा किया जाने के लिए . स्टाइल में रहने का..

5- जन्म दिन या शादी की सालगिरह जैसे मौकों को स्पेशल बनाने के लिए परिवार के साथ समय बिताने की जगह अनावश्यक चीजों में खर्चे करने पर जोर ज्यादा हो गया है.

6-पिछले कुछ वर्षों में  शादियों और अन्य परिवार के फंक्शन को भव्य बनाने के लिए अनावश्यक रूप से खर्चे बढे हैं अब परिवार के फंक्शन को कॉर्पोरेट या फ़िल्मी इवेंट की तरह बना दिया गया है. सोशल मीडिया और फिल्मों ने  इसमें बड़ा योगदान किया है. इसमें ज्यादातर खर्चे गैर जरुरी और सिर्फ दिखावे के लिए होते  हैं लेकिन जेब फटती है तो फटने दो.

7- घर या ऑफिस के लिए महंगे फर्नीचर और इंटीरियर पर खर्चे करना और साथ में इनके रख रखाव का भी खर्च बढ़ाना. 

8- घर के प्रत्येक सदस्य के पास कम से कम एक या उस से अधिक मोबाइल होना और हर साल मोबाइल चेंज करते रहना क्यूंकि हर 2-3 महीने में नया और तथाकथित अपग्रेडेड मोबाइल आ जाता है. 

9- दूसरों को देख कर उनके दबाव में बाहर घूमने जाने, होटल व रेस्टोरेंट पर खर्च करना. मेरी फ्रेंड ने चाँद से सेल्फी लेकर सोशल मीडिया पर डाल दिया और एक मै अभी तक नैनीताल भी नहीं गया.

10- क्रेडिट कार्ड या लोन लेकर अपने शौक पूरे करना. भविष्य में कमायेंगे वर्तमान में उड़ायेंगे की आदत. पहले एक कहावत बहुत प्रचलित थी  कि पाँव उतनी ही फैलाओ जितनी बड़ी चादर हो लेकिन आज के समय लोगों की सोच बहुत बदल चुकी है लोग अब इस तरह से नहीं सोचते, आज अगर किसी को यह बात बोली जाय तो निश्चित रूप से उसका जवाब होगा कि भाई मैं तो पैर फैला के सोऊंगा और चैन से सोने के लिए मैं चादर उधार लेना पसंद करूँगा.

अगर आंकड़ों की बात करें तो पिछले 10 वर्षो में भारत का हाउस होल्ड डेब्ट रेशियो 2% से बढ़ कर 20% हो गया है, वहीँ पर फाइनेंसियल सेविंग रेट 12% से घट कर सिर्फ 8% रह गई है. यानी लोगों ने  एक तरफ लोन लेकर खर्चे करने लगे हैं और जिसके कारण उनकी फाइनेंसियल सेविंग्स घट रही है और खर्चे का कमाई से ज्यादा तेजी से बढ़ना घर के अर्थशास्त्र को बिगाड़ रहा है. 

इस तरह से पीछे कुछ वर्षों में लोगों के अन्दर पैसे खर्च करने के तरीकों और बहुत सारी आदतों में बदलाव आया है.सोशल मीडिया के ज़माने में अक्सर लोग खुद को खुश रखने में कम और दूसरों को दिखाने में ज्यादा लगे हुए हैं और इसलिए ज्यादातर खर्च और लाइफ स्टाइल में बदलाव लोग बिना अपनी आवश्यकता को समझे, मीडिया, मित्र या रिश्तेदार के प्रभाव में कर रहे हैं परिणाम स्वरुप लोगों के ऊपर आर्थिक बोझ बढ़ता जा रहा है. आदमी खर्च करने और कमाने में लगा हुआ जितना भी कमा रहा है उतना ही उसे कम लग रहा है.

लोगों के खर्चे, लाइफ स्टाइल में जिस तरह से बदलाव हुआ है उसकी तुलना में उनका फाइनेंसियल स्टेटस (संपत्ति, सेविंग) नहीं बढ़ पा रही. क्यूंकि कमाई से ज्यादा तेजी से लाइफ स्टाइल और उस पर होने वाले खर्चे बढ़ रहे हैं और साथ ही क्रेडिट कार्ड और आसानी से मिलने वाले लोन ने भी कमाने से पहले पैसे खर्च करने की आदत डाल दी है. 

आज ज्यादातर परिवारों की समस्या यह है कि यदि उनकी इनकम 100 रूपये हैं तो वो प्रयास करते हैं कि उनकी लाइफ स्टाइल 200 रुपये इनकम वाले की तरह दिखे.

 इस भेड़ चाल से निकलने के लिए एक बार रुक कर अपने लाइफ स्टाइल अपनी इनकम, अपनी जरुरत और अपनी इच्छा जैसे पहलुओं पर विचार करने की जरुरत है. जबकि पर्सनल फाइनेंस विशेषज्ञ हमेशा यह बात बोलते हैं कि "Live below your means". 

यदि आप की इनकम और खर्च के साथ बचत भी बढ़ रही है, निवेश और सम्पतियाँ भी बढ़ रही हैं तब तो कोई समस्या नहीं लेकिन यदि सिर्फ खर्चे बढ़ रहे हैं कमाई नहीं या खर्चे की तुलना में कमाई या सेविंग्स नहीं बढ़ रही  तो आप निश्चित ही बड़ी परेशानी में पड़ने वाले हैं.

अधिक खर्च करने वाले विचार कीजिये.....चाहतों और दिखावों के पीछे भागने के चक्कर में कहीं ऐसा ना हो कि भविष्य में जरुरतें ही चाहत बन कर रह जाए.