Saturday, December 2, 2017

क्या अब आपके पैसे बैंक में भी सुरक्षित नहीं रहेंगे ?



F.R.D.I. (Financial Resolution & Deposit Insurance, 2017) बिल जिसे संसद के शीतकालीन सत्र में पेश किये जाने की संभावना है इस बिल के प्रावधानों को लेकर कुछ आशंकाएं व्यक्त की जा रही हैं और ऐसा बताया जा रहा है उन प्रावधानों को अगर मान लिया जायेगा तो बैंक डिपाजिट अब पहले की तरह सुरक्षित नहीं रह जायेंगे.

आइये समझते हैं ऐसा क्या है इस बिल में ?

विभिन्न मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार इस बिल के पास होने से एक ऐसी संस्था का निर्माण होगा जो की किसी सरकारी या गैर सरकारी बैंकों, बीमा कंपनियों, नॉन-बैंकिंग फाइनेंसियल में बड़ी वित्तीय समस्या जैसे डिफ़ॉल्ट या दिवालिया होने की सम्भावना की स्थिति में ऐसी संस्थाओं के एकीकरण, विलय या अधिग्रहण जैसी कार्यवाही करने का अधिकार होगा.

आशंका बिल में ऐसे प्रावधान से उठ रही है जिसमें कहा गया है कि अगर किसी बैंक के ऊपर देनदारी बढ़ जाती है और वो अपनी देनदारी चुकाने में सक्षम नहीं रह जाती तो उसकी देनदारी का भुगतान अब सरकार नहीं करेगी अर्थात अब सरकार बैंक को bail-out पैकेज नहीं देगी बल्कि अब बैंक अपने क्रेडिटर्स (डिपॉजिट् होल्डर भी) के बकाया को चुकाने के लिए उनके बकाये की राशि के बदले बैंक की हिस्सेदारी दे देंगे . अर्थात जैसी स्थिति आज अधिकांश सरकारी बैंकों की है भविष्य में ऐसी स्थित आने पर सरकार को कोई रीकैपिटलाइजेशन पैकेज देने कि जरुरत नहीं होगी बल्कि बैंक डिपाजिट के बदले अपने बैंक का प्रेफरेन्स शेयर डिपॉजिट् होल्डर को दे देगी और इस प्रकार से  डिपाजिट होल्डर के पैसे से ही अपने आपको Bail-in कर लेगी.

इसी प्रावधान को लेकर जानकार प्रश्न खड़ा कर रहे हैं कि भविष्य में बैंक डिपाजिट पूरी तरह से सुरक्षित नहीं रह जायेंगे.

वर्तमान प्रावधान क्या हैं ?

वैसे अगर नियम की बात करें तो अभी के प्रावधानों के अनुसार बैंक अगर दिवालिया हो जाये या बंद हो जाय तो एक बैंक में एक व्यक्ति ने कितने भी अकाउंट में कितना भी पैसा रखा हो उसे DICGS (Deposit Insurance Credit Gurantee Scheme) के अंतर्गत सिर्फ 1 लाख रूपये की गारंटी मिलती है. लेकिन आज तक सहकारी बैंको को छोड़ दें तो किसी प्राइवेट बैंक को भी सरकार ने दिवालिया नहीं होने दिया और डिपॉजिट् होल्डर का पैसा कभी डूबने नहीं दिया. जिन बैंक में ऐसी समस्या आयी भी उनका सरकार ने समय पर दूसरे किसी बैंक में विलय कर दिया. जैसे ग्लोबल ट्रस्ट बैंक प्राइवेट होने के बाद भी उसका विलय  ओरिएण्टल बैंक ऑफ़ कॉमर्स में कर दिया गया और डिपाजिटर के पैसे को डूबने से बचाया, ऐसे ही बैंक ऑफ़ राजस्थान और सांगली बैंक में समस्या आपने पर उनका विलय आईसीआईसीआई बैंक में किया गया , यूनाइटेड वेस्टर्न बैंक का विलय IDBI में किया गया.

क्या इस बिल के पास होने से आपके डिपाजिट सुरक्षित नहीं रहेंगे ?

जैसा की मैंने पहले ही बताया अभी तक सरकार और RBI ने किसी बैंक के बंद होने से पहले ही उसका विलय किसी और बैंक के साथ किया है या आर्थिक पैकेज दे कर बैंकों और उनके डिपॉजिट् होल्डर को सुरक्षित रखा है. इस बिल के पास होने के बाद भी सरकार किसी बैंक को ऐसी स्थिति में जाने नहीं देना चाहेगी. लेकिन यह बिल एक तरह से एक ऐसी संस्था का निर्माण करने में और बैंकों को उनकी कार्य प्रणाली सुधारने के लिए एक अच्छे सुधारों के रूप में ही देखनी चाहिए. नियमों के मुताबिक तो आज भी बैंक के बंद होने या दिवालिया होने पर सिर्फ एक लाख रुपये के डिपाजिट को वापस करने की गारंटी है लेकिन आज तक ऐसा हुआ नहीं कि बैंक डिपाजिट में किसी का पैसा डूबा हो. इसलिए किसी को सशंकित होने की जरुरत नहीं है.

वैसे बैंको को आज भी सरकार जब bail-out करती है तो पैसे तो हमारे-आप के ही जाते हैं हाँ यह अलग बात है कि वो सीधे तौर पर नहीं जाते. देश के सारे टैक्स देने वाले लोग bail-out पैकेज का भार अप्रत्यक्ष रूप से वहन कर लेते हैं और उस बैंक को बचा लेते हैं.

Financial Resolution & Deposit Insurance 2017 बिल को भी बैंकिंग सेक्टर में एक रिफार्म के रूप में देखा जाना चाहिए. इससे एक ऐसी संस्था का निर्माण होगा जो कि वित्तीय संस्थाओं को डिफ़ॉल्ट या दिवालिया जैसी विषम परिस्थिति में जाने से पहले उनको बचाने का समय पर प्रयास करेगी और ऐसा करके वो देश और उसके टैक्स देने वाले लोगों के ऊपर पड़ने वाले आर्थिक बोझ से बचाएगी. इस बिल का उद्देश्य देश के फाइनेंसियल सिस्टम को और मजबूत बनाना है, देश को 2008 विश्व आर्थिक समस्या जैसी स्थिति का सामना करने के लिए तैयार करना और ऐसी समस्याओं से बचाना है.


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