Monday, November 21, 2016

नोटबंदी का असर आपके फिक्स्ड डिपाजिट पर



पढ़िए कैसे पड़ेगा नोटबंदी का असर आपके फिक्स्ड डिपाजिट पर और आगे क्या होगा आपके लिए रास्ता...

अगर आप फिक्स्ड डिपाजिट और स्माल सेविंग्स स्कीमों के निवेशक हैं तो नोटबंदी आपके लिए एक बुरी खबर ले कर आ रही है . संभावनायें ऐसी बन रही हैं कि अगले 6 महीने में फिक्स्ड डिपाजिट और स्माल सेविंग स्कीमों में ब्याज दर की कटौती 1%-1.5% तक हो सकती है. इसकी शुरुआत कुछ बैंकों ने कर दी है, 18 नवम्बर से नई डिपॉजिट्स पर HDFC, आईसीआईसीआई, यूनाइटेड बैंक, स्टेट बैंक, पंजाब नेशनल बैंक और केनरा बैंक जैसे बड़े प्राइवेट और सरकारी बैंको ने 0.25% से 1% तक ब्याज में कटौती की है.

आईसीआईसीआई और HDFC ने जहाँ 0.25% की कटौती ब्याज दरों में की है वहीँ यूनाइटेड बैंक ऑफ़ इंडिया ने शार्ट टर्म डिपाजिट पर 1% तक ब्याज दर घटा दिए हैं.

बैंकों ने ऐसा कदम नोटबंदी के बाद उनके डिपाजिट में आये उछाल के कारण उठाया है क्यूंकि बैंकों की यह मज़बूरी है कि एकाएक उनके डिपाजिट बेस बढ़ने से उनके ऊपर भी ज्यादा ब्याज देने का दबाव बनेगा जबकि ये डिपॉजिट्स अभी वो पूरी तरह से उपयोग भी नहीं कर पाएंगे.

वैसे बैंकों के लिए नोटबंदी अच्छा मुनाफा ले कर आ रही है एक तरफ उनके पास डिपाजिट अपने आप चल कर रहा है और ज्यादातर डिपाजिट सेविंग या करंट अकाउंट में ही आ रहे हैं. यहाँ ध्यान देने वाली बात ये है कि सेविंग अकाउंट में बैंक को 3.5%-4.5%  का ब्याज ही देना पड़ता है और दूसरी तरफ करंट अकाउंट में जमा राशि पर कोई ब्याज नहीं देना पड़ता. अब अगर बैंक के पास यह पैसे सरप्लस में होते हैं तो बैंक इन सरप्लस फंड्स को RBI में रिवर्स रेपो रेट पर जमा कर सकता है. RBI ने अभी रिवर्स रेपो रेट 5.75% रखा हुआ है.

इस प्रकार से बैंक अपनी सरप्लस डिपाजिट पर 5.75% ब्याज कमायेंगे, मतलब आप से पैसे ले रहे हैं 4% पर और RBI में उन्ही पैसों पर कमायेंगे 5.75%. लेकिन इससे बैंकों के नेट इंटरेस्ट मार्जिन पर दबाव बनेगा.

अब इसका परिणाम क्या होगा जल्दी ही RBI रेपो विंडो पर सरप्लस की स्थिति देख कर अपने पालिसी रेट्स में कटौती करेगा जिसका असर आपके फिक्स्ड  डिपाजिट, स्माल सेविंग्स स्कीम और लोन सब पर पड़ेगा.

इसलिए हम सभी को आने वाले 6-12 महीनो में फिक्सड डिपाजिट और स्माल सेविंग स्कीम  पर बहुत तेजी से ब्याज दरों में आने वाली कटौती के लिए तैयार रहना चाहिए. अगर बैंकों के ऊपर उनके नेट इंटरेस्ट मार्जिन को लेकर कोई प्रभाव या दबाव आया तो उनको सेविंग्स अकाउंट के ब्याज भी घटाने पड़ सकते हैं.


तो नई परिस्थितियों में ऐसे निवेशक जो ब्याज की कमाई पर ही निर्भर रहते हैं उनको क्या करना चाहिये..

अगर बचत करने वाले, पेंशनर, ट्रेडिशनल इन्वेस्टर या पैसे की सुरक्षा को प्राथमिकता देने वाले इन्वेस्टर अपने इन्वेस्टमेंट्स को पुराने ढर्रे पर ही अपने इन्वेस्टमेंट्स चलायेंगे तब तो उनके लिए परेशानी बढ़ सकती है . जहाँ एक साल पहले उन्हें डिपॉजिट्स में 8.50% की दर से ब्याज मिलता था वहां अब अगर उन्हें 6.50% के आस पास की दर से ब्याज मिलने लगा तो उनके कैश फ्लो पर दबाव पड़ेगा और उनको अपने मूलधन से पैसे निकालने पड़ेंगे जो उनके पर्सनल फाइनेंस के लिए गलत होगा. यहाँ अगर मिलने वाली ब्याज से टैक्स घटा देंगे तो नेट ब्याज दर घट कर 5% के आस पास ही रह जायेगी, इसलिए यह अत्यंत आवश्यक है कि फिक्स्ड डिपाजिट में निवेश करने वाले लोगों को दुसरे विकल्पों की तलाश करनी चाहिए.

तो फिर क्या रास्ता है....कहीं 2006-07 की तरह ये लोग इक्विटी मार्केट के चक्कर में तो नहीं पड जायेंगे....मुझे लगता है इसकी सम्भावना सबसे ज्यादा है. सामान्यतया ऐसा देखा जाता है जब ब्याज दरें कम हो जाती है तो फिक्स्ड इनकम इन्वेस्टर अपने निवेशों पर बेहतर कमाई करने के लिए शेयर बाज़ार का रुख कर लेते हैं, उनकी रिस्क लेने की क्षमता एकाएक बढ़ जाती है और फिक्स्ड डिपाजिट से वो सीधे शेयर बाज़ार में पहुँच जाते हैं. और यह ऐसा समय होता है जब शेयर बाज़ार में बहुत तेजी होती है और हर कोई शेयर बाजार में निवेश करने के बारे में बात कर रहा होता है. शेयर बाजार  हर 3 महीने में फिक्स्ड डिपाजिट के साल भर के ब्याज के बराबर चाल देने लगती है और इस समय में ये इन्वेस्टर अपने फिक्स्ड डिपाजिट में घटती ब्याज दर से परेसान होकर ज्यादा रिटर्न की लालच में सीधे शेयर बाज़ार में निवेश करने पहुँच जाते हैं.

मुझे डर है कि इस बार भी ऐसा ही ना हो...और फिर एक बार फिर ऐसे इन्वेस्टर जो इक्विटी मार्केट के उतार चढाव से होने वाले खतरे से अनजान हैं और अपनी रिस्क लेनी की क्षमता का सही आकलन नही कर पाते हुए ऐसे निर्णय ले लेते हैं जो उनके मूलधन पर भारी पड़ता है.

इसलिए मै यहाँ आपको आगाह करूंगा अगर आप ट्रेडिशनल इन्वेस्टर हैं तो आपके निवेश का रास्ता फिक्स्ड डिपाजिट से निकल कर सीधा शेयर बाज़ार की ओर नहीं जाता और अगर ऐसा आप करते हैं तो यह वैसा ही होगा की आप का पुराना ड्राइवर जो 50 की स्पीड से गाड़ी चलाता था उसके जाने पर जो नया ड्राइवर आया वो आप की गाड़ी 150 की स्पीड से गाड़ी चलाने लगे अब सोचिये उस गाड़ी और उस पर बैठे सज्जन यानी आपका का क्या हाल होगा. आपकी रिस्क लेने क्षमता फिक्स्ड डिपाजिट वाले इन्वेस्टर की है तो आप इक्विटी मार्केट के उतार चढाव को झेल नहीं पायेंगे और अपना ब्लड प्रेशर भी बढ़ायेंगे और अपने निवेश की वैल्यू भी  घटाएंगे.

इसलिए सही यही होगा आप फिक्स्ड इनकम म्यूच्यूअल फण्ड या हाइब्रिड म्यूच्यूअल फण्ड को अपना नया साथी चुनिए, इनकी रफ़्तार आपके फिक्स्ड डिपाजिट से बेहतर होगी और ये सुरक्षित भी होतें हैं.

फिक्स्ड इनकम फण्ड में निवेश के फायदे के बारे में अधिक जानकारी के लिए पढ़ें-

http://arthagyanindia.blogspot.in/2016/05/fixed-deposits.html

http://arthagyanindia.blogspot.in/2016/04/liquid-funds.html


अक्सर डेब्ट या फिक्स्ड इनकम  म्यूच्यूअल फण्ड में निवेश करने वालों की ये शिकायत होती है कि उन्हें यहाँ से फिक्स्ड डिपाजिट की तरह रेगुअल्र कैश फ्लो नहीं मिलता इसे दयां में रख कर अब मै आपको एक तरीका बता रहा हूँ जिस को अपना कर आप सेफ्टी के साथ स्टेबल और बेहतर रिटर्न बना सकते हैं और साथ ही साथ आपका कैश फ्लो भी रेगुलर बना रहेगा.

म्यूच्यूअल फण्ड से कैश फ्लो आप दो तरह से बना सकते हैं एक तो डिविडेंड आप्शन चुन कर और दूसरा सिस्टेमेटिक विड्राल प्लान (SWP) से. डिविडेंड आप्शन में एक निश्चित राशि मिलना थोडा मुश्किल होता है लेकिन SWP के माध्यम से आप अपना कैश फ्लो में सुनिश्चित कर सकते हैं.

अपनाइए डेब्ट फण्ड में SWP और पाइए रेगुलर कैश फ्लो के साथ स्टेबल और बेहतर रिटर्न-

डेब्ट फण्ड में SWP कई मायने में बेहतर है एक तो आप स्टेबल रिटर्न बनाते हैं, दूसरा  एक निश्चित राशि आपके बैंक अकाउंट में एक निश्चित दिन आ जाती है जिस से आपका कैश फ्लो भी बना रहता है, तीसरा आप दुसरे फिक्स्ड डिपाजिट के मुकाबले बेहतर रिटर्न बना रहे होते हैं और चौथा आपके उपर टैक्स का बोझ भी कम हो जाता है.

डेब्ट फण्ड में SWP कैसे काम करता इसके बारे में अगले ब्लॉग में विस्तार से चर्चा करूंगा

आशा है आप को इस ब्लॉग से कुछ नई जानकारियां मिली होंगी, अगर आप को यह ब्लॉग पसंद आये तो अपने मित्रों, परिजनों से जरुर शेयर करें.

1 comment:

  1. very important and knowledgeable message for all investors in a very simple manner .

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